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आज भी/डॉ. शिप्रा मिश्रा

आज भी..
देखा मैंने उसे
पानी में खालिश
नमक डाल कर
उसने मिटाई
अपनी भूख

आज भी–
खाता है वह
सिर्फ रात में ही
कभी- कभी तो
वह भी उसे
होता नहीं नसीब

आज भी–
उसने जम के
पसीने बहाए
ढेर सारे और
दिन भर की है
ईमानदारी से मजूरी

आज भी–
मिलते हैं
उसके बच्चे को
पोषाहार और
पोशाक के पैसे
सरकारी स्कूल से

आज भी–
उन पैसों से
खरीदता है वह
कुछ बकरियाँ
देता है बटईए पर
मुनाफे के लिए

आज भी–
टूटे छप्पर के
चंद दिनों की
मरम्मती के लिए
लिए हैं कुछ
पैसे सूद पर

आज भी..
उसकी घरवाली
चौका- बरतन के लिए
गई है लोलुप भेड़ियों के
अंधेरे माँद में बेखौफ
सब कुछ जानते हुए

आज भी–
कहने को
आजाद देश में
वह सो नहीं पाता
सुकून- चैन की
मुकम्मल नींद

और..

आज फिर–
मेरी पोटली में
नहीं हैं चंद अल्फ़ाज़
उसकी दबी हुई
आवाज को
दूर- दूर तक
पहुँचाने के लिए..

लेखक

  • डॉ. शिप्रा मिश्रा

    डॉ. शिप्रा मिश्रा शिक्षण एवं स्वतंत्र लेखन माता- पिता- डॉ सुशीला ओझा एवं डॉ बलराम मिश्रा राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय लगभग 150 से अधिक पत्र- पत्रिकाओं में हिन्दी और भोजपुरी की लगभग 700 से अधिक रचनाओं का निरंतर प्रकाशन लगभग 100 से अधिक गोष्ठियों में शामिल , 3 पुस्तकें प्रकाशित एवं 4 प्रकाशन के क्रम में, साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा 100 से अधिक सम्मान प्राप्त

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