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कफन चोर/धर्मवीर भारती

सकीना की बुखार से जलती हुई पलकों पर एक आँसू चू पड़ा।

‘‘अब्बा!’’ सकीना ने करीम की सूखी हथेलियों को स्नेह से दबाकर कहा, ‘‘रोते हो! छिह।’’

बूढ़े करीम ने बाँह से अपनी धुँधली आँखें पोंछते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम बुखार में जल रही हो और मैं तुम्हारे ओढ़ने के लिए एक चादर भी न ला सका।’’

सकीना बात काटकर बोली, ‘‘तो इसमें रोने की क्या बात? सुनते हैं, सरकार ने इंतजाम किया है। बहुत सा सस्ता कपड़ा आने वाला है। तब खरीद लेना। फिर मुझे तो जाड़ा भी नहीं लगता।’’ सकीना मुश्किल से अपनी कँपकँपी रोक पा रही थी।

‘‘सरकार!’’ करीम एक ठंडी साँस लेकर रह गया।

सकीना ने देखा, करीम बहुत दुःखी हो रहा है। फौरन ध्यान बँटाने के लिए बोली, ‘‘नींद नहीं आ रही अब्बा, कोई कहानी सुनाओ!’’

‘‘पगली! तुझे भी इस वक्त कहानी सूझती है। बेटा, हमीं लोगों के हालात कोई अखबार में छपा दे तो बड़ी दर्दनाक कहानी बन जाए!’’

‘‘नहीं, नहीं! कहानी सुनाओ!’’ सकीना छोटे बच्चों की तरह मचलकर बोली।

‘‘अच्छा, सुन!’’ करीम बोला, ‘‘यहीं लखनऊ का किस्सा है। नवाबी अमल था। छतरमंजिल में नवाब साहब की ऐशगाह थी। दिन भर दोस्तों के साथ ऐश करने के बाद जब नवाब साहब आरामगाह में जाते थे तो उनकी पलकों में गुलाबियों का नशा रहता और उनके कदमों में शराब की छलकन। उन्हें सहारा देने के लिए जीने की हर सीढ़ी पर दोनों ओर नौजवान बाँदियाँ रहती थीं, जिनके कंधों पर हाथ रखकर वे धीरे-धीरे ऊपर जाते थे। सुन रही है न?’’

‘‘हूँ!’’

‘‘अच्छा, तो एक दिन सभी बाँदियाँ मुर्शिदाबादी रेशम की पोशाक पहनकर खड़ी हुईं। नवाब साहब ने पहली बाँदी के कंधे पर हाथ रखा ही था कि रेशम की चिकनाहट की वजह से दुपट्टा फिसल गया और वे गिरते-गिरते बचे। नीचे से ऊपर तक बाँदियों में भय की एक लहर दौड़ गई। नवाब साहब सँभले और गरजकर बोले, ‘‘बदजातो! कल से तुम लोगों के कंधे नंगे रहने चाहिए।’’ और दूसरे दिन से उनके कंधे नंगे रहने लगे।

‘‘समझी बेटी, तब कपड़ों की कमी नहीं थी और न अब है; मगर हम गुलाम और गरीब तब भी नंगे रहते थे और अब भी नंगे रहते हैं। जानती है क्यों, ताकि अमीर लोग हमारे नंगे कंधों पर आसानी से हाथ जमाकर सोने और चाँदी की सीढि़यों पर चढ़ सकें…सो गई, सकीना!’’

सकीना सो गई थी।

करीम उठा। एक फटी चटाई पर बाँहों पर सिर रखकर लेट रहा। उसने दोपहर से कुछ नहीं खाया था। भूख लगी थी, मगर वह धीरे-धीरे सो गया। हिंदुस्तानियों की आदत है कि जब वे भूखे होते हैं तो सो जाते हैं और सपने देखने लगते हैं। करीम ने भी एक सपना देखा…।

हिंदुस्तानियों की तरह वह भी इस दुनिया से ऊबकर बहिश्त चला गया। आगे-आगे काँपता हुआ करीम और पीछे-पीछे अपने फटे कुरते को सँभालती हुई मासूम सकीना।

सामने तख्त पर खुदा था। करीम ने सिर झुकाकर कहा, ‘‘या खुदा! हम लोग नंगे हैं, भूखे हैं।’’

खुदा ने अपनी आँखें उठाईं। सकीना पर उसकी निगाह गड़ गई और उन्होंने बगल में बैठे हुए एक फरिश्ते से कहा, ‘‘हजरत, मैं देखता हूँ कि भूख में भी आदमी का हुस्न निखरता जाता है।’’

फरिश्ते ने अदब से सिर झुकाकर कहा, ‘‘हुजूर की नायाब कुदरत!’’

खुदा ने खुश होकर कहा, ‘‘अच्छा, तो इस हसीना का नाम हूरों में दर्ज कर लो।’’

फरिश्ते सकीना की ओर बढ़े।

‘‘खबरदार!’’ करीम की भूखी पसलियाँ गरज उठीं।

खुदा ने उसे देखा, ‘‘यह कौन है? निकालो इसे!’’

‘‘कमबख्त, तूने इनसाफ का ठेका लिया है।’’ करीम चीखा, ‘‘उफ, तुझमें खुदाई हो, मगर तूने अभी तक इनसानियत नहीं सीखी है, ओ धोखेबाज खुदा!’’

सकीना फरिश्तों के हाथों में छटपटाती हुई चीखी, ‘‘अब्बा!’’

करीम की आँखें खुल गईं। छटपटाती हुई सकीना चीख रही थी, ‘‘अब्बा!’’

करीम घबराकर उठा।

‘‘अब्बा जूड़ी चढ़ रही है।’’ थरथराती हुई सकीना बोली। वह पानी से निकली हुई मछली की तरह छटपटा रही थी। करीम लाचार होकर उसकी ओर देखता रहा। उसके पास नाम के लिए एक धोती भी न थी कि पूस की रात में जूड़ी से काँपती हुई रोगिन बेटी को ओढ़ा दे।

‘‘हाथ ऐंठ रहे हैं, अब्बा!’’ कहकर उसने हाथ झटके और महीनों का पहना हुआ जर्जर कुरता बगल के पास से चर्राकर फट गया। सकीना ने कुहनियों से लाज ढँकने की कोशिश की, मगर उसके हाथ की नसें तनी जा रही थीं। वह शर्म से तड़प गई।

करीम से अब न बरदाश्त हुआ। उसकी आँखों में खून उतर आया। उसका रोम-रोम सुलग उठा और उसने पैर पटककर कहा, ‘‘सकी! सकी! मैं कहीं से तुम्हारे लिए कपड़ा लाऊँगा, बेटी! कहीं से!’’ और झोंके की तरह वह बाहर निकल पड़ा।

कब्रगाह में लगे हुए पीपल के नीचे एक मुसलमान भिखमंगा बैठा था। सामने थोड़ी सी आग जल रही थी। उसने एक लकड़ी से आग कुरेदते हुए कहा, ‘‘या खुदा! गजब की सर्दी है। सुना था, चौदहवीं सदी में कयामत होगी, इनसाफ होगा। कयामत बरपा है, मगर इनसाफ का पता भी नहीं।’’

एकाएक तीसरी कब्र के पास एक मनुष्य की छाया दीख पड़ी। वह कब्र आज ही खुदी थी और जुड़ाई करनेवाले मजदूर फावड़ा और कन्नी वहीं छोड़कर चले गए थे। उस छाया ने फावड़ा उठाया और चलाना शुरू कर दिया। भिखमंगा डर से काँप गया। यह कौन है? कोई जिन? जिन नहीं, फरिश्ता होगा। कब्र खोदकर गुनाहों का लेखा दर्ज करने आया है। उसके मन में एक खयाल आया, मगर वह इससे अरज करे तो दुनियावी मुसीबतों से छुटकारा पा जाएगा। वह काँपते हुए उठा और उसके नजदीक गया। फरिश्ते ने फावड़ा चलाना बंद कर दिया।

‘‘हुजूर! आप पैगंबर हैं, खुदा के फरिश्ते हैं। मैं…’’

‘‘चुप रहो, बेइज्जती मत करो। मैं फरिश्ता नहीं, इनसान हूँ।’’ फरिश्ते ने चीखकर कहा।

‘‘नहीं हुजूर! फरिश्ता…’’

‘‘फरिश्ता! फरिश्ता! मैं चोर हूँ, बुड्ढे! कफन चुराने आया हूँ। मेरी बेटी बिना कपड़े के मर रही है। तू भी नंगा है। अच्छा, आधा कफन तू भी ले लेना।’’

भिखमंगा सहमकर पीछे हट गया। डर से उसकी घिग्घी बँध गई और उसके बाद चीखकर बोला, ‘‘चोर! चोर!’’

रखवाले की झोंपड़ी से कई लोग दौड़ पड़े।

दूसरे दिन लखनऊ में बिजली की तरह इस अनोखी चोरी की खबर फैल गई।

सुबह क्लाथ कंट्रोल ऑफिसर जब चाय पीने बैठे तो उनकी पत्नी ने चाय ढालते हुए कहा, ‘‘सुना तुमने, कल एक आदमी कफन चुराते पकड़ा गया।’’

‘‘पागल हो गई हो क्या?’’ ओवरकोट और मफलर से कान और छाती को ढँकते हुए उन्होंने कहा, ‘‘कपड़े की ऐसी भी क्या कमी! और फिर आदमी चाहे मर जाए, कब्र खोदकर कफन चुराने नहीं जाएगा।’’ फर के दस्ताने से ढकी उँगलियों से चाय का प्याला उठाते हुए उन्होंने जवाब दिया।

लेखक

  • धर्मवीर भारती का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में सन 1926 में हुआ था। इनके बचपन का कुछ समय आजमगढ़ व मऊनाथ भंजन में बीता। इनके पिता की मृत्यु के बाद परिवार को भयानक आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा। इनका भरण-पोषण इनके मामा अभयकृष्ण ने किया। 1942 ई० में इन्होंने इंटर कॉलेज कायस्थ पाठशाला से इंटरमीडिएट किया। 1943 ई० में इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी०ए० पास की तथा 1947 में (इन्होंने) एम०ए० (हिंदी) उत्तीर्ण की। NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 13 – गद्य भाग-काले मेघा पानी दे NCERT Solutions for Class 12 Hindi Aroh Chapter 13 – गद्य भाग-काले मेघा पानी दे provide comprehensive guidance and support for students studying Hindi Aroh in Class 12. These NCERT Solutions empower students to develop their writing skills, enhance their language proficiency, and understand official Hindi communication. Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Aroh Chapter 13 – गद्य भाग-काले मेघा पानी दे लेखक परिचय जीवन परिचय-धर्मवीर भारती का जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में सन 1926 में हुआ था। इनके बचपन का कुछ समय आजमगढ़ व मऊनाथ भंजन में बीता। इनके पिता की मृत्यु के बाद परिवार को भयानक आर्थिक संकट से गुजरना पड़ा। इनका भरण-पोषण इनके मामा अभयकृष्ण ने किया। 1942 ई० में इन्होंने इंटर कॉलेज कायस्थ पाठशाला से इंटरमीडिएट किया। 1943 ई० में इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से बी०ए० पास की तथा 1947 में (इन्होंने) एम०ए० (हिंदी) उत्तीर्ण की। तत्पश्चात इन्होंने डॉ० धीरेंद्र वर्मा के निर्देशन में ‘सिद्ध-साहित्य’ पर शोधकार्य किया। इन्होंने ‘अभ्युदय’ व ‘संगम’ पत्र में कार्य किया। बाद में ये प्रयाग विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक के पद पर कार्य करने लगे। 1960 ई० में नौकरी छोड़कर ‘धर्मयुग’ पत्रिका का संपादन किया। ‘दूसरा सप्तक’ में इनका स्थान विशिष्ट था। इन्होंने कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, पत्रकार तथा आलोचक के रूप में हिंदी जगत को अमूल्य रचनाएँ दीं। इन्हें पद्मश्री, व्यास सम्मान व अन्य अनेक पुरस्कारों से नवाजा गया। इन्होंने इंग्लैंड, जर्मनी, थाईलैंड, इंडोनेशिया आदि देशों की यात्राएँ कीं। 1997 ई० में इनका देहांत हो गया। रचनाएँ – इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं – कविता-संग्रह – कनुप्रिया, सात-गीत वर्ष, ठडा लोहा। कहानी-संग्रह-बंद गली का आखिरी मकान, मुर्दो का गाँव, चाँद और टूटे हुए लोग। उपन्यास-सूरज का सातवाँ घोड़ा, गुनाहों का देवता गीतिनाट्य – अंधा युग। निबंध-संग्रह – पश्यंती, कहनी-अनकहनी, ठेले पर हिमालय। आलोचना – प्रगतिवाद : एक समीक्षा, मानव-मूल्य और साहित्य। एकांकी-संग्रह – नदी प्यासी थी। साहित्यिक विशेषताएँ – धर्मवीर भारती के लेखन की खासियत यह है कि हर उम्र और हर वर्ग के पाठकों के बीच इनकी अलग-अलग रचनाएँ लोकप्रिय हैं। ये मूल रूप से व्यक्ति स्वातंत्र्य, मानवीय संबंध एवं रोमानी चेतना के रचनाकार हैं। तमाम सामाजिकता व उत्तरदायित्वों के बावजूद इनकी रचनाओं में व्यक्ति की स्वतंत्रता ही सर्वोपरि है। इनकी रचनाओं में रुमानियत संगीत में लय की तरह मौजूद है। इनकी कविताएँ कहानियाँ उपन्यास, निबंध, गीतिनाट्य व रिपोर्ताज हिंदी साहित्य की उपलब्धियाँ हैं। इनका लोकप्रिय उपन्यास ‘गुनाहों का देवता’ एक सरस और भावप्रवण प्रेम-कथा है। दूसरे लोकप्रिय उपन्यास ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ पर हिंदी फिल्म भी बन चुकी है। इस उपन्यास में प्रेम को केंद्र में रखकर निम्न मध्यवर्ग की हताशा, आर्थिक संघर्ष, नैतिक विचलन और अनाचार को चित्रित किया गया है। स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद गिरते हुए जीवन-मूल्य, अनास्था, मोहभंग, विश्व-युद्धों से उपजा हुआ डर और अमानवीयता की अभिव्यक्ति ‘अंधा युग’ में हुई है। ‘अंधा युग’ गीति-साहित्य के श्रेष्ठ गीतिनाट्यों में है। मानव-मूल्य और साहित्य पुस्तक समाज-सापेक्षिता को साहित्य के अनिवार्य मूल्य के रूप में विवेचित करती है। भाषा-शैली – भारती जी ने निबंध और रिपोर्ताज भी लिखे। इनके गद्य लेखन में सहजता व आत्मीयता है। बड़ी-से-बड़ी बात को बातचीत की शैली में कहते हैं और सीधे पाठकों के मन को छू लेते हैं। इन्होंने हिंदी साप्ताहिक पत्रिका, धर्मयुग, के संपादक रहते हुए हिंदी पत्रकारिता को सजा-सँवारकर गंभीर पत्रकारिता का एक मानक बनाया। वस्तुत: धर्मवीर भारती का स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद के साहित्यकारों में प्रमुख स्थान है।

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