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Year: 2023

काजर की कोठरी खंड6-13/देवकीनन्दन खत्री

काजर की कोठरी : खंड-6 पारसनाथ अपने चाचा के हाल-चाल बराबर लिया करता था। उसने अपने ढंग पर कई ऐसे आदमी मुकर्रर कर रखे थे जो कि लालसिंह का रत्ती-रत्ती हाल उसके कानों तक पहुँचाया करते और जैसा कि प्रायः कुपात्रों के संगी-साथी किया करते हैं उसी तरह उन खबरों में बनिस्बत सच के झूठ […]

कटोरा भर खून खंड1-7/देवकीनन्दन खत्री

कटोरा भर खून : खंड-1 लोग कहते हैं कि नेकी का बदला नेक और बदी का बदला बद से मिलता. है मगर नहीं, देखो, आज मैं किसी नेक और पतिव्रता स्त्री के साथ बदी किया चाहता हूँ। अगर मैं अपना काम पूरा कर सका तो कल ही राजा का दीवान हो जाऊँगा। फिर कौन कह […]

कटोरा भर खून खंड़ 8-16/देवकीनन्दन खत्री

कटोरा भर खून : खंड-8 घटाटोप अंधेरी छाई हुई है, रात आधी से ज्यादा जा चुकी है, बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है, मूसलाधार पानी बरस रहा है, सड़क पर बित्ता-बित्ता-भर पानी चढ़ गया है, राह में कोई मुसाफिर चलता हुआ नहीं दिखाई देता। ऐसे समय में एक आदमी अपनी गोद में तीन […]

चंद्रकान्ता पहला अध्याय/देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 शाम का वक्त है, कुछ-कुछ सूरज दिखाई दे रहा है, सुनसान मैदान में एक पहाड़ी के नीचे दो शख्स वीरेंद्रसिंह और तेजसिंह एक पत्थर की चट्टान पर बैठ कर आपस में बातें कर रहे हैं। वीरेंद्रसिंह की उम्र इक्कीस या बाईस वर्ष की होगी। यह नौगढ़ के राजा सुरेंद्रसिंह का इकलौता लड़का […]

चंद्रकांता दूसरा अध्याय/ देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 इस आदमी को सभी ने देखा मगर हैरान थे कि यह कौन है, कैसे आया और क्या कह गया। तेजसिंह ने जोर से पुकार के कहा – ‘आप लोग चुप रहें, मुझको मालूम हो गया कि यह सब ऐयारी हुई है, असल में कुमारी और चपला दोनों जीती हैं, यह लाशें उन […]

चंद्रकांता तीसरा अध्याय/देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 वह नाजुक औरत जिसके हाथ में किताब है और जो सब औरतों के आगे-आगे आ रही है, कौन और कहाँ की रहने वाली है, जब तक यह न मालूम हो जाए तब तक हम उसको वनकन्या के नाम से लिखेंगे। धीरे-धीरे चल कर वनकन्या जब उन पेड़ों के पास पहुँची जिधर आड़ […]

चंद्रकांता चौथा अध्याय/देवकीनन्दन खत्री

बयान – 1 वनकन्या को यकायक जमीन से निकल कर पैर पकड़ते देख वीरेंद्रसिंह एकदम घबरा उठे। देर तक सोचते रहे कि यह क्या मामला है, यहाँ वनकन्या क्यों कर आ पहुँची और यह योगी कौन हैं जो इसकी मदद कर रहे हैं? आखिर बहुत देर तक चुप रहने के बाद कुमार ने योगी से […]

दोहे/अनन्त आलोक

बिल्ली रस्ता काटती, होती है बदनाम l मुझको अपना काम है, उसको अपना काम l1l हिंदी की चौपाल पर, बैठे चार चिराग | तय था देंगे रौशनी, लगा रहे हैं आग |2| लेखक तो लेखक हुआ, बेशक झोला छाप | पुस्तक तेरी जेब में, जितनी मर्जी छाप |3| सोते उठते फोन से, होती आँखें चार […]

नये जमाने की मुकरी/भारतेन्दु हरिश्चंद्र

सब गुरुजन को बुरो बतावै । अपनी खिचड़ी अलग पकावै । भीतर तत्व न झूठी तेजी । क्यों सखि साजन ? नहिं अँगरेजी । तीन बुलाए तेरह आवैं । निज निज बिपता रोइ सुनावैं । आँखौ फूटे भरा न पेट । क्यों सखि साजन ? नहिं ग्रैजुएट । सुंदर बानी कहि समुझावै । बिधवागन सों […]

अंधेर नगरी चौपट्ट राजा/भारतेन्दु हरिश्चंद्र

ग्रन्थ बनने का कारण बनारस में बंगालियों और हिन्दुस्तानियों ने मिलकर एक छोटा सा नाटक समाज दशाश्वमेध घाट पर नियत किया है, जिसका नाम हिंदू नैशनल थिएटर है। दक्षिण में पारसी और महाराष्ट्र नाटक वाले प्रायः अन्धेर नगरी का प्रहसन खेला करते हैं, किन्तु उन लोगों की भाषा और प्रक्रिया सब असंबद्ध होती है। ऐसा […]