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गली का राजा/डॉ पद्मावती

सवेरे सवेरे मीरा ने हॉल की खिड़की खोली तो देखा सामने ऊपर की  सीढ़ियों पर एक कुत्ता अधमरी हालत में बेहोश सा लेटा हुआ था।  आवारा सड़क छाप गली का कुत्ता था जो अपनी बिरादरी से झगड़ कर शायद घायल हो गया था और बचाव के लिए उसने यहाँ शरण ले ली थी।  पहली नजर में तो मीरा ने अनदेखा कर दिया।  सुबह काम भी था और व्यस्तता भी।  मीरा काम में लग गई और इस ओर से मन हटा लिया।

शाम को घर लोटने पर  मीरा को सुबह देखे हुए  कुत्ते का ध्यान आया। सोचा चला गया होगा अपनी राह।  लेकिन कुछ देर बाद सीढ़ियों से कुछ आवाजें सुनाई देने लगी।  जिज्ञासावश उसने खिड़की खोलकर  सीढ़ियों की ओर झांका तो पाया कि वह कुत्ता गया नहीं था बल्कि वहीं उसी हालत में लेटा अपनी आखिरी सांसे गिन रहा था।  अब उसकी आंखें आधी  खुली हुई थी जो कातर दृष्टि से आने जाने वालों से  सहायता की याचना कर रही थी लेकिन किसी के पास भी उसकी ओर ध्यान देने का समय कहाँ था? मशीनी युग में सब मशीन ही तो बन गए है।  मीरा भी तो सुबह यूँही सब की तरह ही चली गई थी लेकिन अब उसे देखकर उसका दिल पसीज गया।  उसने  उसके पास आकर उसे ध्यान से देखा।  कृशकाय ,गाढ़ा गेरुआ रंग , मध्यस्थ कद, गले में पट्टा , यानि किसी के द्वारा त्यजित पालतू जान पड़ता था|  शरीर पर कोई व्यक्त घाव भी न था |  अच्छी नस्ल का लग रहा था … मीरा को देखकर उसका हल्के से दुम हिलाना, अपनी निसहायता में भी स्नेह का प्रदर्शन उसे विकल कर  गया।  जानवर भावनाओं  की भाषा जानते हैं। नेक ह्रदय को पहचान लेते है।  दया ममता उसके ह्रदय में भी थी।  वह झटपट  दौड़ कर अंदर गई और एक कटोरे में दूध लाकर  उसके सामने धर दिया।   उसने लेटे-लेटे दुम हिलाकर कृतज्ञता तो ज्ञापित की लेकिन उठकर दूध भी न पी सका।  शायद गंभीर रूप से बीमार था या अशक्त … वैसे ही अर्ध-मूर्छित  सा लेटा रहा।

वैसे तो मीरा पालतू कुत्तों से भी बहुत डरती थी।  घर में कभी कोई पालतू जानवर पालने की उसने अनुमति नहीं दी थी।  जीव-जंतुओं का उसके घर में प्रवेश निषिद्ध था क्योंकि एक बार मुन्नू और पिंकी  की जिद्द के कारण शेखर एक छोटे से पिल्ले को ले कर आ गए थे।  शेखर को कुत्तों को पालने का बहुत शौक था।  सुरक्षा की दृष्टि से  वे चाहते थे कि एक अच्छी नस्ल का कुत्ता पाला जाए क्योंकि आये दिन वे दौरे पर निकल जाते थे और मीरा बच्चों के साथ घर में अकेली रहती थी।  पर मीरा की जिद्द के कारण सब चुप थे।  हुआ यूँ था कि वह पिल्ला जो बिना मीरा की अनुमति से घर में लाया गया था उसकी रवानगी एक ही दिन में कर दी गई थी क्योंकि उसका अपराध यह था कि उस  अनुशासनहीन पिल्ले ने अपने लिए बिछाए गए टाट  के सिवा पूरा घर गंदा कर दिया था सू-सू करके।  सजा यह दी गई थी  उस पिल्ले ने इस घर में सुबह का सूरज नहीं देखा।  शेखर सवेरे -सवेरे उसे अपने दोस्त के यहाँ छोड़ आए थे।  बच्चों ने काफी शोर मचाया लेकिन मीरा की धमकियों के आगे उनकी एक न चली।  आखिर पूरा घर साफ मीरा ने ही किया था न।  तब से सबने कसम खा ली थी कि किसी चौपाया प्राणी को घर में नहीं लाया जाएगा।  सभी आज्ञाकारी वचनबद्ध थे और फिर किसी जीव-जंतु को इस घर में पालतू नहीं बनाया गया था।  ऐसा नहीं था कि मीरा के दिल में जीव-जंतुओं के लिए दया नहीं थी।  वह तो नियमित रूप से सड़क के आवारा कुत्तों को रोटी खिलाती थी लेकिन घर में लाने से घबराती थी बस। आज सीढ़ियों पर इस निरीह प्राणी को देखकर उसके मन में दया जग आई।  लेकिन वह बेचारा दूध पीने की हालत में भी नहीं था।  मुँह से धीमी- धीमी अजीबो-गरीब आवाजें निकाल रहा था।  वह  कुछ देर खड़ी उसे ताकती रही फिर धीरे से नीचे उतर आई।

अगली  सुबह दूध लेने के लिए मीरा ने जैसे ही  दरवाजा खोला तो देखा वह कुत्ता तो उनकी चौखट पर बिछी कालीन पर सिकुड़ कर लेटा हुआ था।  ।  उसे देखते ही वह धीमे से उठ खड़ा हुआ और दुम हिलाने लगा पर उसकी आंखों में अभी भी संदेह और भय साफ नजर आ रहा था।   मीरा ने तत्क्षण डांट कर उसे खदेड़ देना चाहा पर तभी बच्चे आवाज सुनकर बाहर आ गए और उसे देखकर खुशी से उछलने लगे।  कुत्ता भी उन्हें देखकर दुम हिलाता अपनी प्रसन्नता जाहिर करने लगा।  अब वह कुछ  स्वस्थ भी लग रहा था  और डर धीरे-धीरे निकल रहा था।  बच्चे उसको घेर कर खड़े हो गए।

मीरा चिल्लाती रही लेकिन उस की डांट अब  बेअसर हो गई थी क्योंकि वो भी कुछ  कम न थे … अपनी माँ द्वारा दिखाई गई करुणा का सबूत ‘दूध का कटोरा’ देख चुके थे तो अब वे क्योंकर डरते? अब तो उनकी मन मुराद पूरी हो गई थी ।  वे उसे प्यार से पुचकारने लगे।  उसके बालों में उंगलियां फिराने लगे और वह भी सहज होकर उनके साथ घुल-मिल रहा था।  अब तो  उनमें अविरल दया का सागर भी उमड़ने लगा था।  कटोरों में भर-भर कर दूध पिलाया जाने लगा।  घर से ब्रेड ले ली गई  और दूध में डुबो-डुबोकर श्वान महाराज को खिलाई जाने लगी ।  शेखर व्यक्तिगत रूप से वहाँ उपस्थित होकर पूरी व्यवस्था की निगरानी भी कर रहे थे ताकि कहीं पर किसी प्रकार की लापरवाही न हो।  कुत्तों को क्या खिलाया जाना चाहिए  है और क्या नहीं इस पर बच्चों को जानकारी भी दी  जा रही थी।  यह सब देख  मीरा ने अपने किए अपराध पर सर पीट लिया। लेकिन “अब पछ्ताए  होत क्या जब चिडिया  चुग गई खेत”।  अब तो कुछ किया नहीं जा सकता था फिर भी उसने कडे शब्दों में  चेतावनी दे दी थी कि वह बाहर ही रहेगा और अंदर नहीं लाया जाएगा।  उसे भी समझ आ रहा था शायद … तभी तो वह भी वहीं  दूर बैठा संदेहात्मक नजरों  से इस नए परिवार का आतिथ्य ग्रहण कर रहा था।

अब तो वह सब का एक अच्छा मनोरंजन का साधन बन गया था।  शेखर और उसके बच्चों के जिगर का टुकड़ा । अब बारी आई नामकरण की ….तो भूरा वर्ण देखकर ‘भूरा’ नाम तीनों को उपयुक्त लगा।  मीरा अभी भी इनके गुट  में नहीं मिली थी।  कभी कभार केवल अन्न पान व्यवस्था तक ही उसका दायित्व सीमित था।

अब तो वह स्वस्थ ह्रष्ट्पुष्ट जानदार बन चुका था।  पूरी गली में उसका रोब था।  गली के बीचों बीच पाँव पसार कर बैठा रहता और सतर्कता से  निगरानी करता।  वहाँ अब उसका ही राज चलता था।  कोई भी परिंदा उसकी आज्ञा के बिना गली में प्रवेश भी न कर पाता था।  किसी  अन्य कुत्ते को भी वह आने नहीं देता था।  इतना ही नहीं फेरीवाले भी उससे डरने लग गए थे। हाँ !मोहल्ले के सभी लोगों को वह पहचानने लगा था ।  किसी अंजान प्राणी  के गली में प्रवेश करते की लपलपाती जीभ निकाल कर नुकीले  दांतों की नुमाइश कर वह ऐसे गुर्राता कि आने वाला उलटे पांव दौड जाता था।   अब तो हर कोई उस गली में आने से घबराने लगा था।  वह उस मोहल्ले का ‘स्व-घोषित राजा’  बन चुका था और शेखर को वह अपना मालिक चुन चुका था।

भूरा स्वतंत्र प्रकृति का स्वाभिमानी कुत्ता था।  अपनी शर्तों पर जीने वाला।  शायद पहले किसी घर का आश्रय मिला था और ठुकरा दिया गया था क्योंकि कोरोना काल में सुनने को आया था कि कई परिवारों ने अपने पालतू जानवरों को बीमारी के डर से बेघर कर दिया था।  ऐसा ही कुछ हुआ होगा भूरा के साथ भी।  इसीलिए उसके व्यवहार में निर्लिप्तता देखने को मिलती थी।  वह इंसानों के अतिशय  प्रेम से घबराता था।  शायद डर था कि ये भी उसे कहीं बेघर न छोड़ दें।  बड़ा ही आत्म निर्भर और आत्माभिमानी।  इधर -उधर से अपने खाने का इंतजाम कर लेता था।  दिन भर या तो घूमता रहता या गली में  शान से बैठा रहता पर रात को कभी -कभी सुस्ताने को सीढ़ियों पर आकर लेट जाता था।  कभी भी उसने शेखर परिवार से अपने लिए खाने की  जिद्द नहीं की थी। ।  किसी पर भी आश्रित नहीं था वह।  उस परिवार ने उसके प्राण बचाए थे तो उपकृत होने की कृतज्ञता का प्रदर्शन वह उन्हें चूम चाट  कर दिखाता था।  उन्हें देखते ही उन पर चढ जाता और जीभ लपलपाकर  चाटने लगता।  उसके इस निश्छल प्रेम से गदगद होकर वे उसे कभी कभार दूध रोटी अवश्य खिला देते थे।  हाँ मीरा को वह बहुत चाहता था लेकिन उसकी खींची आभासी लक्ष्मण रेखा को उसने कभी लांघने की कोशिश नहीं की थी ।  दोनों ने हमेशा दूरी बनाए रखी और दोनों इसी में खुश भी थे।

मोहल्ले  में भूरा की वैसे तो सबसे ठीक-ठाक ही पटती थी पर अगर किसी से छत्तीस का आंकड़ा था तो वे महाशय थे शास्त्री जी और उनका परिवार।  हाँ भूरा का एक और भी जानी दुश्मन था इस गली में  और वह था ‘शंकर प्रेसवाला’ जो छोर पर  ठेला गाड़ी लगाकर लोगों के कपडे इस्त्री  करता था।  भूरा का आगमन तो गली में अभी हुआ था लेकिन ये दोनों यानी शास्त्री जी और शंकर तो गली के पुराने निवासी थे।  भूरा को ये दोनों एक आंख भी न भाते थे।  न जाने उन दोनों को देखकर इसे क्या हो जाता था … गुर्राते हुए भौंक-भौंक कर बुरा हाल कर देता तब तक  जब तक शेखर का परिवार उनके बचाव के लिए न आता।  उसका बस चले तो वह उन दोनों का वहाँ टिके रहना हराम कर देता ।  वे भी उससे उतनी ही ईर्ष्या करते थे जितनी भूरा।  उसे कभी पत्थरों से या टहनियों से मारते थे।  तो कहना गलत नहीं होगा कि दोनों योद्धा बराबर के स्तर के ही थे।

शंकर का चरित्र तो प्रश्न सूचक था ही लेकिन शास्त्री जी …? वे तो कर्मकाण्डी थे … पूजा पाठ करते थे।  पता नहीं फिर क्यों …कैसे बन गए भूरा के जानी दुश्मन।  दरअसल आरंभ से ही वे उसका भला चाहने वालों में से नहीं थे।  उससे हमेशा घृणा करते थे।  शायद यही कारण रहा होगा कि भूरा भी उनके  स्पंदन के अनुरूप ही उनसे वैसे ही व्यवह्रत होता था।  वैसे भूरा की नस्ल संरक्षक कुत्ते की थी।  वह था तो आक्रामक और खूंखार पर अत्यंत स्नेहशील ,चंचल और प्यार का भूखा  निष्ठावान कुत्ता।   पता नहीं क्यों वह शास्त्री जी को भी देखकर भडक जाता और उनकी धोती जब तक न खींच ले ,उसे कल न पड़ती थी।  इसीलिए वे शेखर परिवार पर दबाव भी डालने लगे थे कि वह उसे अपने घर में बांध कर रख ले।  लेकिन शेखर भी विवश था मीरा की जिद्द के सामने।  वह उसे अपने घर में कैसे  रख सकता था।  आखिर था तो वह गली का ही कुत्ता …सो उसने साफ मना कर दिया।

एक दिन वही हुआ जिसकी उम्मीद थी ।  शास्त्री जी अपने दामाद के साथ सैर पर निकले।  तब तक गली में चुपचाप सोया भूरा उठा और पीछे पड गया शास्त्री जी के।  दोनों में छीना झपटी होने लगी।  दोनों ही उन्नीस बीस।  भूरा किसी को काटता तो नहीं था, अब तक तो उसने वैसा व्यवहार न किया  था  पर पशु जाति …कैसे कोई विश्वास करें।  सब डरते थे।  तो शास्त्री जी भी जोर-जोर से चिल्लाने लगे।  पडौसी दौड़ कर उनके बचाव में पहुंचे और मुश्किल से उन्हें और उनकी धोती को छुड़ाया गया।  अब तो शास्त्री जी का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।  पानी नाक से ऊपर आ गया था।  तत्क्षण शास्त्री जी ने घोषणा की  कि अगर शेखर परिवार इस आवारा कुत्ते का स्वामित्व लेने को तैयार नहीं होता तो उसे नगर पालिका को खबर देकर उठवा दिया जाएगा।  दुश्मन का दुश्मन दोस्त।  शंकर ने तेजी से हां में हाँ मिलाई।  तत्क्षण निर्णय लिया गया।  नगर पालिका को संपर्क किया गया।  भूरा को भगा देने की  सभी तैयारियां आरंभ हो गई।

शेखर ने बहुत समझाने का प्रयत्न किया , ‘शास्त्री जी  देखिए।  यह कुत्ता इतना भी अनियंत्रित नहीं है।  आप अनावश्यक डर रहे है।  किसी प्राणी की रक्षा करना अपराध नहीं है।  हमारे परिवार ने वही किया।  यह इतना भी असहनीय नहीं।  इसे हम कैसे अपना सकते है ? फिर किसी मूक जंतु से ऐसा तो नहीं बर्ताव किया जाता’?

‘मूक जंतु?’ शास्त्री जी भड़क उठे।

‘नहीं-नहीं यह तो सभी का दायित्व है और नगर पालिका वाले पता नहीं इससे कैसा बर्ताव करेंगे? कृपया इतना जघन्य अपराध न कीजिए’।

‘देखिए शेखर जी, अगर इतनी ही सहानुभूति है तो इस बला को अपने मत्थे चढ़ा लीजिए? हमारे सर क्यों छोड़  रखा है?

‘आप जानते है, मैं ऐसा नहीं कर सकता। हम सब बाहर जाते है। फिर यह है तो गली का ही कुत्ता लेकिन हम सब की रखवाली भी तो कर रहा है। आप अनावश्यक ही इसे पत्थरों से मारने लगते है और यह भड़क जाता है। सोचिए! इसके आने के बाद गली में हम सब कितना  निश्चिंत हो गए है। दया करके ऐसा मत कीजिए।  हम सब मिलकर इसे संभाल लेगें या फिर किसी पशुपालन केंद्र से भी बातचीत की जा सकती है । आप कुछ दिन सहिष्णुता रखिए । सब ठीक हो जाएगा’ ।

शास्त्री जी टस से मस न हुए।   आखिर नगर पालिका वालों को लाकर ही माने।

अगले दिन दोपहर को नगर पालिका की गाडी आई।  शेखर सुबह ही अनमना सा ऑफिस निकल गया था।  मीरा भी दुखी थी।   इस पूरे प्रकरण का दोषी वह स्वयं को मान रही थी।  न उस दिन वह उसे बचाती न यह दिन देखना पडता।  या तो वह ईश्वर को प्यारा हो जाता या अपने आप ही स्वस्थ होकर किसी दूसरी गली में आश्रय ढूँढ़ लेता जहां इंसान रहते हों।  इस तरह अमानुष व्यवहार तो न होता उसके साथ।  पर वह कर ही क्या सकती थी ईश्वर से प्रार्थना के सिवाय?

नगर पालिका की गाडी छोर पर रुकी।  दो कर्मचारी उतरे और गली में चले आए।  सामान्यतः इस गाडी को देखकर कुत्ते तो भागकर पाताल में छुप जाया करते है लेकिन आश्चर्य! भूरा सड़क पर अविचलित सा अडिग बैठा रहा और उन्हें घूरने लगा।  चालाक प्राणी था भूरा,उन्हें देखकर भौंका भी नहीं।  शास्त्री जी गेट के अंदर से ही चिल्लाए,’ ध्यान रखिए साहब यहाँ आइए।  यही खतरनाक कुत्ता है जिसके लिए हमने आपको बुलाया है’।

‘यह कुत्ता? पर इसके गले में तो पट्टा है। यानि इसको अनुर्वर कर टीका दे दिया गया है।  तो आपने हमें क्यों बुलाया ? हम इसे नहीं ले जा सकते?

‘देखिए साहब, इधर आइए’। शास्त्री जी ने धीमे स्वर में उन्हें अपने घर के अंदर बुलाकर कहा,’भैया, यह आवारा कुत्ता हम सबको बहुत तंग करता है।  हम पूरी गली वाले इससे परेशान हो गए है।  तुम कुछ भी करो इसका।  मैं तुम्हें पैसा दूँगा।  मार दो जला दो पर यह हमें यहाँ नहीं चाहिए’।

कर्मचारी की आंखें आश्चर्य से फैल गई।  ‘ लग तो नहीं रहा इसे देखकर कि यहाँ सभी इससे परेशान है।  और आपने हमें समझ क्या रखा है ? हम कुत्ते मारने वाले है? कितनी घिनौनी बात कह दी आपने? और आप  पैसा देंगे? तो सुनो।  अगर कल को इस कुत्ते को कुछ हुआ न तो ब्लू क्रॉस से कहकर तुम्हारे खिलाफ मैं गवाही बनकर तुम्हें जेल की चक्की पिसवाऊंगा।  समझे लाला जी।  जानवरों को मारना अपराध ही नहीं जघन्य अपराध है।  खबरदार अगर ऐसा सोचा भी तो’।

भूरा चुपचाप आज्ञाकारी बनकर निर्वैर भाव से  दोनों का वार्तालाप सुन रहा था।  नासमझ होकर भी वह सब कुछ समझ गया था।  निडर बैठा रहा अपनी जगह से हिले-डुले  बिना।  थोडी देर में गाडी जैसे आई थी  वैसे ही धूल उड़ाती चली गई।

शेखर आज दोपहर का भोजन भी कर न पाया था।  उसने कल शर्मा जी को कह दिया था कि उसे फोन कर सब सूचना दे दे।  पर अभी तक फोन न आया था।  उसकी बेचैनी बढ़ रही थी।

फोन की घंटी बजी।  शर्मा जी लाइन पर थे।  उन्होंने पूरे काण्ड की जानकारी शेखर को दी।  शेखर विस्मित हो गया ,शास्त्री जी के व्यवहार से नहीं भूरा की निडरता और निर्भीकता से,अपनी जगह से विस्थापित न होने के दृढ़ निश्चय से।

अगले दिन सुबह सुबह शेखर टहलने निकला तो देखा कि शास्त्री जी एक कटोरे में दूध लेकर भूरा को पुचकार कर बुला रहे है और भूरा चुपचाप खड़ा उनके चरित्र के  इस अप्रत्याशित परावर्तन को असमंजस से घूर रहा है।  आश्चर्य तो यह था कि वह उन पर भौंक भी नहीं रहा था।

‘जो मार से नहीं वह प्यार से साधने की कोशिश’। लाला जी की समझ में बात आ गई पर थोडी देर से।

‘सुप्रभात लाला जी ‘। शेखर ने हाथ हिला कर अभिवादन किया।

लाला जी अपनी झेंप छिपाते  बोले ,’ माफ करना शेखर ,कल  मैं कुछ ज्यादा ही कर गया था पर लगता है अब सब ठीक हो जाएगा’।

‘कोई बात नहीं शास्त्री जी। जानवर तो प्यार का भूखा होता है। रोटी खिलाए हाथ को कभी नहीं भूलता। थोड़ा स्नेह दिखाओ तो गुलाम बन जाता है।  इससे अधिक वफादार और कौन होगा’? भूरा दौड़ता हुआ आया और शेखर के सीने पर अपने  दोनों पैर रखकर उछल-उछल कर उसे चाटने लगा।

अब तो भूरा  की जगह स्थाई और निश्चित हो ही गई है।  आजकल वह सड़क के बीचों बीच अकड़ से बैठता है।  उसने भी लाला जी से सुलह कर ली है।  अब शंकर ही बाकी है।  उससे भी दोस्ती हो ही जाएगी ….शायद…क्योंकि अब तो वह ‘सर्वमान्य गली का राजा’ जो बन गया है…।

***

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

लेखक

  • डॉ. पद्मावती

    डॉ पद्मावती. शैक्षिक योग्यताएँ = एम. ए, एम. फिल, पी.एच डी, स्लेट (हिंदी) जन्म स्थान = नई दिल्ली वैवाहिक स्थिति = विवाहित ई -मेल = padma.pandyaram@gmail.com संप्रति = * सह आचार्य, हिंदी विभाग, आसन मेमोरियल कॉलेज, जलदम पेट , चेन्नई, 600100 . तमिलनाडु . अध्यापन कार्य = गत 17 वर्षों से स्नातक महाविद्यालय में हिंदी भाषा • महाविद्यालयों और विश्व विद्यालयों में अतिथि व्याख्यान. • चेन्नई के कई स्वायत्त महाविद्यालयों के स्नातक परीक्षाओं में हिंदी के प्रश्न पत्रों का निर्माण तथा पांडिचेरी विश्वविद्यालय की वार्षिक परीक्षाओं में अध्यक्ष और परीक्षक की भूमिका का निर्वहण . साहित्यिक सेवाएं • चेन्नई की लब्ध प्रतिष्ठित स्वैच्छिक हिंदी संस्थान ‘ सत्याशीलता ज्ञानालय’ से जुड़कर कई साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय भागीदारी , अनेक साहित्यकारों का साक्षात्कार, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्टियो का संचालन और संयोजन . • हिंदी साहित्य भारती तमिलनाडु इकाई की मीडिया प्रभारी . • राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्टियो में प्रतिभगिता और शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण. • ‘रचना उत्सव’ मासिक पत्रिका की दक्षिण भारत की मुख्य समन्वयक • ‘भारत दर्शन’ की संपादक (दक्षिण भारत साहित्य) प्रकाशन • विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्र -पत्रिकाओं में शोध आलेखों का प्रकाशन, • जन कृति,वीणा मासिक पत्रिका, समागम, साहित्य यात्रा जैसी लब्ध प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और साहित्य कुंज व पुरवाई कथा यू .के .जैसी सुप्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित लेखन कार्य , कहानी , व्यंग्य लेखन , स्मृति लेख , चिंतन, यात्रा संस्मरण, सांस्कृतिक और साहित्यिक आलेख,पुस्तक समीक्षा ,सिनेमा और साहित्य समीक्षा इत्यादि का प्रकाशन . सम्मान • हिंदी दिवस समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित ‘सत्याशीलता ज्ञानालय’ के कार्यक्रम में ७/१२/२०१३ को चेन्नई के माननीय राज्यपाल श्री के. रोसय्या द्वारा शिक्षक सम्मान प्रदान किया गया . • ‘नव सृजन कला साहित्य एवं संस्कृति न्यास’, नई दिल्ली द्वारा ‘हिंदी साहित्य रत्न सम्मान” • ‘हिंदी अकादमी, मुंबई द्वारा’ ‘विशेष हिंदी प्रचारक सम्मान 2021’ • अंतर्राष्ट्रीय महिला मंच द्वारा ‘नारी गौरव सम्मान’ • भारत उत्थान न्यास द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘ भगिनी निवेदिता सम्मान’

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