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रत्नसेन-संतति-खंड-37 पद्मावत/जायसी

जाएउ नागमति नागसेनहि । ऊँच भाग, ऊँचै दिन रैनहि ॥
कँवलसेन पदमावति जाएउ । जानहुँ चंद धरति मइँ आएउ ॥
पंडित बहु बुधिवंत बोलाए । रासि बरग औ गरह गनाए ॥
कहेन्हि बड़े दोउ राजा होहीं । ऐसे पूत होहिं सब तोहीं ॥
नवौं खंड के राजन्ह जाहीं । औ किछु दुंद होइ दल माहीं ॥
खोलि भँडारहिं दान देवावा । दुखी सुखी करि मान बढ़ावा ॥
जाचक लोग, गुनीजन आए । औ अनंद के बाज बधाए ॥

बहु किछु पावा जोतिसिन्ह औ देइ चले असीस ।
पुत्र, कलत्र, कुटुंब सब जीयहिं कोटि बरीस ॥1॥

(जाएउ=उत्पन्न किया,जना, ऊँचे दिन रैनहि=दिन-रात
में वैसा ही बढ़ता गया, दुंद=झगड़ा,लड़ाई)

लेखक

  • मलिक मुहम्मद जायसी हिन्दी साहित्य के भक्ति काल की निर्गुण प्रेमाश्रयी धारा के कवि हैं । वे अत्यंत उच्चकोटि के सरल और उदार सूफ़ी महात्मा थे। उनका जन्म सन १५०० के आसपास माना जाता है। वे उत्तर प्रदेश के जायस नामक स्थान के रहनेवाले थे। उनके नाम में जायसी शब्द का प्रयोग, उनके उपनाम की भांति, किया जाता है। उनके पिता का नाम मलिक राजे अशरफ़ बताया जाता है और वे मामूली ज़मींदार थे और खेती करते थे। स्वयं जायसी का भी खेती करके जीविका-निर्वाह करना प्रसिद्ध है। सैयद अशरफ़ उनके गुरु थे और अमेठी नरेश उनके संरक्षक थे। उनकी २१ रचनाओं के उल्लेख मिलते हैं जिसमें पद्मावत, अखरावट, आख़िरी कलाम, कहरनामा, चित्ररेखा आदि प्रमुख हैं। पर उनकी ख्याति का आधार पद्मावत ग्रंथ ही है। इसकी भाषा अवधी है और इसकी रचना-शैली पर आदिकाल के जैन कवियों की दोहा चौपाई पद्धति का प्रभाव पड़ा है।

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