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ताज़गी/शुचि ‘भवि’

दोनों पहले कभी नहीं मिली थीं, मगर इस तरह बातें कर रहीं थीं जैसे बचपन की सहेलियाँ हों।मानव सुलभ स्वभाव ऐसा ही तो है, अपने काम का मस्तिष्क व व्यवहार खोज ही लेता है। फिर ख़ूब बतियाता है और आनन्द का अनुभव करता है।

ट्रेन का वह डिब्बा आज गुलज़ार था।एक बर्थ पर खाना-ख़ज़ाना चल रहा था तो दूसरी बर्थ पर सिलाई -कढ़ाई।

कहीं गहना प्रदर्शन था तो कहीं घर परिवार की तीमारदारी के क़िस्से।

मगर इस जीवंत डिब्बे में भी, एक बर्थ ऐसी थी जिस पर एक वृद्ध और दूसरी अधेड़, दो महिलाएँ एकदम चुप बैठीं थी।वृद्ध महिला बार-बार अपनी उँगलियों की झुर्रियों से झाँकती अँगूठियों को निहारती थी। वहीं अधेड़ महिला आते- जाते लोगों को देखती, अपने कटे बालों को बीच-बीच में हाथ से झटकती, अपने कपड़े ठीक करती और फिर पर्स से कुछ निकाल कर खा लेती।

अगले स्टेशन पर जब रेलगाड़ी रुकी तो एक सलीक़ेदार, गौरवर्णा युवती बोगी में आयी। जगह ख़ाली देखकर वह इस वृद्ध महिला को नमस्ते कहकर पूछने लगी, “क्या मैं यहाँ बैठ जाऊँ चाचीजी?”

तमतमाते हुए वृद्धा बोली, “बैठना है बैठ जाओ, जगह दिख नहीं रही क्या, वैसे मैं कोई तुम्हारी चाची नहीं हूँ, समझी।”

“आँटी तो मैं बोलूँगी नहीं, इसलिए चाचीजी कहा, आप कहें तो मौसीजी पुकारूँ।”

“अजीब लड़की हो, ज़बरदस्ती के रिश्ते बना रही हो, ऐसे ही लोग ठग होते हैं। मैं तुम्हारी मौसी-वौसी नहीं हूँ, जान लो।…” वृद्धा की बात ख़त्म भी न हुई थी कि अधेड़ महिला बीच में ही बोल पड़ी, “जी , जी आप बिलकुल ठीक कह रही हैं, आजकल चोरनियाँ ऐसे ही भेष बदल कर घूमती रहती हैं।”

अब तक वह सभ्रांत युवती अपना सामान करीने से सीट के नीचे लगाकर बैठ गयी थी। उसने मुस्कुरा कर दोनों महिलाओं को देखा जो अब अपने अपने निंदा पुराण साझा करने लगीं थी। उनकी बातों को अनसुना कर वह अपने पर्स से किताब निकाल कर तन्मयता से पढ़ने लगी। उसे यह ध्यान भी नहीं रहा कि कौन अगल-बग़ल से आ-जा रहा है।

कुछ देर बाद अचानक दरवाज़े के पास से चिल्लाने की आवाज़ आई। चोर-चोर, मेरा पर्स छीनकर, चलती गाड़ी से उतर गया, कोई पकड़ो। लेडिस कम्पार्टमेंट होने के कारण आसपास कोई पुरुष नहीं था जो तुरंत  चोर के पीछे दौड़ता।

युवती ने जब शोर सुना तब उसकी एकाग्रता टूटी और उसने पाया कि वृद्धा चिल्ला रही हैं-चोर चोर, कोई तो मदद करो।

युवती ने तुरंत चेन खींची मगर तब तक चोर फ़रार हो चुका था।

वृद्धा के आँसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। वह बोलती जा रहीं थी- मोबाइल, पैसे, घर की चाबियाँ सब कुछ ले गया मुआ। अब घर कैसे जाऊँगी, फ़ोन नम्बर भी याद नहीं है कि बेटी को बुलाऊँ स्टेशन।

युवती ने रोती हुई वृद्धा को सहारा दिया और सीट पर बिठाया। कुछ शांत होकर वृद्धा ने अपनी हम मस्तिष्क, सफ़र में बनी सहेली से कहा, बहन क्या तुम मुझे कुछ रुपये दे सकती हो, अपना एकाउंट नम्बर भी दे देना, बेटी से कहकर डलवा दूँगी। निंदा पुराण में तन्मयता से साथ देने वाली धनाढ्य सहेली तुरंत ही ग़रीबी की देवी बन गयी थी।

युवती ने कहा, “चाचीजी कितने रुपये चाहिए , बताइए मैं देती हूँ और उसने पाँच सौ के चार नोट उनके हाथ पर रख दिये।”

“नहीं नहीं बिटिया बस पाँच सौ, स्टेशन से घर तक ही तो जाना है। ईश्वर तुम्हारा भला करे, सदा सुखी रहो, ख़ूब फूलो-फलो बिटिया।

अपना एकाउंट नम्बर भी दे दो।”

” आपको चाचीजी कहा है न, और आपने भी आशीर्वाद दिया है अभी- अभी, अमूल्य है जो मेरे लिए। इस भतीजी की तरफ से ये आप रख लीजिए चाचीजी।

ट्रेन अगले स्टेशन पर रुकी और  वह अधेड़ महिला उतर गयी।

अब इस बर्थ पर भी रिश्तों और मानवता की ताज़गी थी।

 

लेखक

  • शुचि 'भवि' पिता - डॉ.त्रिलोकी नाथ क्षत्रिय माता-श्रीमती सुदेश क्षत्रिय जन्मतिथि- 24 नवंबर शिक्षा - एम.एस. सी.(इलेक्ट्रॉनिक्स, गोल्डमेडलिस्ट), एम. ए. ( हिंदी), बी.एड. सम्प्रति - अध्यापन,डिपार्टमेंट हेड(फ़िज़िक्स) प्रकाशित कृतियाँ - 'मेरे मन का गीत' (ओ३म् दोहा चालीसा), 'बाँहों में आकाश' (दोहा सतसई), "सबसे अच्छा काल" (बाल दोहा शतक), "ख़्वाबों की ख़ुश्बू" (काव्य संग्रह), "आर्यकुलम् की नींव"(महर्षि दयानंद दोहा शतक), "मसाफ़त-ए-ख़्वाहिशात" (ग़ज़ल संग्रह), "सबमें हैं जगदीश" ( नानक चालीसा), " ज़र्द पत्ते और हवा" (लघुकथा संग्रह), "हेतवी" (उपन्यास), छंद फ़ुलवारी(छंद संग्रह) अन्य प्रकाशन विवरण:- (i) 'दोहा एकादशी', 'दोहा दुनिया', दोहा मंथन, 'विविध प्रसंग',101 महिला ग़ज़लकार,इक्कीसवीं सदी के इक्कीसवें साल की बेहतरीन ग़ज़लें,कथांजली व बूँद-बूँद में सागर (लघुकथा संग्रह), शेषामृत(गीत संग्रह), 21 श्रेष्ठ बालमन की कहानियाँ(छत्तीसगढ़)व अन्य साझा संकलन (ii)चश्म-ए-उर्दू,हरिगंधा,अदबी दहलीज़,अर्बाबे क़लम, गीत गागर, छत्तीसगढ़ मित्र, छत्तीसगढ़ आस पास, नारी का सम्बल, काव्यांजलि,आदि पत्रिकाओं सहित अनेक समाचार पत्रों एवं ई-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशन सम्मान / पुरस्कार (i) शारदा साहित्य मंच खटीमा(उत्तराखंड) द्वारा प्रदत्त- "दोहा-शिरोमणि" की मानद उपाधि (ii) दोहा दंगल साहित्य मंच(साहिबाबाद) द्वारा प्रदत-"दोहा रत्न" की मानद उपाधि (iii) विश्व वाणी हिन्दी संस्थान जबलपुर द्वारा 'दोहा श्री' अलंकरण (iv) छन्द-मुक्त अभिव्यक्ति मंच द्वारा "गुरुत्व" एवं "शब्द श्री" सम्मान (v) छंदमुक्त अभिव्यक्ति मंच द्वारा प्रदत्त 'सृजन सम्मान', 'शब्द शिल्पी' सहित समय-समय पर अनेक सम्मान। अन्य -दूरदर्शन व आकाशवाणी रायपुर से रचनाओं का समय-समय पर प्रसारण संपर्क का पता- बी-512,सड़क-4,स्मृति नगर,भिलाई नगर,छत्तीसगढ़-490020

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