+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

परिणति/डॉ. शिप्रा मिश्रा

नदी अपना मार्ग
स्वयं बनाती है
कोई नहीं पुचकारता
उछालता उसे
कोई उसकी ठेस पर
मरहम नहीं लगाता
दुलारना तो दूर
कोई आंख भर
देखता भी नहीं
तो क्या
नदी रुक जाती है
या हार मान लेती है
कोई उसे मार्ग भी
नहीं बताता
चट्टानों से भिड़ना
उसकी नियति है
और उसे
अपनी नियति या
नियंता से
कोई उलाहना नहीं
उसे तो
स्वीकार्य है
स्वयं का
आत्मसात
यही परिणति है
जो उसे सिंधु की
विशालता से
उसका परिचय
करवाती है
और वह
सर्वस्व न्यौछावर
करने के बावजूद
बिंदु से सिंधु के
अंक में समाहित
हो जाती है
सदा- सर्वदा के लिए
और हो जाती है
परिपूर्ण..

लेखक

  • डॉ. शिप्रा मिश्रा

    डॉ. शिप्रा मिश्रा शिक्षण एवं स्वतंत्र लेखन माता- पिता- डॉ सुशीला ओझा एवं डॉ बलराम मिश्रा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय लगभग 150 से अधिक पत्र- पत्रिकाओं में हिन्दी और भोजपुरी की लगभग 700 से अधिक रचनाओं का निरंतर प्रकाशन लगभग 100 से अधिक गोष्ठियों में शामिल , 3 पुस्तकें प्रकाशित एवं 4 प्रकाशन के क्रम में, साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा 100 से अधिक सम्मान प्राप्त

    View all posts
परिणति/डॉ. शिप्रा मिश्रा

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×