बिछ चुकी है बिसात
अब फिर नए सिरे से,
झोकेंगे अपनी समूची ताकत
और सब खेलेंगे दिमाग़ से
अपनी चाल अपनी पारी
और मंगरुवा ऐसे ही
चलाता रहेगा बिना थके
चाय,नाश्ता,पान,सिगरेट,शराब
बदले में मिल जाऍंगी
कुछ फेंकी हुईं हड्डियाँ
इन फेंकी,सूखी,चूसी
हडि्ड्यों से ही तो
सदियों से पोषित होती रही
उसकी समूची बिरादरी
और पैदा करती गईं
बेहतरीन वफादार नस्लें
आज फिर से जाऍंगी
अलग- अलग दिशाओं में
अपनी बकरियाँ चराने
परमतिया और अमीना
न साॅंझेदारी होगी बीड़ी
अपने धर्म- ईमान को
बचाने के लिए बस
यही तो हैं चार दिन
नहीं पिऍंगे कुछ दिन
साथ बईठकी में ताड़ी
सुकुल जी और अकलुआ
जरूरत पड़ी तो जमकर
एक दूसरे पर अंधाधुंध
लाठी,भाला भी चलाएंगे
अपनी जात- बिरादरी को
महफूज़ रखने के लिए
भगमतिया को नहीं होगी
फिक्र कुछ दिन अपने
जरते- कुलबुलाते पेट की
मिल जाते हैं मुफ़्त के
पुड़ी मिठाई के डिब्बे
रैलियों में शामिल होने पर
जिन्हें सहेज़ कर रखती है
कुछ दिनों,हफ्तों तक
टोली के बच्चे भी
कुछ दिन नहीं करेंगे
लाता- लाती माई- बहिन
नारा लगाने के मिल जाते हैं
कुछ छुट्टे रेजगारी के
आखिर स्कूल जाकर भी
कौन-से मिल जाएंगे
खिचड़ी के साथ पापड़, अचार
जलेबिया चढ़ेगी अब
सुफेद चरचक्का पर
ठसक रोबदाब से
अपने पटिदार का
करेजा जराने के लिए
जिन्हें है बड़ा गुमान
अपनी सहरुआ बहुरिया के
दो- चार अच्छर पढ़े होने पर
गाँव की पुरनिया
अन्हरी,बहिरी बुधिया
कर जोड़ माँग रही
अचरा पसार- पसार
बार- बार होते रहें
ऐसे ही पर्व- त्योहार
जो ही दस दिन पेट भरे
बना रहे दरबार
लोकतंत्र को मजबूत
और बुरी नज़र से
महफूज़ रखना आखिर है
सबकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी
और हो क्यों ना भला
सदियों से ऐसा होता रहा है
और आगे भी होता रहेगा
ऐसे ही बेहतर तैयारी