छूट जाएगी सब यहीं नौकरी-चाकरी,
ख़त्म यहीं सब व्यापार होगा,
शमशान ही होगा अंतिम मंज़िल तेरी,
बस मृत्यु ही जीवन का सार होगा,
तेरा ये रुतबा, तेरी ये सारी रसूखदारी,
बाक़ी न ही कोई भंडार होगा,
टूटेगी जब ये साँसों की माला,
इसका फ़िर न कोई उपचार होगा,
यही होता आया है, यही होता आएगा,
जन्म-मरण का यह क्रम, यूँही बारम्बार होगा,
कोई फ़र्क नहीं पड़ता, तेरे या मेरे चाहने या न चाहने से,
होगा बस वही जो उस ईश्वर को स्वीकार होगा,
तेरे जाने के बाद भी, होंगी तेरी ही बातें,
कुछ कहेंगे अच्छा, कुछ कटाक्ष का प्रहार होगा,
फ़िर न होगा कोई दंद-फंद, न कोई इच्छा,
और न ही कोई इन्कार होगा,
टूटेगी जब ये साँसों की माला,
इसका फ़िर न कोई उपचार होगा,
शमशान ही होगा अंतिम मंज़िल तेरी,
बस मृत्यु ही जीवन का सार होगा,
जीवन चक्र/देवेंद्र जेठवानी