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कलंकित उपासना/धर्मवीर भारती

मनुष्य ईश्वर से पूर्णता का वरदान माँगने गया । ईश्वर अपने कुटिल ओठ दबाकर मुसकराया और बोला- “मेरी उपासना करो, मैं तुम्हें पूर्णता का वरदान दूँगा।” मनुष्य ने असीम श्रद्धा से पुलकित होकर भगवान के चरणों पर अपना रजत मस्तक रख दिया और देर तक उपासना करता रहा। थोड़ी देर बाद मनुष्य ने सर उठाया […]

अमृत की मृत्यु/धर्मवीर भारती

सामने रखे हुए अग्निपात्र से सहसा एक हलके नीले रंग की लपट उठी और बुझ गयी । दूसरी लपट उठी और बुझ गयी। उसके बाद ही दहकते हुए अंगारे चिटखने लगे और उनमें से बड़ी-बड़ी चिनगारियाँ निकलकर कक्ष में उड़ने लगीं। अग्निपात्र के सामने बैठा था एक भिक्षु-काषाय वस्त्र, चौड़ा भाल, लम्बी और गठी हुई […]

कलाः एक मृत्यु चिह्न/धर्मवीर भारती

“मैं विवश हूँ राजकुमारी ! मैं व्यक्तियों की प्रतिमा का अंकन नहीं करता।” “व्यक्तियों की प्रतिमा का अंकन ! मैं व्यक्ति मात्र नहीं हूँ कलाकार, मैं सुन्दरी हूँ और सुन्दरी केवल व्यक्ति नहीं, व्यक्तित्व होती है। काली घटाओं के रेशों से बुनी हुई मेरे नयनों की कजरारी अज्ञानता, पुरवैया के झकोरों से काँपते हुए मृणाल […]

आधार और प्रेरणा/धर्मवीर भारती

सुगन्धित धूम्र की रेखाएँ शून्य पट पर लहराकर अनन्त में मिलने लगीं। शमी की झूलती हुई कोमल शाखाओं में गूंज उठा ऋचागान। बालक के स्वर में स्वर मिलाकर बालिका भी ऋचाएँ गाने लगी। उसका स्वर इतना मीठा था कि डाल पर बैठी कोयल जाकर चुप हो गयी । हरिण शावक तृण चरना भूलकर यज्ञमण्डप में […]

कमल और मुरदे/धर्मवीर भारती

“कमल ? लेकिन स्वर्ग में तो कमल होते ही नहीं !” देवदूतों ने कहा । “किन्तु बिना कमल के आज हमारा शृंगार अधूरा रह जायगा । शरद के निरंभ्र आकाश पर बादल के हल्के कदमों से बिजली की तेजी से नाचने वाली देवकन्याओं की वेणी कमल से शून्य रहेगी। इससे अच्छा तो यह है कि […]

एक-पत्र/धर्मवीर भारती

डियर राबर्ट, सुना है तुम कामन्स की बैठक में बंगाल के अकाल की जाँच की माँग करने वाले हो। सोफी के पास आये हुए पत्र से यह भी मालूम हुआ कि तुम्हारा विचार है कि अकाल की घटनाओं से भारत में असन्तोष फैलने की सम्भावना है और तुम्हें सन्देह है कि कहीं उससे युद्ध-प्रयत्नों में […]

हिन्दू या मुस्लमान/धर्मवीर भारती

सरकारी अस्पताल के बरामदे में 30 लाशें एक कतार में रक्खी हुई थीं। लाशें, नहीं उन्हें लाशें कहना गलत होगा, मगर उन्हें जिन्दा भी नहीं कहा जा सकता था। वे सूखी हड्डियों के मुरदार ढाँचे जिन पर जर्द, झुर्रीदार चमड़ा मढ़ा हुआ था । कलकत्ते की विभिन्न सड़कों से मुरदे उठाकर लाये गये थे इलाज […]

कफन चोर/धर्मवीर भारती

सकीना की बुखार से जलती हुई पलकों पर एक आँसू चू पड़ा। ‘‘अब्बा!’’ सकीना ने करीम की सूखी हथेलियों को स्नेह से दबाकर कहा, ‘‘रोते हो! छिह।’’ बूढ़े करीम ने बाँह से अपनी धुँधली आँखें पोंछते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम बुखार में जल रही हो और मैं तुम्हारे ओढ़ने के लिए एक चादर भी न […]

स्वर्ग और पृथ्वी/धर्मवीर भारती

कल्पना ने आश्चर्य में भरकर वातायन के दोनों पट खोल दिए। सामने अनंत की सीमा को स्पर्श करता हुआ विशाल सागर लहरा रहा था। तट पर बिखरी हुई उषा की हलकी गुलाबी आभा से चाँदनी की चंचल लहरें टकराकर लौट रही थीं। प्रशांत नीरवता में केवल चाँदनी की लहरों का मंद-मर्मर गंभीर स्वर नि:श्वासें भर […]

मुरदों का गाँव/धर्मवीर भारती

उस गाँव के बारे में अजीब अफवाहें फैली थीं। लोग कहते थे कि वहाँ दिन में भी मौत का एक काला साया रोशनी पर पड़ा रहता है। शाम होते ही कब्रें जम्हाइयाँ लेने लगती हैं और भूखे कंकाल अँधेरे का लबादा ओढ़कर सड़कों, पगडंडियों और खेतों की मेंड़ों पर खाने की तलाश में घूमा करते […]

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