गीत अभी तक ज़िंदा है
कैसे अलग करोगे बोलो
साँसों का बाशिंदा है,
सतयुग त्रेता द्वापर बीते
गीत अभी तक ज़िंदा है।
लाख यत्न सब करके हारे
चलती हैं इसकी साँसें,
रोक न पाई दुनिया इसको
भले लगाईं पग फाँसें।
वधिक पाश में कभी न फँसता
ये आज़ाद परिंदा है।।
गीत अभी तक ज़िंदा है।
साथ नहीं थी खिड़की कोई
सदा दरारों से ताका,
माल पुआ की बातें छोड़ो
करता आया है फाका।
गिला नहीं गैरों से कोई
अपनों से शर्मिंदा है।।
गीत अभी तक ज़िंदा है।
भीड़ भरी दुनिया की महफ़िल
रहता है तन्हाई में,
चलने लगतीं थमती साँसें
यादों की पुरवाई में।
सदा प्रशंसा समझ जिया है
तोड़ न पाई निंदा है।।
गीत अभी तक ज़िंदा है।
गीत अभी तक ज़िंदा है/डॉ. बिपिन पाण्डेय