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जीवन चक्र/देवेंद्र जेठवानी

छूट जाएगी सब यहीं नौकरी-चाकरी,
ख़त्म यहीं सब व्यापार होगा,
शमशान ही होगा अंतिम मंज़िल तेरी,
बस मृत्यु ही जीवन का सार होगा,
तेरा ये रुतबा, तेरी ये सारी रसूखदारी,
बाक़ी न ही कोई भंडार होगा,
टूटेगी जब ये साँसों की माला,
इसका फ़िर न कोई उपचार होगा,
यही होता आया है, यही होता आएगा,
जन्म-मरण का यह क्रम, यूँही बारम्बार होगा,
कोई फ़र्क नहीं पड़ता, तेरे या मेरे चाहने या न चाहने से,
होगा बस वही जो उस ईश्वर को स्वीकार होगा,
तेरे जाने के बाद भी, होंगी तेरी ही बातें,
कुछ कहेंगे अच्छा, कुछ कटाक्ष का प्रहार होगा,
फ़िर न होगा कोई दंद-फंद, न कोई इच्छा,
और न ही कोई इन्कार होगा,
टूटेगी जब ये साँसों की माला,
इसका फ़िर न कोई उपचार होगा,
शमशान ही होगा अंतिम मंज़िल तेरी,
बस मृत्यु ही जीवन का सार होगा,

लेखक

  • देवेंद्र जेठवानी जन्मतिथि :- 14/09/1992 जन्म स्थान :- भोपाल (म.प्र.) निवास स्थान :- भोपाल (म.प्र.) शिक्षा :- B.Com Graduation M.B.A. (marketing, finance) मास्टर्स रूची :- कविता, ग़ज़ल, शेर, शायरी पेशा :- प्राइवेट कर्मचारी ( प्राइवेट बैंक में कार्यरत)

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