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कहीं पांवों में छाले हैं कहीं आंखों में पानी है/बृंदावन राय सरल

नगर में गांव में दर-दर भटकती नौजवानी है।
कहीं पांवों में छाले हैं कहीं आंखों में पानी है।।
कहां खुशियों के काजल से सँवरना थी सभी आंखें।
कहां लोगों की आंखों में ग़मों की राजधानी है।।
ग़रीबों के लहू की गंध आती है हवेली से,
यही ऊंचे मकानों के महकने की कहानी है।।
नहीं है फर्क दिल्ली की या भोपाली फिजाओं में,
कहीं तूफां में कश्ती है कहीं कश्ती में पानी है।।
यहीं गीता महकती है यहीं कुरआन की खुश्बू,
मेरे भारत की कौमी एकता की ये निशानी है।

लेखक

  • बृंदावन राय सरल माता- स्व. श्रीमती फूलबाई राय पिता- स्व. बालचन्द राय जन्मतिथि- 03 जून 1951 जन्म स्थान- खुरई, सागर (मध्य प्रदेश) शिक्षा- साहित्य रत्न, आयुर्वेद रत्न, सिविल इंजीनियर । भाषा - हिंदी, बुंदेली, उर्दू । प्रकाशन- हिंदी व बुंदेली भाषा में 14 किताबें प्रकाशित । साझा संकलन- लगभग 225 संकलनों में रचनाएं सम्मलित के अलावा देश-विदेश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का अनवरत प्रकाशन ।

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