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झूट की नाव के सफर में सब/बृंदावन राय सरल

मुश्किलें बन रहे उड़ानों में।
आशियां जो हैं आसमानों में।
मुझको गारा बनाके बाँधा है
और खुद छुप गए मचानों में।
झूट की नाव के सफर में सब,
कौन सच बोलता बयानों में।
आज दुनिया उसे आकिल  माने,
आब जो रोक ले ढलानों में।
आज खुशियों को खा रहा मौसम,
जिंदगी है ग़मों के खानों में।

लेखक

  • बृंदावन राय सरल माता- स्व. श्रीमती फूलबाई राय पिता- स्व. बालचन्द राय जन्मतिथि- 03 जून 1951 जन्म स्थान- खुरई, सागर (मध्य प्रदेश) शिक्षा- साहित्य रत्न, आयुर्वेद रत्न, सिविल इंजीनियर । भाषा - हिंदी, बुंदेली, उर्दू । प्रकाशन- हिंदी व बुंदेली भाषा में 14 किताबें प्रकाशित । साझा संकलन- लगभग 225 संकलनों में रचनाएं सम्मलित के अलावा देश-विदेश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का अनवरत प्रकाशन ।

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