एक कबूतर चिठ्ठी ले कर पहली-पहली बार उड़ा/दुष्यंत कुमार
एक कबूतर चिठ्ठी ले कर पहली-पहली बार उड़ा मौसम एक गुलेल लिये था पट-से नीचे आन गिरा बंजर धरती, झुलसे पौधे, बिखरे काँटे तेज़ हवा हमने घर बैठे-बैठे ही सारा मंज़र देख किया चट्टानों पर खड़ा हुआ तो छाप रह गई पाँवों की सोचो कितना बोझ उठा कर मैं इन राहों से गुज़रा सहने को […]