नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं/दुष्यंत कुमार
नज़र-नवाज़ नज़ारा बदल न जाए कहीं जरा-सी बात है मुँह से निकल न जाए कहीं वो देखते है तो लगता है नींव हिलती है मेरे बयान को बंदिश निगल न जाए कहीं यों मुझको ख़ुद पे बहुत ऐतबार है लेकिन ये बर्फ आंच के आगे पिघल न जाए कहीं चले हवा तो किवाड़ों को बंद […]