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जिस क़दर लोगों की थीं मजबूरियां कुछ/डॉ. राकेश जोशी  

कल ज़मीं पर आज-से दंगल नहीं थे
आज जो भी हैं सफ़र में, कल नहीं थे

देखकर ये खुश हुआ मन, क्यारियों में
ढेर-सारी सब्ज़ियाँ थीं, फल नहीं थे

आज बस्ती में कहीं पानी नहीं है
कल तो पानी था मगर कल नल नहीं थे

थी सड़क चौड़ी बहुत, पर रास्ते में
वो पुराने पेड़, वो जंगल नहीं थे

फिर मरे कुछ लोग सर्दीे में वहाँ कल
क्या तुम्हारे देश में कंबल नहीं थे

जिस क़दर लोगों की थीं मजबूरियां कुछ
उस क़दर आकाश पर बादल नहीं थे

पाँव में छाले सभी के थे हज़ारों
पर किसी के ख़्वाब तो घायल नहीं थे

आज रौनक आ गई खेतों में फिर से
खेत तो कल भी थे लेकिन हल नहीं थे

ख़ूब-सारा वक़्त था औरों की ख़ातिर
बस, हमारे वास्ते कुछ पल नहीं थे

लेखक

  • डॉ. राकेश जोशी जन्म: 9 सितंबर, सन् 1970 शिक्षा: अंग्रेजी साहित्य में एम.ए., एम.फ़िल., डी.फ़िल. प्रकाशित कृतियां: "कुछ बातें कविताओं में" (काव्य-पुस्तिका)", पत्थरों के शहर में" (ग़ज़ल-संग्रह), "वो अभी हारा नहीं है" (ग़ज़ल-संग्रह)। संप्रति: राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड में अंग्रेज़ी विभाग में प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष। राकेश जोशी वर्तमान में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, डोईवाला, देहरादून, उत्तराखंड में अंग्रेज़ी विभाग के प्रोफ़ेसर एवं विभागाध्यक्ष हैं. इससे पूर्व वे कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, श्रम मंत्रालय, भारत सरकार में हिंदी अनुवादक के पद पर मुंबई में कार्यरत रहे. मुंबई में ही उन्होंने थोड़े समय के लिए आकाशवाणी विविध भारती में आकस्मिक उद्घोषक के तौर पर भी कार्य किया. उनकी कविताएँ अनेक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ-साथ आकाशवाणी से भी प्रसारित हुई हैं. उनकी एक काव्य-पुस्तिका "कुछ बातें कविताओं में", दो ग़ज़ल संग्रह “पत्थरों के शहर में” तथा "वो अभी हारा नहीं है" अब तक प्रकाशित हुए हैं.

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