राजा-रत्न-सेन-वैकुंठवास-खंड-56 पद्मावत/जायसी
तौ लही साँस पेट महँ अही । जौ लहि दसा जीउ कै रही ॥ काल आइ देखराई साँटी । उठी जिउ चला छोड़िं कै माटी ॥ काकर लोग, कुटुँब, घर बारू । काकर अरथ दरब संसारू ॥ ओही घरी सब भएउ परावा । आपन सोइ जो परसा, खावा ॥ अहे जे हितू साथ के नेगी […]