काम पड़े तो पीछे हटते/डॉ. वेद मित्र शुक्ल
मिट्टी, मौसम, आँखें नम हैं, सबके अपने अपने गम हैं। तिल रखने की जगह नहीं पर, अच्छे लोग बहुत ही कम हैं। आँखों में ख्वाहिशें हजारों, हर पल जीते-मरते हम हैं। उजियारे में भी अंधियारे, कैसे-कैसे होते तम हैं। काम पड़े तो पीछे हटते, वैसे सब ही रखते दम हैं।