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कारतूस/हबीब तनवीर

(बच्चों का नाटक, वज़ीर अली माज़ूल शाहे अवध पर)

पात्र

1. कर्नल
2. लेफ्टिनेंट
3. सिपाही (गोरा)
4. सवार

समय : 1799 रात

दृश्य : लड़ाई का खेमा

(गोरखपुर के जंगल में कर्नल कॉलिंस के खेमे का अंदरूनी हिस्सा, कर्नल एक अंग्रेज़ लेफ्टिनेंट के साथ बैठे बातें कर रहा है । खेमे के बाहर चाँदनी चिटकी हुई है। अंदर लैंप जल रहा है )

कर्नल : जंगल की ज़िंदगी बड़ी ख़तरनाक होती है।

लेफ्टिनेंट : हफ़्तों हो गए यहाँ खेमा डाले हुए, सिपाही भी तंग आ गए हैं। ये वज़ीर अली आदमी है या भूत, हाथ ही नहीं लगता ।

कर्नल : उसके अफ़साने सुनकर रॉबिनहुड के कारनामे याद आ जाते हैं। अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ उसके दिल में किस क़दर नफरत है। कोई पाँच महीने हुकूमत की होगी, मगर इस पाँच महीने में वो अवध के दरबार को अंग्रेज़ी असर से बिल्कुल पाक कर देने में तकरीबन कामयाब हो गया था ।

लेफ्टिनेंट : कर्नल कॉलिंस, यह सआदत अली कौन है?

कर्नल : आसिफ़ुद्दौला का भाई है। वज़ीर अली का चचा और उसका दुश्मन। असल में नवाब आसिफ़ुद्दौला के यहाँ लड़के की कोई उम्मीद न थी । वज़ीर अली की पैदायश को सआदत अली ने अपनी मौत ख़याल किया ।

लेफ्टिनेंट : मगर सआदत अली को अवध के तख़्त पर बिठाने में क्या मसलहत थी ।

कर्नल : सआदत अली हमारा दोस्त है, और बहुत ऐशपसंद आदमी है। उसने हमें अपनी आधी मुमलिकत दे दी और दस लाख रुपए नकद । अब वह भी मज़े करता है और हम भी ।

लेफ्टिनेंट : सुना है यह वज़ीर अली अफ़ग़ानिस्तान के बादशाह शाहज़मा को हिंदुस्तान पर हमला करने की दावत दे रहा है ।

कर्नल : जी हाँ, उसकी आज़ादी बहुत ख़तरनाक है। अफ़ग़ानिस्तान को हमले की दावत सबसे पहले असल में टीपू सुल्तान ने दी, फिर वज़ीर अली ने भी उसे दिल्ली बुलाया और शमसुद्दौला ने भी ।

लेफ्टिनेंट : शमसुद्दौला ?

कर्नल : हाँ भई ! नवाब बंगाल का निसबती भाई । वह आदमी भी है बहुत ख़तरनाक ।

लेफ्टिनेंट : इसका तो यह मतलब हुआ कि कंपनी के ख़िलाफ़ सारे हिंदुस्तान में एक लहर दौड़ गई है।

कर्नल : जी हाँ! और अगर यह कामयाब हो गई तो बक्सर और पलासी के कारनामे धरे रह जाएँगे। और कंपनी जो कुछ लॉर्ड क्लाइव के हाथों हासिल कर चुकी है, लॉर्ड वैलाज़िली के हाथों वह सब खो बैठेगी।

लेफ्टिनेंट : वज़ीर अली को आज़ाद छोड़ देना किसी भी हालत में मुनासिब नहीं। हमें किसी न किसी तरह इस शख़्स को गिरफ़्तार कर ही लेना चाहिए ।

कर्नल : पूरी एक फौज लिए उसका पीछा कर रहा हूँ मैं। और बरसों से वह हमारी आँखों में धूल डाले इन्हीं जंगलों में फिर रहा है और हाथ नहीं आता। उसके साथ चंद जांबाज़ हैं। मुट्ठी भर आदमी, मगर दमदार ।

लेफ्टिनेंट : सुना है वज़ीर अली जाती तौर से भी बहुत बहादुर आदमी है।

कर्नल : बहादुर न होता तो यूँ कंपनी के वकील को क़त्ल कर देता ?

लेफ्टिनेंट : यह क़त्ल का क्या क़िस्सा हुआ था कर्नल ?

कर्नल : क़िस्सा क्या हुआ था, माजूल करने के बाद हमने वज़ीर अली को बनारस पहुँचा दिया और तीन लाख रुपए सालाना वज़ीफा मुकर्रर कर दिया। कुछ महीने बाद गवर्नर जनरल ने उसे कलकत्ते तलब किया। वज़ीर अली कंपनी के वकील के पास गया, जो बनारस में रहता था। और उससे शिकायत की कि गवर्नर जनरल उसे कलकत्ते में क्यूँ तलब करता है। वकील ने शिकायत की परवाह न की, उल्टा उसे बुरा-भला सुना दिया । वज़ीर अली के दिल में यूँ भी अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ नफरत कूट-कूट कर भरी है। उसने खंजर से वकील का काम तमाम कर दिया।

लेफ्टिनेंट : और भाग गया ?

कर्नल : अपने जांनिसारों समेत आजमगढ़ की तरफ भाग गया। आजमगढ़ के हुक्मरां ने उन लोगों को अपनी हिफ़ाज़त में घाघरा तक पहुँचा दिया। अब यह कारवाँ इन जंगलों में कई साल से भटक रहा है।

लेफ्टिनेंट : आख़िर इस वज़ीर अली की स्कीम क्या है ?

कर्नल : स्कीम यह है कि किसी तरह नेपाल पहुँच जाए। अफ़गानी हमले का इंतज़ार करे। अपनी ताकत बढ़ाए। सआदत अली को माज़ूल करके खुद अवध पर कब्ज़ा करे । और अंग्रेज़ों को हिंदोस्तान से निकाल दे।

लेफ्टिनेंट : नेपाल पहुँचना तो कोई ऐसा मुश्किल नहीं। मुमकिन है पहुँच गया हो ।

कर्नल : उसके सर पर भारी इनाम मुकर्रर कर दिया गया है। हमारी फ़ौजें और नवाब सआदत अली ख़ाँ के सिपाही बड़ी मुस्तैदी से उसका पीछा कर रहे हैं । हमें अच्छी तरह मालूम है कि वह इन्हीं जंगलों में है। अब उसको पकड़ लेना इतना मुश्किल काम नहीं । ( एक सिपाही तेज़ी से प्रवेश करता है ।)

कर्नल : ( उठकर ) क्या बात है ?

गोरा : दूर से गर्द उठती दिखाई दे रही है ।

कर्नल : सिपाहियों से कह दो कि तैयार रहें। (सिपाही सलाम करके चला जाता है ।)

लेफ्टिनेंट : (जो खिड़की से बाहर देखने में मसरूफ था ।) गर्द तो ऐसी उड़ रही है जैसे पूरा एक काफ़िला चला आ रहा हो, मगर मुझे तो एक ही सवार दिखाई देता है।

कर्नल : ( खिड़की के पास जाकर ) हाँ एक ही सवार है। सरपट घोड़ा दौड़ाये चला आ रहा है ।

लेफ्टिनेंट : और सीधा हमारी ही तरफ़ आता मालूम होता है ।

कर्नल : (कर्नल ताली बजाकर सिपाही को बुलाता है)

(सिपाही से) देखो यह सवार जो हमारी तरफ़ आ रहा है। हो सकता है हमारा ही मुखबिर हो, फिर भी सिपाहियों से कहो उस पर नज़र रखें। अगर वो हमारी तरफ़ आता है तो उसे आने दिया जाए और अगर किसी और तरफ़ घूम जाता है। तो उसका पीछा करे ।

( सिपाही सलाम करके चला जाता है)

लेफ्टिनेंट : शुबे की तो कोई गुंजाइश ही नहीं, तेजी से इसी तरफ़ आ रहा है।

कर्नल : आने दो ! देखते हैं ।

( टापों की आवाज़ बहुत करीब आकर रुक जाती है | )

सवार : ( बाहर से) मुझे कर्नल से फौरन मिलना है ।

गोरा : ( चिल्लाकर) बहुत ख़ूब ! ज़रा ठहरिए मैं अभी इत्तला देता हूँ ।

सवार : ( बाहर से) शू… आहिस्ता बोलो !

गोरा : (अंदर आता है) हुजूर सवार आपसे मिलना चाहता है ।

कर्नल : भेज दो। (गोरा बाहर जाता है)

लेफ्टिनेंट : वज़ीर अली का ही कोई आदमी होगा। हमसे मिलकर उसे गिरफ्तार करवाना चाहता होगा या फिर शायद सआदत अली ख़ाँ का आदमी हो। इनाम के लालच में हमें ख़बर देने के लिए आया हो ।

कर्नल : ख़ामोश रहो! ( सवार सिपाही के साथ अंदर आता है)

सवार : (आते ही पुकार उठता है) मुझे कर्नल के साथ बिल्कुल ह में बात करना है। बिल्कुल तन्हाई में ।

कर्नल : साहब यहाँ कोई गैरआदमी नहीं है । आप राज़ेदिल कह दें ।

सवार : दीवार हम गोश दारद! मुझे आपके साथ बिल्कुल तन्हाई चाहिए ।

(कर्नल लेफ्टिनेंट और सिपाही को इशारा करता है दोनों बाहर चले जाते हैं। जब कर्नल और सवार खेमे में तन्हा रह जाते हैं। तो ज़रा वक्फे के बाद चारों तरफ़ देखकर सवार कहता है । )

सवार : आपने इस मुकाम पर क्यों खेमा डाला है?

कर्नल : कंपनी का हुक्म है कि वज़ीर अली को गिरफ़्तार किया जाए।

सवार : लेकिन इतना लाओ लश्कर क्या माने?

कर्नल : गिरफ़्तारी में मदद देने के लिए।

सवार : वज़ीर अली की गिरफ़्तारी बहुत मुश्किल है साहब ।

कर्नल : क्यों ?

सवार : वह एक जांबाज़ सिपाही है।

कर्नल : मैंने भी यही सुन रखा है। आप क्या चाहते हैं ?

सवार : उसकी गिरफ़्तारी के लिए बस एक आदमी काफ़ी है।

कर्नल : मतलब ?

सवार : मुझे चंद कारतूस इनायत कीजिए ।

कर्नल : किसलिए?

सवार : वज़ीर अली को गिरफ़्तार करने के लिए।

कर्नल : (कुछ सोचने के बाद कारतूस निकालकर देता है) – यह लो दस कारतूस ।

सवार : ( मुस्कुराते हुए) शुक्रिया ।

कर्नल : आपका नाम ?

सवार : वज़ीर अली। आपने मुझे कारतूस दिए इसलिए आपकी जां बख़्शी करता हूँ ।

(यह कहकर बाहर निकल जाता है, टापों का शोर सुनाई देता है। कर्नल एक सन्नाटे में है। हक्का-बक्का खड़ा है कि लेफ्टिनेंट अंदर आता है ।)

लेफ्टिनेंट : कौन था ?

कर्नल : (दबी ज़बान से अपने आप से कहता है) एक जांबाज सिपाही ।

(परदा)

लेखक

  • हबीब तनवीर

    हबीब तनवीर (1 सितंबर, 1923-8 जून, 2009) भारत के मशहूर पटकथा लेखक, नाट्य निर्देशक, कवि और अभिनेता थे। हबीब तनवीर का जन्म छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुआ था, जबकि निधन मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में हुआ। उनके बचपन का नाम हबीब अहमद खान था। उन्होंने लॉरी म्युनिसिपल हाईस्कूल से मैट्रीक पास की, म़ॉरीस कॉलेज, नागपुर से स्नातक किया (1944) और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमए की। बचपन से हीं कविता लिखने का शौक चढ़ा। पहले तनवीर के छद्मनाम नाम से लिखना शुरू किया जो बाद में उनका पुकार नाम बन गया। उन्होंने 1959 में दिल्ली में नया थियेटर कंपनी स्थापित किया था। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं : नाटक :- आगरा बाज़ार – 1954, शतरंज के मोहरे – 1954, लाला शोहरत राय – 1954, मिट्टी की गाड़ी – 1958, गाँव का नाम ससुराल मोर नाम दामाद – 1973, चरणदास चोर – 1975, पोंगा पण्डित, द ब्रोकन ब्रिज – 1995, ज़हरीली हवा – 2002, राज रक्त – 2006, फ़िल्म :- फ़ुट पाथ – 1953, राही – 1953, चरणदास चोर – 1975, गाँधी – 1982, ये वो मंज़िल तो नहीं – 1987, हीरो हीरालाल – 1988, प्रहार – 1991, द बर्निंग सीजन – 1993, द राइज़िंग: मंगल पांडे – 2005, ब्लैक & व्हाइट – 2008, पुरस्कार : हबीब तनवीर को संगीत नाटक एकेडमी अवार्ड (1969), पद्मश्री अवार्ड (1983) संगीत नाटक एकादमी फेलोशीप (1996), पद्म भूषण(2002) जैसे सम्मान मिले। वे 1972 से 1978 तक संसद के उच्च सदन यानि राज्यसभा में भी रहे। उनका नाटक चरणदास चोर एडिनवर्ग इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टीवल (1982) में पुरस्कृत होने वाला ये पहला भारतीय नाटक गया।

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