नगर में गांव में दर-दर भटकती नौजवानी है।
कहीं पांवों में छाले हैं कहीं आंखों में पानी है।।
कहां खुशियों के काजल से सँवरना थी सभी आंखें।
कहां लोगों की आंखों में ग़मों की राजधानी है।।
ग़रीबों के लहू की गंध आती है हवेली से,
यही ऊंचे मकानों के महकने की कहानी है।।
नहीं है फर्क दिल्ली की या भोपाली फिजाओं में,
कहीं तूफां में कश्ती है कहीं कश्ती में पानी है।।
यहीं गीता महकती है यहीं कुरआन की खुश्बू,
मेरे भारत की कौमी एकता की ये निशानी है।
कहीं पांवों में छाले हैं कहीं आंखों में पानी है/बृंदावन राय सरल