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चाँदी का चमचा/हबीब तनवीर

पात्र

1. दुकानदार
2. पड़ोसिन
3. मित्र
4. कुछ पड़ोसी
5. टोनी

समय : प्रातः काल

खेल की अवधि : दस मिनट

स्थान : सड़क के किनारे बंबई शहर का एक तिमंजिला मकान

काल : वर्तमान

(मंच ऐसा हो मानो एक सड़क है जो दाएँ से बाएँ जाती है। इस सड़क पर चलने वालों के सामने ही एक मकान है जिसकी केवल अगली दीवार और दीवार की अनगिनत खिड़कियाँ दिखाई दे रही हैं। मकान के बीचोंबीच एक बड़ा फाटक है जहाँ से ऊपर जाने को सीढ़ियाँ हैं। इस फाटक के पास ही एक दुकान है जो खुलने पर दीवार से तनिक आगे सड़क तक निकल जाती है। दुकान खुली है, दुकानदार अपने स्थान पर बैठा है। पड़ोसिन दाईं ओर से आती है और मकान के अंदर जाना ही चाहती है कि दुकानदार उससे कहता है )

दुकानदार : मुहल्ले-पड़ोस में एक-दूसरे का बड़ा सहारा रहता है।

पड़ोसिन : मुझसे कुछ कहा ?

दुकानदार : मैंने कहा, यह शहर भी अनोखा है।

पड़ोसिन : क्या ?

दुकानदार : यह मुहल्ला भी अनोखा है और यह चाल भी बिल्कुल अनोखी है।

पड़ोसिन : और यहाँ के लोग भी अनोखे हैं। बात ऐसी करते हैं कि कुछ भी पल्ले न पड़े।

दुकानदार : परदेस में कहीं अपने शहर का कोई दिख जाए, तो मन प्रसन्न हो जाता है। चाहे अपने शहर में कभी उससे बात भी न की हो, लेकिन देखते ही मन ललक उठता है। और एक यह शहर है – बंबई, कि पड़ोसी तक का ख़्याल नहीं करते ।

पड़ोसिन : मुझसे बेकार की बातें मत करो, समझे ! मैं क्यों करने लगी तुम्हारा ख़्याल?

दुकानदार : लोग ख़्याल नहीं करते न सही, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि जुल्म करें ।

पड़ोसिन : देखो मुझे मज़ाक़ अच्छा नहीं लगता, मैं कहे देती हूँ ।

दुकानदार : मुझे भी तो मज़ाक़ अच्छा नहीं लगता ।

पड़ोसिन : बदतमीज़ ।

दुकानदार : बदतमीज़ी का रोना तो मुझे रोना चाहिए।

पड़ोसिन : मुझे गालियाँ दोगे तो…..

दुकानदार : मेरी ओर देखिए, मेरे सिर पर रोज़ कूड़ा बरसता है और मैं उफ तक नहीं करता ।

पड़ोसिन : क्या मतलब?

दुकानदार : यह भी कोई मज़ाक़ है? सुबह – सुबह आदमी नहा-धो दुकान खोल कर बैठे और बैठते ही धूल-मिट्टी में नहा जाए। सारे घर का कूड़ा-करकट मेरे ही सिर पर फेंका जाता है।

पड़ोसिन : मुझे दोष देते हो? मुझे क्या पड़ी है कि रोज़ सुबह तुम्हारे सिर पर कूड़ा फेंकने आऊँ ।

दुकानदार : तुम नहीं तो कोई और होगा।

पड़ोसिन : किसी और से मेरा क्या सरोकार ? औरतों से बात करने से पहले ज़रा बोलने का ढंग सीख लो ।

(मित्र बाईं ओर से भीतर आता है ।)

मित्र : क्या बात है भई ?

दुकानदार : क्या बताएँ साहब !

पड़ोसिन : बोलने की तमीज़ नहीं बताएँगे क्या? छेड़छाड़ करते हैं । भलेमानसों को दोष देते हैं, लुच्चे कहीं के ।

दुकानदार : क्यों बात का बतंगड़ बनाती हो ।

पड़ोसिन : बात का बतंगड़ मैं बना रही हूँ या तुम? आने जाने वालों के नाक में दम कर रखा है। रास्ता चलना मुश्किल हो गया है । एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है। बस अब इस मुहल्ले में बहू बेटियों का निबाह नहीं । वाह भई वाह, अच्छा आदमी है।

( कुछ पड़ोसी इकट्ठे हो जाते हैं)

दो-तीन आदमी : क्या बात है ? हुआ क्या? झगड़ा काहे का है? आखिर मामला क्या है ?

पड़ोसिन : दुकान यहाँ से न हटवा दी तो कहना ! क्या समझ रखा है ! छठी का दूध याद आ जाएगा।

दुकानदार : इतना बिगड़ती क्यों हो? मैंने तुमसे क्या कहा ? मेरा तो सिर्फ़ यह मतलब था कि ज़रा देखतीं कि आख़िर यह करतूत किसकी है और उसे मना करतीं । तुमने तो आसमान सिर पर उठा लिया।

पड़ोसिन : कौन-सी करतूत ?

दुकानदार : अरे भई यह कौन मेरे सिर पर कूड़ा फेंक देता है । उसे ज़रा आप रोकतीं।

पड़ोसिन : तुम्हारी नौकर हूँ ?

दुकानदार : भई तुम तो उल्टी बात कर रही हो। मैं सिर्फ़ यह कहता हूँ कि अगर कभी नज़र पड़ जाए, तो मुझे बताइए कि कौन साहब रोज़ सुबह मेरे जलपान का प्रबंध कर देते हैं ? बस कहीं से एक खिड़की खुलती है और कूड़ा मेरे सिर पर ऐसे बरसता है मानो भगवान का प्रसाद हो । एक ही मकान में रहने का यह मतलब है कि ज़रा एक-दूसरे पर निगाह रखें।

पड़ोसिन : मुझे खुफिया पुलिस समझ रखा है तुमने ?

दुकानदार : ( हाथ जोड़कर) अच्छा बाबा माफ करो, तुमसे बात करना एक मुसीबत मोल लेना है ।

पड़ोसिन : ( तिनक कर) वाह ! जिसे देख लिया उसी को दोष दे दिया। वाह भई वाह! बस औरत से बात करने के लिए बहाना चाहिए। कैसे-कैसे आदमी पड़े हैं दुनिया में। सब भगवान की लीला है। वाह !

(अंदर चली जाती है ।)

कुछ पड़ोसी : अजीब औरत है ! हवा से लड़ती है । पर ऐसी औरत से कोई बात ही क्यों करे? सारा मुहल्ला जानता है, कैसी बेढब है। इसी को कहते हैं आ बैल मुझे मार । झगड़ालू आदमी को शर्मिंदा करना है तो चुप रहने से अच्छा और कोई इलाज नहीं ।

मित्र : आखिर हुआ क्या था ?

दुकानदार : वैसे कुछ भी नहीं हुआ। और अगर देखा जाए, तो मेरे साथ दिन भर जो होता रहता है, दुनिया में किसी के साथ न होता होगा। कभी नाशपाती के छिलके आकाश से बरस रहे हैं, कभी जूठन की वर्षा हो रही है । ऊपर का सारा कचरा दुकान के अंदर चला आ रहा है। दुनिया में लोग अच्छे नागरिकों की तरह रहते हैं। एक-दूसरे के दुख-दर्द में काम आते हैं। अभी कल ही की बात है टोनी मुझे मिला। वही टोनी जो इंग्लैंड गया था। कह रहा था…. लो टोनी तो यहीं आ गया। इसी से पूछ लो । क्यों टोनी क्या देखा था तूने लंदन के स्टेशन पर ?

टोनी : (आगे बढ़कर) हम उधर जहाज़ में काम करता है। तो जहाज़ में सब दुनिया का चक्कर लगाया। अमेरिका, आस्ट्रेलिया, इटली…।

दुकानदार : अरे वह तो सबको मालूम है। दुनिया का भूगोल सबको क्यों बता रहा है। लंदन स्टेशन का क़िस्सा सुना । अरे वही क़िस्सा, एक आदमी अकड़ता हुआ चला जा रहा था… I

टोनी : ओह ! उधर लंदन में भी हम गया इंग्लैंड के अंदर । तो हम उधर क्या देखा कि हम देखा एक आदमी ऐसा मूँछ पर ताव देता एकदम तेज़ चल रहा है और उसका पैर उधर ज़मीन पर नहीं पड़ता था। उधर आसमान के ऊपर पड़ता था। दूसरा हाथ में उधर एक छड़ी रखेला था । उसको घुमाता था। सीटी बजाता था और उधर एक हाथ से मूँछ पर ताव देता था। इस माफक ( यह कहकर टोनी उस आदमी की नकल करता है और फिर कहता है) इस माफक इस माफक चलता था । इच्चक दुच्चक । इतने में उधर से एक आदमी से टक्कर खाके धमड़ा से नीचू इस माफक ! (गिर कर बताता है) पर जानते हो क्या हुआ ? जिस आदमी से उसका टक्कर हुआ था वह हँस दिया और उसको उठा के हाथ में छड़ी दिया, चश्मा दिया, हैट दिया और चल दिया। वह कपड़ा झाड़ते हुए आगे बढ़ा तो उसका चाल बिल्कुल ठीक हो गया था। नीचू आँख करके चलता था ।

दुकानदार : सुना आपने? और एक यह शहर है, पड़ोसी के सिर पर कूड़ा डालते हैं और सहानुभूति दिखाने के बजाय उल्टा उसी पर बिगड़ते हैं।

( ऊपर एक खिड़की से दो हाथ बाहर निकलते हैं, जिनमें एक टोकरी है। टोकरी का सारा कूड़ा-करकट उलट दिया जाता है। कूड़ा दुकानदार के सिर पर गिरता है । वह बौखला जाता है। लोग उसके कपड़े झाड़ने लगते हैं)

थू-थू, छी-छी, छी-छी, अरे राम-राम, सारी धूल मुँह में घुस गई। अभी नहाया था। अब दो घंटे तक सिर धोऊँगा तब कहीं बालों में से यह कचरा निकलेगा। देखा आप लोगों ने? बस दिन भर यही होता है ( ऊपर खिड़की की ओर पुकार कर कहता है) यह किसने ऊपर से कचरा फेंका ? आँखें फूट गई हैं? नीचे आदमी रहते हैं या जानवर ? हिम्मत है तो बाहर आओ।

मित्र : इतने गर्म क्यों होते हो?

दुकानदार : मैं सिर्फ़ यह कहता हूँ कि आदमी कसूर करे लेकिन कायर न बने। सिर्फ़ सूरत देखना चाहता हूँ उसकी । बस एक बार सामने आ जाए।

मित्र : मैं बुला दूँ उसे?

दुकानदार : आप क्या बुलाएँगे ! आप में इतना साहस कहाँ ?

मित्र : अच्छा देखिए (खिड़की की ओर देखकर पुकारता है) यह चाँदी का चमचा किसका है? अरे भई कचरे के अंदर यह चाँदी का चमचा किसने फेंक दिया? बोलते क्यों नहीं, किसका है यह चाँदी का चमचा? बोलते हो या हम ले जाएँ ?

पड़ोसिन : ( खिड़की से झाँककर ) क्षमा कीजिएगा मेरा है चमचा ।

मित्र : तो नीचे आकर ले जाइए।

पड़ोसिन : आप ही ज़रा कष्ट करके पहुँचा देते ।

मित्र : मैं क्यों आऊँ? आपका चमचा है, आकर ले जाइए।

पड़ोसिन : मेरी तबीयत ज़रा ठीक नहीं है ।

मित्र : अच्छा तो हम चमचा यहाँ दुकान पर छोड़ देते हैं किसी के हाथ मँगवा लीजिएगा ।

पड़ोसिन : नहीं, नहीं, मैं आ रही हूँ ।

( खिड़की से हट जाती है)

मित्र : देखा आपने। अब कैसी मीठी-मीठी बातें कर रही है । सच है एक बुराई से दुनिया भर की बुराइयाँ आ जाती हैं भाई ।

दुकानदार : भई लेकिन आप कमाल के आदमी हैं। मैं तो हर नुस्खा आजमा चुका था, वह उल्टा मुझ ही पर बिगड़ती थी । पर मजाल है जो कभी हाथ आए । सदा से मुझे इसी औरत पर शक था। आखिर वही निकली।

पड़ोसिन : (आते हुए) क्षमा कीजिएगा, नौकरानी से भूल हो गई । उसने कूड़े के साथ फेंक दिया होगा चमचा ।

मित्र : चमचा तो नहीं फेंका, हाँ केले के छिलके और अपने घर का सारा कूड़ा आपने भूल से इनके सिर पर ज़रूर फेंक दिया है। बस यह उठाकर ले जाइए ।

( पड़ोसिन झिझकती है)

चलिए उठाइए।

एक आदमी : आप ही का तो है ।

दूसरा : कूड़ा फेंका है तो अब उठाइए ।

सब : उठाइए। चलिए साहब उठाइए । मुहल्ले भर में अपने घर की गंदगी फैलाना, यह कहाँ की रीत है । यह भी कोई सफ़ाई है! अपना घर साफ किया दूसरे का गंदा कर दिया – चलिएँ उठाइए कूड़ा।…

(पड़ोसिन कूड़ा उठाती है)

मित्र : और वायदा कीजिए कि अब कभी ऐसा न करेंगी ।

पड़ोसिन : क्षमा कीजिए । कान पकड़े, अब कभी कूड़ा नीचे नहीं फेंकूँगी ।

मित्र : घर का कूड़ा यों सड़क पर नहीं फेंक देते । नीचे लोग रहते हैं। सड़क पर आते-जाते हैं । आपकी तो सफाई हुई लेकिन सारे मोहल्ले की गंदगी। कूड़े के लिए टीन बना है, वहाँ फिंकवा दिया कीजिए ।

( पड़ोसिन कूड़ा उठा चुकी है । एक केले का छिलका पड़ा रह गया था। जाते समय पैर उस पर पड़ जाता है, फिसल पड़ती है । सब खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं ।)

देखा आपने। बुराई का यह फल मिलता है। जैसी करनी वैसी भरनी ।

( पर्दा गिरता है ।)

लेखक

  • हबीब तनवीर

    हबीब तनवीर (1 सितंबर, 1923-8 जून, 2009) भारत के मशहूर पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता थे। हबीब तनवीर का जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुआ था, जबकि निधन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ। उनके बचपन का नाम हबीब अहमद खान था। उन्होंने लॉरी म्युनिसिपल हाईस्कूल से मैट्रीक पास की, म़ॉरीस कॉलेज, नागपुर से स्नातक किया (1944) और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमए की। बचपन से हीं कविता लिखने का शौक चढ़ा। पहले तनवीर के छद्मनाम नाम से लिखना शुरू किया जो बाद में उनका पुकार नाम बन गया। उन्होंने 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित किया था। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं : नाटक :- आगरा बाज़ार – 1954, शतरंज के मोहरे – 1954, लाला शोहरत राय – 1954, मिट्टी की गाड़ी – 1958, गाँव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद – 1973, चरणदास चोर – 1975, पोंगा पण्डित, द ब्रोकन ब्रिज – 1995, ज़हरीली हवा – 2002, राज रक्त – 2006, फ़िल्म :- फ़ुट पाथ – 1953, राही – 1953, चरणदास चोर – 1975, गाँधी – 1982, ये वो मंज़िल तो नहीं – 1987, हीरो हीरालाल – 1988, प्रहार – 1991, द बर्निंग सीजन – 1993, द राइज़िंग: मंगल पांडे – 2005, ब्लैक & व्हाइट – 2008, पुरस्कार : हबीब तनवीर को संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड (1969), पद्मश्री अवार्ड (1983) संगीत नाटक एकादमी फेलोशीप (1996), पद्म भूषण(2002) जैसे सम्मान मिले। वे 1972 से 1978 तक संसद के उच्च सदन यानि राज्यसभा में भी रहे। उनका नाटक चरणदास चोर एडिनवर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टीवल (1982) में पुरस्कृत होने वाला ये पहला भारतीय नाटक गया।

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