+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

दुनिया का सबसे अनमोल रतन/मुंशी प्रेमचंद

दिलफिगार एक कँटीले पेड़ के नीचे दामन चाक किये बैठा हुआ खून के आँसू बहा रहा था। वह सौन्दर्य की देवी यानी मलका दिलफरेब का सच्चा और जान-देनेवाला प्रेमी था। उन प्रेमियों में वही जो इत्र-फुलेल में बसकर और शानदार कपड़ों से सजकर आशिक के वेग में माशूकियत का दम भरते हैं। बल्कि उन सीधे-सादे भोले-भाले फिदाइयों में जो जंगल और पहाड़ों से सर टकराते हैं और फरियाद मचाते फिरते हैं। दिलफरेब ने उससे कहा था कि अगर तू मेरा सच्चा प्रेमी है, तो जा और दुनिया की सबसे अनमोल चीज लेकर मेरे दरबार में आ। तब मैं तुझे अपनी गुलामी में कबूल करूँगी। अगर तुझे वह चीज न मिले तो खबरदार इधर रूख न करना, वर्ना सूली पर खिंचवा दूँगी। दिलफिगार को अपनी भावनाओं के प्रदर्शन का, शिकवे-शिकायत का, प्रेमिका के सौन्दर्य दर्शन का तनिक भी अवसर न दिया गया। दिलफरेब ने ज्योंही यह फैसला सुनाया उसके चौबदारों ने गरीब दिलफिगार को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। और आज तीन दिन से यह आफत का मारा आदमी उसी कँटीले पेड़ के नीचे उसी भयानक-मैदान में बैठा हुआ सोच रहा है कि क्या करूँ। दुनिया की सबसे अनमोल चीज मुझको मिलेगी? नामुमकिन! और वह है क्या? कारूँ का खजाना? आबे हयात? खुसरो का ताज? जामेजम? तख्ते ताऊस? परवेज की दौलत? नहीं, यह चीजें हरगिज नहीं। दुनिया में जरूर इनसे भी महँगी, इनसे भी अनमोल चीजें मौजूद हैं, मगर वह क्या है? कैसे मिलेगी? या खुदा, मेरी मुश्किल क्यों कर आसान होगी।
दिलफिगार इन्हीं खयालों में चक्कर खा रहा था और अक्ल कुछ काम नहीं करती थी। मुनीर शामी को हातिम-सा मददगार मिल गया। ऐ काश, कोई मेरा भी मददगार हो जाता! ऐ काश, मुझे भी उस चीज का, जो दुनिया की सबसे बेशकीमत चीज है, नाम बतला दिया जाता! बला से वह चीजें हाथ न आती मगर मुझे इतना तो मालूम हो जाता कि वह किस किस्म की चीज है। मैं घड़े बराबर मोती की खोज में जा सकता हूँ। मैं समुन्दर का गीत, पत्थर का दिल, मौत की आवाज और इनसे भी ज्यादा बेनिशान चीजों की तलाश में कमर कस सकता हूँ: मगर दुनिया की सबसे अनमोल चीज! यह मेरी कल्पना की उड़ान से बहुत ऊपर है।
आसमान पर तारे निकल आये थे। दिलफिगार यकायक खुदा का नाम लेकर उठा और एक तरफ को चल खड़ा हुआ। भूखा-प्यासा, नंगे बदन, थकन से चूर, वह बरसों वीरानों और आबादियों की खाक छानता फिरा, तलवे कांटों से छलनी हो गये, शरीर में हड्डियां दिखायी देने लगी मगर वह चीज, जो दुनिया की सबसे बेशकीमती चीज थी, न मिली और न उसका कुछ निशान मिला।
एक रोज वह भूलता-भटकता एक मैदान में जा निकला जहाँ हजारों आदमी गोल बॉँधे खड़े थे। बीच में कई अमामे और चोगेवाले दढ़ियल काजी अफसरी शान से बैठे हुए आपस में कुछ सलाह-मशविरा कर रहे थे और इस जमात से जरा दूर पर एक सूली खड़ी थी। दिलफिगार कुछ तो कमजोरी की वजह से और कुछ यहाँ की कैफियत देखने के इरादे से ठिठक गया। क्या देखता है, कि कई लोग नंगी तलवारें लिये, एक कैदी को, जिसके हाथ-पैर में जंजीरें थीं, पकड़े चले आ रहे हैं। सूली के पास पहुँचकर सब सिपाही रुक गये और कैदी की हथकड़ियॉँ-बेड़ियॉँ सब उतार ली गयीं। इस अभागे आदमी का दामन सैकड़ों बेगुनाहों के खून के छीटों से रंगीन था और उसका दिल नेकी के ख्याल और रहम की आवाज से जरा भी परिचित न था। उसे काला चोर कहते थे। सिपाहियों ने उसे सूली के तख्ते पर खड़ा कर दिया, मौत की फॉँसी उसकी गर्दन में डाल दी और जल्लादों ने तख्ता खींचने का इरादा किया कि वह अभागा मुजरिम चीखकर बोला—खुदा के वास्ते मुझे एक पल के लिए फॉँसी से उतार दो ताकि अपने दिल की आखिरी आरजू निकाल लूँ। यह सुनते ही चारों तरफ सन्नाटा छा गया। लोग अचम्भे में आकर ताकने लगे। काजियों ने एक मरने वाले आदमी की अंतिम याचना को रद्द करना उचित न समझा और बदनसीब पापी काला चोर जरा देर के लिए फॉँसी से उतार लिया गया।
इसी भीड़ में एक खूबसूरत भोला-भाला लड़का एक छड़ी पर सवार होकर अपने पैरों पर उछल-उछल फ़र्जी घोड़ा दौड़ा रहा था, और अपनी सादगी की दुनिया में ऐसा मगन था कि जैसे वह इस वक्त सचमुच अरबी घोड़े का शहसवार है। उसका चेहरा उस सच्ची खुशी से कमल की तरह खिला हुआ था चन्द दिनों के लिए बचपन ही में हासिल होती है और जिसकी याद हमको मरते दम तक नहीं भूलती। उसका दिल अभी तक पाप की गर्द और धूल से अछूता था और मासूमियत उसे अपनी गोद में खिला रही थी।
बदनसीब काला चोर फांसी से उतरा। हजारों आंखें उस पर गड़ी हुई थीं। वह उस लड़के के पास आया और उसे गोद में उठाकर प्यार करने लगा। उसे इस वक्त वह जमाना याद आया जब वह खुद ऐसा ही भोला-भाला, ऐसा ही खुश व खुर्रम और दुनिया की गंदगियों से ऐसा ही पाक-साफ था। मॉँ गोदियों मे खिलाती थी, बाप बलाएं लेता था और सारा कुनबा जान न्योछावर करता था। आह, काले चोर के दिल पर इस वक्त बीते हुए दिनों की याद का इतना असर हुआ कि उसकी आँखों से, जिन्होंने दम तोड़ती हुई लाशों को तड़पते देखा और न झपकीं, आँसू, का एक कतरा टपक पड़ा। दिलफिगार ने लपककर उस अनमोल मोती को हाथ मे ले लिया और उसके दिल ने कहा—बेशक यह दुनिया की सबसे अनमोल चीज है जिस पर तख्ते ताऊस और जामेजम और आबे हयात और जरे परवेज सब न्योछावर हैं।
इस ख्याल से खुश होता, कामयाबी की उम्मीद में सरमस्त, दिलफिगार अपनी माशूका दिलफरेब के शहर मीनोसाबाद को चला। मगर ज्यों-ज्यों मंजिलें तय होती जाती थीं उसका दिल बैठा जाता था कि कहीं उस चीज की, जिसे मैं दुनिया की सबसे बेशकीमत चीज समझता हूँ, दिलफरेब की आंखों में कद्र न हुई तो मैं फॉँसी पर चढ़ा दिया जाऊँगा और इस दुनिया से नामुराद जाऊँगा। लेकिन जो हो सो हो, अब तो किस्मत आजमाई है। आखिरकार पहाड़ और दरिया तय करते वह शहर मीनोसबाद में आ पहुँचा और दिलफरेब की ड्योढ़ी पर जाकर विनती की कि थकान से टूटा हुआ दिलफिगर खुदा के फजल से हुक्म की तामील करके आया है, और आपके कदम चूमना चाहता है। दिलफरेब ने फौरन अपने सामने बुला भेजा और एक सुनहरे परदे की ओट से फरमाइश की कि वह अनमोल चीज पेश करो। दिलफिगार ने आशा और भय की एक विचित्र मन:स्थिति में वह बूँद पेश की और उसकी सारी कैफियत बहुत पुरअसर लफ्जों में बयान की। दिलफरेब ने पूरी कहानी बहुत गौर से सुनी और वह भेंट हाथ में लेकर जरा देर तक गौर करने के बाद बोली-दिलफिगार, बेशक तूने दुनिया की एक बेशकीमत चीज ढूंढ़ निकाली, तेरी हिम्मत और तेरी सूझ-बूझ की दाद देती हूँ! मगर यह दुनिया की सबसे बेशकीमती चीज नहीं, इसलिए तू यहाँ से जा और फिर कोशिश कर, शायद अब की तेरे हाथ वह मोती लगे और तेरी किस्मत में मेरी गुलामी लिखी हो। जैसा कि मैंने पहले ही बतला दिया था, मैं तुझे फांसी पर चढ़वा सकती हूँ मगर मैं तेरी जॉँबख्शी करती हूँ इसलिए कि तुझमें वह गुण मौजूद हैं, जो मैं अपने प्रेमी में देखना चाहती हूँ और मुझे यकीन है कि तू जरूर कभी-न-कभी कामयाब होगा।
नाकाम और नामुराद दिलफिगार इस माशूकाना इनायत से जरा दिलेर होकर बोला-ऐ दिल की रानी, बड़ी मुद्दत के बाद तेरी ड्योढ़ी पर सजदा करना नसीब होता है। फिर खुदा जाने ऐसे दिन कब आऍंगे, क्या तू अपने जान देने वाले आशिक के बुरे हाल पर तरस न खायेगी और क्या तू अपने रूप की एक झलक दिखाकर इस जलते हुए दिलफिगार को आनेवाली सख्तियों को झेलने की ताकत न देगी? तेरी एक मस्त निगाह के नशे में चूर होकर मैं वह कर सकता हूँ जो आज तक किसी से न बन पड़ा हो।
दिलफरेब आशिक की यह चाव भरी बातें सुनकर गुस्सा हो गयी और हुक्म दिया कि इस दीवाने को खड़े-खड़े दरबार से निकाल दो। चोबदार ने फौरन गरीब दिलफिगार को धक्का देकर यार के कूचे से बाहर निकाल दिया।
कुछ देर तक तो दिलफिगार अपनी निष्ठुर प्रेमिका की इस कठोरता पर आँसू बहाता रहा, और फिर वह सोचने लगा कि अब कहाँ जाऊँ। मुद्दतों रास्ते नापने और जंगलों में भटकने के बाद आँसू की यह बूँद मिली थी, अब ऐसी कौन-सी चीज है जिसकी कीमत इस आबदार मोती से ज्यादा हो। हजरते खिज्र! तुमने सिकन्दर को आबे हयात के कुएँ का रास्ता दिखाया था, क्या मेरी बॉँह न पकड़ोगे? सिकन्दर सारी दुनिया का मालिक था। मैं तो एक बेघरबार मुसाफिर हूँ। तुमने कितनी ही डूबती किश्तियॉँ किनारे लगायी हैं, मुझ गरीब का बेड़ा भी पार करो। ए आलीमुकाम जिबरील! कुछ तुम्हीं इस नीमजान दुखी आशिक पर तरस खाओ। तुम खुदा के एक खास दरबारी हो, क्या मेरी मुश्किल आसान न करोगे? गरज यह है कि दिलफिगार ने बहुत फरियाद मचायी मगर उसका हाथ पकड़ने के लिए कोई सामने न आया। आखिर निराश होकर वह पागलों की तरह दुबारा एक तरफ दुबारा एक तरफ को चल खड़ा हुआ।
दिलफिगार ने पूरब से पश्चिम तक और उत्तर से दक्खिन तक कितने ही जंगलों और वीरानों की खाक छानी, कभी बर्फिस्तानी चोटियों पर सोया, कभी डरावनी घाटियों में भटकता फिरा मगर जिस चीज की धुन थी वह न मिली, यहाँ तक कि उसका शरीर हड्डियों का एक ढॉँचा रह गया।
एक रोज वह शाम के वक्त किसी नदी के किनारे खस्ताहाल पड़ा हुआ था। बेखुदी के नशे से चौंका तो क्या देखता है कि चन्दन की एक चिता बनी हुई है और उस पर एक युवती सुहाग के जोड़े पहने सोलहों सिंगार किये बैठी है। उसकी जॉँध पर उसक प्यारे पति का सर है। हजारों आदमी गोल बांधे खड़े हैं और फूलों की बरखा कर रहे हैं। यकायक चिता मे से खुद-ब-खुद एक लपट उठी। सती का चेहरा उस वक्त एक पवित्र भाव से आलोकित हो रहा था, चिता की पवित्र लपटें उसके गले से लिपट गयीं और दम के दम में वह फूल-सा शरीर राख कर ढेर हो गया। प्रेमिका ने अपने को प्रेमी पर न्योछावर कर दिया और दो प्रेमियों के सच्चे, पवित्र, अमर प्रेम की अन्तिम लीला आंख से ओझल हो गयी। जब सब लोग अपने घरों को लौटे तो दिलफिगार चुपके से उठा और अपने चाक-दामन कुरते में यह राख का ढेर समेट लिया और इस मुट्ठी भर राख को दुनिया की सबसे अनमोल चीज समझता हुआ, सफलता के नशे में चूर, यार के कूचे की तरफ चला। अबकी ज्यों-ज्यों वह मंजिल के करीब आता था, उसकी हिम्मत बढ़ती जाती थी। कोई उसके दिल में बैठा हुआ कह रहा था-अबकी तेरी जीत है और इस ख्याल ने उसके दिल को जो-जो सपने दिखाये उनकी चर्चा व्यर्थ है। आखिरकार वह शहर मीनोसबाद में दाखिल हुआ और दिलफरेब की ऊँची ड्योढ़ी पर जाकर खबर दी कि दिलफिगार सुर्खरू होकर लौटा है, और हुजूर के सामने आना चाहता है। दिलफरेब ने जांबाज आशिक को फौरन दरबार मे बुलाया और उस चीज के लिए, जो दुनिया की सबसे बेशकीमती चीज थी, हाथ फैला दिया। दिलफिगार ने हिम्मत करके उसकी चांदी जैसे कलाई को चूम लिया और मुट्ठी भर राख को उसकी हथेली मे रखकर सारी कैफियत दिल को पिघला देने वाले लफ्जों में कह सुनायी और अपनी सुन्दर प्रेमिका के होंठों से अपनी किस्मत का मुबारक फैसला सुनने के लिए इन्तजार करने लगा। दिलफरेब ने उस मुट्ठीभर राख को आंखों से लगा लिया और कुछ देर तक विचारों के सागर में डूबे रहने के बाद बोली-ऐ जान निछावर करने वाले आशिक दिलफिगार! बेशक यह राख जो तू लाया है, जिसमें लोहे को सोना कर देने की सिफत है, दुनिया की बहुत बेशकीमत चीज है और मैं सच्चे दिल से तेरी एहसानमन्द हूँ कि तूने ऐसी अनमोल भेंट दी। मगर दुनिया में इससे भी ज्यादा अनमोल चीज है, जा उसे तलाश कर और तब मेरे पास आ। मैं तहेदिल से दुआ करती हूँ कि खुदा तुझे कामयाब करे। यह कहकर वह सुनहरे परदे से बाहर आयी और माशूकाना अदा से अपने रूप का जलवा दिखाकर फिर नजरों से ओझल हो गई। अभी दिलफिगार के होश-हवास ठिकाने पर न आने पाये थे कि चोबदार ने मुलायमियत से उसका हाथ पकड़कर यार के कूचे से उसको निकाल दिया और फिर तीसरी बार वह प्रेम का पुजारी निराशा के अथाह समुन्दर में गोता खाने लगा।
दिलफिगार का हियाब छूट गया। उसे यकीन हो गया कि मैं दुनिया में उसी तरह नाशाद और नामुराद मर जाने के लिए पैदा किया गया था और अब इसके सिवा और कोई चारा नहीं कि किसी पहाड़ पर चढ़कर नीचे कूद पडूँ ताकि माशूक के जुल्मों की फरियाद करने के लिए एक हड्डी भी बाकी न रहे। वह दीवाने की तरह उठा और गिरता-पड़ता एक गगनचुम्बी पहाड़ की चोटी पर जा पहुँचा। किसी और समय वह ऐसे ऊँचे पहाड़ पर चढ़ने का साहस न कर सकता था मगर इस वक्त जान देने के जोश में उसे वह पहाड़ एक मामूली टेकरी से ज्यादा ऊँचा न नजर आया। करीब था कि वह नीचे कूद पड़े कि हरे-हरे कपड़े पहने हुए और हरा अमामा बांधे एक बुजुर्ग एक हाथ में तसबीह और दूसरे हाथ में लाठी लिये बरामद हुए और हिम्मत बढ़ानेवाले स्वर में बोले-दिलफिगार, नादान दिलफिगार, यह क्या बुजदिलों जैसी हरकत है! तू मुहब्बत का दावा करता है और तुझे इतनी भी खबर नहीं कि मजबूत इरादा मुहब्बत के रास्ते की पहली मंजिल है? मर्द बन कर हिम्मत न हार। पूरब की तरफ एक देश है जिसका नाम हिन्दोस्तान है, वहाँ जा और तेरी आरजू पूरी होगी।
यह कहकर हजरते खिज्र गायब हो गये। दिलफिगार ने शुक्रिये की नमाज अदा की और ताजा हौंसले, ताजा जोश और अलौकिक सहायता का सहारा पाकर खुश-खुश पहाड़ से उतरा और हिन्दोस्तान की तरफ चल पड़ा।
मुद्दतों तक कांटों से भरे हुए जंगलों, आग बरसानेवाले रेगिस्तानों, कठिन घाटियों और अबंध्य पर्वतों को तय करने के बाद दिलफिगार हिन्द की पाक सरजमीन में दाखिल हुआ और एक ठंडे पानी के सोते में सफर की तकलीफें धोकर थकान के मारे नदी के किनारे लेट गया। शाम होते-होते वह एक चटियल मैदान में पहुँचा जहाँ बेशुमार अधमरी और बेजान लाशें बिना कफन के पड़ी हुई थीं। चील, कौए और वहशी दरिन्दे भरे पड़े थे और सारा मैदान खून से लाल हो रहा था। यह डरावना दृश्य देखते ही दिलफिगार का जी दहल गया। या खुदा, किस मुसीबत मे जान फँसी, मरनेवालों को कराहना, सिसकना और एड़ियॉँ रगड़कर जान देना, दरिन्दों का हड्डियों को नोचना और गोश्त के लोथड़ों को लेकर भागना-ऐसा हौलनाक सीन दिलफिगार ने कभी न देखा था। यकायक उसे ख्याल आया, यह लड़ाई का मैदान है और यह लाशें सूरमा सिपाहियों की हैं। इतने में करीब से कराहने की आवाज आयी। दिलफिगार उस तरफ फिरा तो देखा कि एक लम्बा-तगड़ा आदमी, जिसका मर्दाना चेहरा जान निकलने की कमजोरी से पीला हो गया है, जमीन पर सर झुकाये पड़ा हुआ है। सीने से खून का फव्वारा जारी है, मगर आबदार तलवार की मूठ पंजे से अलग नहीं हुई। दिलफिगार ने एक चीथड़ा लेकर घाव के मुहं पर रख दिया ताकि खून रुक जाये और बोला-ऐ जवाँमर्द, तू कौन है? जवाँमर्द, तू कौन है? जवाँमर्द ने यह सुनकर आँखें खोलीं और वीरों की तरह बोला—क्या तू नहीं जानता मैं कौन हूँ, क्या तूने आज इस तलवार की काट नहीं देखी? मैं अपनी मॉँ का बेटा और भारत का सपूत हूँ। यहं कहते-कहते उसकी त्यौरियों पर बल पड़ गये। पीला चेहरा गुस्से से लाल हो गया और आबदार शमशीर फिर अपना जौहर दिखाने के लिए चमक उठी। दिलफिगार समझ गया कि यह इस वक्त मुझे दुशमन समझ रहा है, नरमी से बोला—ऐ जवांमर्द, मैं तेरा दुश्मन नहीं हूँ। अपने वतन से निकला हुआ एक गरीब मुसाफिर हूँ। इधर भूलता-भटकता आ निकला। बराय मेहरबानी मुझसे यहाँ की कुल कैफियत बयान कर।
यह सुनते ही घायल सिपाही बहुत मीठे स्वर में बोला-अगर तू मुसाफिर है तो आ और मेरे खून से तर पहलू में बैठ जा क्योंकि यही दो अंगुल जमीन है जो मेरे पास बाकी रह गयी है और जो सिवाय मौत के कोई नहीं छीन सकता। अफसोस है कि तू यहाँ ऐसे वक्त में आया जब तेरा आतिथ्य-सत्कार करने के योग्य नहीं। हमारे बाप-दादा का देश आज हमारे हाथ से निकल गया और इस वक्त हम बेवतन हैं। मगर (पहलू बदलकर) हमने हमलावर दुश्मन को बता दिया जो लाशें तू देख रहा है, यह उन लोगों की हैं, जो इस तलवार के घाट उतरे हैं। (मुस्कराकर) और गो कि मैं बेवतन हूँ, मगर गनीमत है कि दुश्मन की जमीन पर नहीं मर रहा हूँ। (सीने के घाव से चीथड़ा निकालकर) क्या तूने यह मरहम रख दिया? खून निकलने दे, इसे रोकने से क्या फायदा? क्या मैं अपने ही देश में गुलामी करने के लिए जिन्दा रहूँ? नहीं, ऐसी जिन्दगी से मर जाना अच्छा। इससे अच्छी मौत मुमकिन नहीं।
जवाँमर्द की आवाज मद्धिम हो गयी, अंग ढीले पड़ गये, खून इतना ज्यादा बहा कि खुद-ब-खुद बन्द हो गया। रह-रह-कर एकाध बूंद टपक पड़ता था। आखिरकार सारा शरीर बेदम हो गया, दिल की हरकत बन्द हो गयी और आंखें मुंद गयीं। दिलफिगार ने समझा अब काम तमाम हो गया कि मरनेवाले ने धीमे से कहा-भारतमाता की जय। और उनके सीने से खून का आखिरी कतरा निकल पड़ा। एक सच्चे देशप्रेमी और देशभक्त ने देशभक्ति का हक अदा कर दिया। दिलफिगार पर इस दृश्य का बहुत गहरा असर पड़ा और उसके दिल ने कहा, बेशक दुनिया में खून के इस कतरे से ज्यादा अनमोल चीज कोई नहीं हो सकती। उसने फौरन खून की बूंद को, जिसके आगे यमन का लाल हेच भी है, हाथ में ले लिया और इस दिलेर राजपूत की बहादुरी पर हैरत करता हुआ अपने वतन की तरफ रवाना हुआ और सख्तियां झेलता हुआ आखिरकार बहुत दिनों के बाद रूप की रानी मलका दिलफरेब की ड्यौढ़ी पर जा पहुँचा और पैगाम दिया कि दिलफिगार सुर्खरू और कामयाब होकर लौटा है और दरबार में हाजिर होना चाहता है। दिलफरेब ने उसे फौरन हाजिर होने का हुक्म दिया। खुद हस्बे मालूम सुनहरे परदे की ओंट में बैठी और बोली-दिलफिगार, अबकी तू बहुत दिनों के बाद वापस आया है। ला, दुनिया की सबसे बेशकीमत चीज कहाँ है?
दिलफिगार ने मेंहदी-रची हथेलियों को चूमते हुए खून का कतरा उस पर रख दिया और उसकी पूरी कैफियत पुरजोश लहजे में कह सुनायी। वह खामोश भी न होने पाया था कि यकायक यह सुनहरा परदा हट गया और दिलफिगार के सामने हुस्न का एक दरबार सजा हुआ नजर आया, जिसकी एक-एक नाजनीन जुलेखा से बढ़कर थी। दिलफरेब बड़ी शान के साथ सुनहरी मसनद पर सुशोभित हो रही थी। दिलफिगार हुस्न का यह तिलिस्म देखकर अचम्भे मे पड़ गया और चित्रलिखित-सा खड़ा रहा कि दिलफरेब मसनद से उठी और कई कदम आगे बढ़कर उससे लिपट गयी। गानेवालियों ने खुशी के गाने शुरू किये, दरबारियों ने दिलफिगार को नजरें भेंट कीं और चॉँद-सूरज को बड़ी इज्जत के साथ मसनद पर बैठा दिया। जब वह लुभावना गीत बंद हुआ तो दिलफरेब खड़ी हो गयी और हाथ जोड़कर दिलफिगार से बोली-ऐ जॉँनिसार आशिक दिलफिगार! मेरी दुआऍं बर आयीं और खुदा ने मेरी सुन ली और तुझे कामयाब व सुर्खरू किया। आज से तू मेरा मालिक है और मैं तेरी लौंडी!
यह कहकर उसने एक रत्नजटित मंजूषा मँगायी और उसमें से एक तख्ती निकाली जिस पर सुनहरे अक्षरों से लिखा हुआ था-
‘खून का वह आखिरी कतरा जो वतन की हिफाजत में गिरे दुनिया की सबसे अनमोल चीज है।’

लेखक

  • प्रेमचंद

    जीवन परिचय- प्रेमचंद का जन्म 1880 ई. में उत्तर प्रदेश के लमही गाँव में हुआ। इनका मूल नाम धनपतराय था। इनका बचपन अभावों में बीता। इन्होंने स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद पारिवारिक समस्याओं के कारण बी.ए. तक की पढ़ाई मुश्किल से पूरी की। ये अंग्रेजी में एम.ए. करना चाहते थे, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए नौकरी करनी पड़ी। गाँधी जी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय होने के कारण उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ने के बाद भी उनका लेखन कार्य सुचारु रूप से चलता रहा। ये अपनी पत्नी शिवरानी देवी के साथ अंग्रेजों के खिलाफ आदोलनों में हिस्सा लेते रहे। इनके जीवन का राजनीतिक संघर्ष इनकी रचनाओं में – सामाजिक संघर्ष बनकर सामने आया जिसमें जीवन का यथार्थ और आदर्श दोनों थे। इनका निधन 1936 ई. में हुआ। ● रचनाएँ- प्रेमचंद का साहित्य संसार अत्यंत विस्तृत है। ये हिंदी कथा-साहित्य के शिखर पुरुष माने जाते हैं। इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं- उपन्यास- सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान। कहानी-संग्रह-सोजे-वतन, मानसरोवर (आठ खंड में), गुप्त धन। नाटक- कर्बला, संग्राम, प्रेम की देवी। निबंध-संग्रह-कुछ विचार, विविध प्रसंग। ● साहित्यिक विशेषताएँ- हिंदी साहित्य के इतिहास में कहानी और उपन्यास की विधा के विकास का काल-विभाजन प्रेमचंद को ही केंद्र में रखकर किया जाता रहा है। वस्तुत: प्रेमचंद ही पहले रचनाकार हैं जिन्होंने कहानी और उपन्यास की विधा को कल्पना और रुमानियत के धुंधलके से निकालकर यथार्थ की ठोस जमीन पर प्रतिष्ठित किया। यथार्थ की जमीन से जुड़कर कहानी किस्सागोई तक सीमित न रहकर पढ़ने-पढ़ाने की परंपरा से भी जुड़ी। इसमें उनकी हिंदुस्तानी । भाषा अपने पूरे ठाट-बाट और जातीय स्वरूप के साथ आई है। उनका आरंभिक कथा-साहित्य कल्पना, संयोग और रुमानियत के ताने-बाने से बुना गया है, लेकिन एक कथाकार के रूप में उन्होंने लगातार विकास किया और पंच परमेश्वर जैसी कहानी तथा सेवासदन जैसे उपन्यास के साथ सामाजिक जीवन को कहानी का आधार बनाने वाली यथार्थवादी कला के अग्रदूत के रूप में सामने आए। यथार्थवाद के भीतर भी आदर्शान्मुख यथार्थवाद से आलोचनात्मक यथार्थवाद तक की विकास-यात्रा प्रेमचंद ने की। आदशो आदर्शोन्मुख यथार्थवाद स्वयं उन्हीं की गढ़ी हुई संज्ञा है। यह कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में उनके रचनात्मक प्रयासों पर लागू होती है जो कटु यथार्थ का चित्रण करते हुए भी समस्याओं और अंतर्विरोधों को अंतत: एक आदर्शवादी और मनोवांछित समाधान तक पहुँचा देती है। सेवासदन, प्रेमाश्रम आदि उपन्यास और पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, नमक का दरोगा आदि कहानियाँ ऐसी ही हैं। बाद की रचनाओं में वे कटु यथार्थ को भी प्रस्तुत करने में किसी तरह का समझौता नहीं करते। गोदान उपन्यास और पूस की रात, कफ़न आदि कहानियाँ इसके उदाहरण हैं।

    View all posts
दुनिया का सबसे अनमोल रतन/मुंशी प्रेमचंद

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×