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जंग/डॉ पद्मावती  

 चांद थककर सो गया था बादलों की ओट में कुछ क्षणों के लिए ….पर आकाश जगमगा रहा था,  टिमटिमाते अनगिनत सितारों से । चमक ऐसी लुभावनी जितनी भारतीय सेना आधुनिक हथियारों से लेस जगमगा रही थी…पूरी तैयारी के साथ…पूरे जोश से ।

नीचे जमीन पर घुप्प अंधेरा …इतना कि हाथ को हाथ न सूझे।  । सिपाही अपनी-अपनी पोजीशन पर तैनात थे । कैप्टन अमरेंद्र की आँखें सूक्ष्मता से स्थिति का जायजा ले रही थी ।

“ सिपाहियों …आगे ट्रेंच ”  । कैप्टन की धीमी फुसफुसाहट । “ अंदर जाना है…झुककर… टुकड़ी अंदर । सब तैयार ? जय भारत माता की ..”।

धीरे-धीरे सभी सिपाही अंदर अपने  हथियार की नोक तानकर झुक गए ।

“ जय भारत माता की…यस कैप्टन सब तैयार” ।

अंधकार को चीरती गोलियों की आवाजें  । आग उगलते बारूद । दिल दहलाते शोले । धरती कांप सी जा रही थी ।

“सुबेदार…वीरेंद्र सिंग …तुम मुझे कवर दो । कमॉन क्विक…” कैप्टन  तेजी से आगे बढे ।

‘क्षमा सर …मैं आगे रहूँगा सरजी” ।

“ पागल न बनो … ऑर्डर ईस ऑर्डर … यहाँ जान नहीं दुश्मन हमारा लक्ष्य है” ।

“ पर आप इस टुकडी के लिए उतने ही जरूरी हो सर । लक्ष्य वही रहेगा । थोडी सी अदला-बदली । मैं आगे और आप कवर करेंगे” ।

“ नो । सजा हो सकती है तुम्हें ऑर्डर न मानने के जुर्म में । कैप्टन मैं हूँ या तुम ?”

“ सर ! आपकी आज्ञा सर आँखों पर लेकिन मैं आगे ” ।

सुबेदार वीरू  कैप्टन के  आगे हो आया और हथियार संभाला ।

दोनों ओर से वार …नेहले पर देहला … घात-प्रतिघात । । वातावरण थर्राने लगा । भयभीत और अप्रत्याशित … ।

इतने में बिजली सी   सनसनाती गोली आई और वीरू के सीने पर लगी । वह  खून से लथपथ लेकिन, न वार करना  छोड़ा न पीछे ही हटा  ।  पर अगले ही क्षण दर्द से छटपटाता कटे वृक्ष की भांति जमीन पर गिर पड़ा ।

“सुखना …अ…अ। ” कैप्टन की  चीख गूँज उठी  । “ वीरू घायल हो गया…उसे ट्रेंच के अंदर…” ।

चारों और खून का फव्वारा । धरती खून से रंग गई …और…और … शन्नो चीख मारकर उठ बैठी ।

पूरा बदन पसीने से लथपथ ।  हड़बड़ी में उसने बाहर देखा … रात गुम होने की कगार पर थी । चारों ओर हल्की चम्पई रोशनी ।  “उफ्फ… सुबह का सपना ? सुबह का सपना सच होता है । ईश्वर न करे यह सच हो” । दर्द में उसके मुँह से सिसकारी निकल गई  ।  आजकल इसी तरह के भयानक सपने आ रहे थे ।

अचानक फोन की घंटी बजी ।  रीढ़ की हड्डी में ठंडी सी  सिरहन दौड़ आई । गर्भ में शिशु भी अकड़ गया । भंयकर पीड़ा होने लगी । पूरे नौ महीने का गर्भ … अब तो प्रसव कभी भी हो सकता था .. । इसीलिए आजकल नींद कहाँ आती थी  ?

फोन लगातार बज  रहा था पर उठाने की हिम्मत कहाँ थी? ।  रूह तक  फड़फड़ा रही थी  ।

अपनी कंपकंपी पर  काबू पाकर  बडी मुश्किल से उसने अपने  बदन को घसीटा और  फोन उठाया ।

“ भाभी” वहाँ से आवाज आई । “मैं सुखना … जंग खत्म हो गई है … हमारी फतह हुई’ ।

उसे लगा सुखना की आवाज  जैसे दूर से आ रही हो । आंखें मुंदी जा रही थी ।

“ वो कैसे हैं भय्या ?  पूछना चाहा   पर मुँह से बोल न निकले । बस होंठ कांप कर रह गए । कुछ अपशकुन सुनने की आशंका दिल की धड़कन  तेज किए जा  रही थी ।

उस तरफ  से  बस  हांफ़ने की आवाज सुन कर वह समझ गया । देर न करते हुए जल्दी से बोला, “ भाभी …आपका  फौलादी शेर एकदम चंगा है …बस थोड़ा सा घायल हो गया है । गोली ठीक सीने पर लगी पर वो तो शेर है न …और रक्षा कवच के कारण जान बच गई । आपका होने वाला बच्चा किस्मत वाला  है …किस्मत वाला ।  बस एक दो दिन  ।  ठीक होते ही बात करेगा आपका शेर । और हाँ, दोनों साथ आएंगे … जब छोटा शेर आ जाएगा । अब फोटो खींचने का जिम्मा भी तो मेरा । चाचा जो हूँ ।  चिंता न करना । रखता हूँ…जय माता दी” ।

फोन कब कट  गया पता ही न चला पर शन्नो अब भी उसे चिपटाए माथे से लगाए हांफ रही थी । अंदर बंद रुलाई अब और न रुक सकी । बांध तोड़कर उफनती बाहर आ गई । आंसुओं से मुंह तरबतर हो गया । वह  तेज-तेज  रोए जा रही थी । आंसू थे कि  रुक ही न रहे थे  । एक ही धुन…एक ही नाम …वीरु…वीरु…वीरु …। उसका रोम-रोम वीरू बन गया । पेट को सहलाती उसका नाम जपे जा रही थी  और…और …बीच -बीच में अपनी हथेलियों को चूमे जा रही थी ।

इन्हीं  हथेलियों में …हाँ… इन्हीं हथेलियों में वह अपना चेहरा छुपा लेता था …हमेशा …प्यार से ।

न अश्रु ही थमे और न ही होंठ ..।

भ्रम था या सच? जो भी था उसे जिला गया  ।

एक बार फिर मन दोहराने लगा…वीरू के शब्द जो जाते वक्त उसने उससे कहे थे , “ शन्नो …समझो जंग में अगर मुझे कुछ हो गया तो… तुम्हें मेरा सपना पूरा करना है …लड़का हो या लड़की ….मेरा बच्चा बड़ा होकर सेना में ही जाएगा…समझी । लड़की हुई तो डॉक्टर बनेगी और घायलों की सेवा करेगी । और हाँ… मैं जानता हूँ लड़की ही होगी ” । और फिर झुककर फूला हुआ पेट चूम लिया था उसने ।

याद आ रहा था …एक एक शब्द…एक एक अक्षर ।  कुछ ही क्षण तो  थे वे …पर अविस्मरणीय ! उन क्षणों की स्मृति में एक जीवन बिताया जा सकता था …हाँ …पूरा एक जीवन ।

“ शुभ-शुभ बोलो जी” । शन्नो ने और कुछ कहने  से पहले ही उसके होंठों पर उंगली रख दी थी। ।

“ जो तुम चाहो वैसा  ही होगा । विश्वास करो । पर अब कभी ऐसे अपशकुन न बोलना । मेरी प्रतीक्षा  ढाल बनकर तुम्हारी रक्षा करेगी…तुम्हें कुछ न होगा जी”। उसने उसे कसकर चिपटा लिया था और…उसकी जकड़  में पिघल गई थी वह कुछ क्षणों के लिए ही सही  ।

वही…वही  आखिरी बार था । और…फिर… फिर तो वह चला गया था ।

‘कितनी बार तुझे समझा चुकी कि पहली जचगी माँ के घर होवे है, पर इस सूबेदारनी को समझ ही नहीं आवे” ।

उसकी तंद्रा टूटी । सामने सासु माँ दूध लिए खड़ी थी ।

“वीरू बोल कर गया है कि मेरी घरवाली का ख्याल रखना । अब कुछ उलट सीध हो जाए तो मैं किसी को मुँह दिखाने को न रहूँगी । पर ये माने तो न ।   रात भर चिल्लाती रही । न जाने क्या देखती है सपने में?  चिंता न कर बहू … मेरा वीरू शेर है शेर । ” बूढ़ी कमला केसर डाला दूध का कटोरा थमाते बोली ।

शन्नो  क्षण में दूध गटक गई । “हाँ  माँ …पर अब खाली दूध से काम न चलेगा । तेरी पोती  तो पेट में ही परेड करे है । कुछ और भी खिला दे …बडी भूख लागे है… तेरे शेर की लाड़ली भी भूखी है ” ।  वह रोते-रोते हंस पडी ।

सूरज क्षितिज पर आ गया …एक बार फिर  अंधेरे को कुचल कर,जीत का तिरंगा फैलाता हुआ ।

आज बहुत दिनों के बाद सुबेदार का आँगन  हंसी की किलकारियों से गूँज रहा था ।

 

 

 

 

 

 

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लेखक

  • डॉ. पद्मावती

    डॉ पद्मावती. शैक्षिक योग्यताएँ = एम. ए, एम. फिल, पी.एच डी, स्लेट (हिंदी) जन्म स्थान = नई दिल्ली वैवाहिक स्थिति = विवाहित ई -मेल = padma.pandyaram@gmail.com संप्रति = * सह आचार्य, हिंदी विभाग, आसन मेमोरियल कॉलेज, जलदम पेट , चेन्नई, 600100 . तमिलनाडु . अध्यापन कार्य = गत 17 वर्षों से स्नातक महाविद्यालय में हिंदी भाषा • महाविद्यालयों और विश्व विद्यालयों में अतिथि व्याख्यान. • चेन्नई के कई स्वायत्त महाविद्यालयों के स्नातक परीक्षाओं में हिंदी के प्रश्न पत्रों का निर्माण तथा पांडिचेरी विश्वविद्यालय की वार्षिक परीक्षाओं में अध्यक्ष और परीक्षक की भूमिका का निर्वहण . साहित्यिक सेवाएं • चेन्नई की लब्ध प्रतिष्ठित स्वैच्छिक हिंदी संस्थान ‘ सत्याशीलता ज्ञानालय’ से जुड़कर कई साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी , अनेक साहित्यकारों का साक्षात्कार, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्टियो का संचालन और संयोजन . • हिंदी साहित्य भारती तमिलनाडु इकाई की मीडिया प्रभारी . • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्टियो में प्रतिभगिता और शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण. • ‘रचना उत्सव’ मासिक पत्रिका की दक्षिण भारत की मुख्य समन्वयक • ‘भारत दर्शन’ की संपादक (दक्षिण भारत साहित्य) प्रकाशन • विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में शोध आलेखों का प्रकाशन, • जन कृति,वीणा मासिक पत्रिका, समागम, साहित्य यात्रा जैसी लब्ध प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और साहित्य कुंज व पुरवाई कथा यू .के .जैसी सुप्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित लेखन कार्य , कहानी , व्यंग्य लेखन , स्मृति लेख , चिंतन, यात्रा संस्मरण, सांस्कृतिक और साहित्यिक आलेख,पुस्तक समीक्षा ,सिनेमा और साहित्य समीक्षा इत्यादि का प्रकाशन . सम्मान • हिंदी दिवस समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित ‘सत्याशीलता ज्ञानालय’ के कार्यक्रम में ७/१२/२०१३ को चेन्नई के माननीय राज्यपाल श्री के. रोसय्या द्वारा शिक्षक सम्मान प्रदान किया गया . • ‘नव सृजन कला साहित्य एवं संस्कृति न्यास’, नई दिल्ली द्वारा ‘हिंदी साहित्य रत्न सम्मान” • ‘हिंदी अकादमी, मुंबई द्वारा’ ‘विशेष हिंदी प्रचारक सम्मान 2021’ • अंतर्राष्ट्रीय महिला मंच द्वारा ‘नारी गौरव सम्मान’ • भारत उत्थान न्यास द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘ भगिनी निवेदिता सम्मान’

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