+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

उतरा है वो जरूर किसी आसमान से/बृंदावन राय सरल

रिश्ता जुड़ा है खुशबुओं के खानदान से।
झरते हैं फूल इसलिए मेरी ज़ुबान से।।
जीते हैं वही शान से मरते हैं शान से।
गिरते नहीं हैं लोग जो अपनी ज़ुबान से।।
लगता नहीं है हुस्न से वो इस जहान का।
उतरा है वो जरूर किसी आसमान से।।
अपनी जुबान खोलने के कब्ल सोच ले।
लौटा नहीं है तीर जो निकले कमान से।।
संदल महक रहा है मेरे घर के  चारसू।
गुजरा  है वो ज़रूर ही मेरे मकान से।।

लेखक

  • बृंदावन राय सरल माता- स्व. श्रीमती फूलबाई राय पिता- स्व. बालचन्द राय जन्मतिथि- 03 जून 1951 जन्म स्थान- खुरई, सागर (मध्य प्रदेश) शिक्षा- साहित्य रत्न, आयुर्वेद रत्न, सिविल इंजीनियर । भाषा - हिंदी, बुंदेली, उर्दू । प्रकाशन- हिंदी व बुंदेली भाषा में 14 किताबें प्रकाशित । साझा संकलन- लगभग 225 संकलनों में रचनाएं सम्मलित के अलावा देश-विदेश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं में रचनाओं का अनवरत प्रकाशन ।

    View all posts
उतरा है वो जरूर किसी आसमान से/बृंदावन राय सरल

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×