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घरानों की परम्परा/डॉ.लता अग्रवाल ‘तुलजा’

हस्तिनापुर साम्राज्य में आज बहुत सरगर्मी है। महल के बाहर कई महिलाएं मदिरापान और द्युत के विरोध में नारे बाजी कर रही थीं | विरोध के स्वर रनिवास तक पहुंचे |

“सेविका ! पता करो बाहर किस बात को लेकर शोर मचा है ?” विश्रामकक्ष में विश्राम कर रही द्रोपदी ने पंखा झल रही सेविका से पूछा |

“महारानी ! ये साम्राज्य की महिलाएं हैं , जो महाराज युधिष्ठिर के समक्ष द्युत क्रीडा एवं मदिरापान पर रोक लगाने का सत्याग्रह करना चाहती हैं। सेविका का यह कथन सुनते ही द्रोपदी तीव्रता से राजमहल के मुख्यद्वार की ओर बढ़ गई।

” महारानी द्रोपदी ! असमय, इस तरह कहाँ चल दीं ?” युधिष्ठिर ने द्रौपदी को टोकते हुए कहा।

“महाराज ! बाहर नगर की स्त्रियाँ द्युत क्रीडा एवं मदिरापान के विरोध में सत्याग्रह कर रही हैं मैं वहीं जा रही हूँ। ”

” तुम्हारा वहाँ क्या काम …प्रिये ?”

“धर्मराज ! मुझसे बेहतर द्युत क्रीडा व मदिरापान के दोष को कौन समझ सकता है|”

“मगर पांचाली, अब उन बातों से क्या लाभ ?…अब तो महाभारत समाप्त हो गया…तुम्हारे खुले केश दु:शासन के लहू से नहा लिए, ..दुर्योधन से तुम्हारे अपमान का बदला भी पूरा हुआ। हमारा राज्य हमें मिल गया… तुम पटरानी बन गईं। फिर क्यों द्रोपदी ?”

“महाराज ! कुरु वंश ने द्युत क्रीडा और मदिरापान का बहुत बड़ा मूल्य चुकाया है । मैं नहीं चाहती कि इस साम्राज्य में फिर कोई नारी किसी युधिष्ठिर के मद्यपायी होने पर किसी दुर्योधन की बदनियति का शिकार हो, फिर से इस साम्राज्य में कोई महाभारत हो |”

” तुम्हें ऐसा क्यों लगता है द्रोपदी ?”

” महाराज ! पुरुष का यह व्यसन नारी जीवन के लिए अभिशाप साबित हो रहा है , साथ ही मुझे चिंता…उन लाखों निरीह प्राणियों की भी है जो नारी के सम्मान से खिलवाड़ के कारण उत्पन्न महाभारत में अकारण मारे जाते हैं। ”

” बीती पर बिंदी लगाओ द्रोपदी। और महल में चलो | द्युत और मदिरापान तो राजवंशों के मनोरंजन के साधन हैं …इन्हें कैसे बंद किया जा सकता है ? ”

” कैसे बिंदी लगाऊँ महाराज , द्युत और मदिरापान राजवंशों के मनोरंजन साधन हो सकते हैं किन्तु नारी मनोरंजन का साधन नहीं …! आखिर मैं पटरानी हूँ साम्राज्य की । प्रजा मेरे लिए सन्तान तुल्य है। संतान की रक्षा करना धर्म है मेरा । ये परम्पराएं जो बड़े घरानों से चलन में आती हैं वे समाज के लिए पत्थर की लकीर बन संकट का कारण बनती हैं | अत: उन्हें बन्द होना ही होगा महाराज ।” कहते हुए द्रोपदी महल के बाहर खड़ी स्त्रियों की अगुआई में खड़ी हो गई ।

लेखक

  • डॉ. लता अग्रवाल ‘तुलजा’

    डॉ. लता अग्रवाल ‘तुलजा’ (वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद) शिक्षा - एम ए अर्थशास्त्र., एम ए हिन्दी, एम एड., पी एच डी हिन्दी. जन्म – शोलापुर महाराष्ट्र अनुभव- महाविद्यालय में प्राचार्य । आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर सक्रियता, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में रचनाएँ प्रकाशित | मो – 9926481878 संग्रह प्रकाशनः- ( एकल पुस्तकें) शिक्षा एवं साहित्य पर 70 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित लघुरूपक – ( २० पुस्तकें ) साँझा संग्रह – (अनेक ) सम्मान अंतराष्ट्रीय सम्मान – 4 राष्ट्रीय सम्मान – लभगभ 60 से अधिक सम्मान 14 राज्यों से उत्कृष्ट लेखन हेतु सम्मानित | निवास - डॉ. लता अग्रवाल ‘तुलजा’, 30 सीनियर एम् आई जी , अप्सरा कोम्प्लेक्स A सेक्टर, इंद्रपुरी भेल क्षेत्र भोपाल -462022

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