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राजा-रत्न-सेन-वैकुंठवास-खंड-56 पद्मावत/जायसी

तौ लही साँस पेट महँ अही । जौ लहि दसा जीउ कै रही ॥ काल आइ देखराई साँटी । उठी जिउ चला छोड़िं कै माटी ॥ काकर लोग, कुटुँब, घर बारू । काकर अरथ दरब संसारू ॥ ओही घरी सब भएउ परावा । आपन सोइ जो परसा, खावा ॥ अहे जे हितू साथ के नेगी […]

पद्मावती-नागमती-सती-खंड-57 पद्मावत/जायसी

पदमावति पुनि पहिरि पटोरी । चली साथ पिउ के होइ जोरी ॥ सूरुज छपा, रैनि होइ गई । पूनो-ससि सो अमावस भई ॥ छोरे केस, मोति लर छूटीं । जानहुँ रैनि नखत सब टूटीं ॥ सेंदुर परा जो सीस अघारा । आगि लागि चह जग अँधियारा ॥ यही दिवस हौं चाहति, नाहा । चलौं साथ, […]

उपसंहार-58 पद्मावत/जायसी

मैं एहि अरथ पंडितन्ह बूझा । कहा कि हम्ह किछु और न सूझा ॥ चौदह भुवन जो तर उपराहीं । ते सब मानुष के घट माहीं ॥ तन चितउर, मन राजा कीन्हा । हिय सिंघल, बुधि पदमिनि चीन्हा ॥ गुरू सुआ जेइ पंथ देखावा । बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा?॥ नागमती यह दुनिया-धंधा । […]

दोहे/रैदास

ऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ मिलै सबन को अन्न। छोट बड़ो सब सम बसै, रैदास रहै प्रसन्न।।1 करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस। कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।।2 कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा। वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।3 कह रैदास […]

दोहे/कबीर

दुख में सुमरिन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमरिन करे, दुख काहे को होय॥१॥ तिनका कबहुँ न निंदिये, जो पाँयन तर होय । कबहुँ उड़ आँखिन परे, पीर घनेरी होय॥२॥ माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर। कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर॥३॥ […]

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