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सात रंग के घोड़े / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

सूरज का रथ लिए जा रहे
सात रंग के घोड़े ।
कभी न भटके अपने पथ से
कभी न खाये कोड़े ।।

रोज नापते पूरब पश्चिम
कोई भी ऋतु आये ।
पथ में आयी बाधाओं से
कभी नहीं घबराये ।।

कभी न रुकते, कभी न थकते,
आगे बढ़ते जाते ।
जीवन का मतलब चलना है,
सबको यह समझाते ।।

सबको यही इशारे करते
सात रंग के घोड़े ।
वही पहुँचता मंजिल तक
जो पथ को कभी न छोड़े ।।

तुम भी कभी न हार मानना ,
चलते रहो निरन्तर ।
कदम तुम्हारे कभी न रोके
जग का कोई भी डर ।।

मन में अडिग इरादे लेकर
आगे बढ़ते जाना ।
एक नया इतिहास बनाकर
अपनी मंजिल पाना ।।

लेखक

  • त्रिलोक सिंह ठकुरेला

    त्रिलोक सिंह ठकुरेला जन्म-तिथि ---- 01 - 10 - 1966 जन्म-स्थान ----- नगला मिश्रिया ( हाथरस ) पिता ----- श्री खमानी सिंह माता ---- श्रीमती देवी प्रकाशित कृतियाँ --- 1 . नया सवेरा ( बाल साहित्य ) 2. काव्यगंधा ( कुण्डलिया संग्रह ) 3 . समय की पगडंडियों पर ( गीत संग्रह ) 4. आनन्द मंजरी ( मुकरी संग्रह) 5. सात रंग के घोड़े ( बाल कविता संग्रह ) सम्पादन --- 1. आधुनिक हिंदी लघुकथाएँ 2. कुण्डलिया छंद के सात हस्ताक्षर एवं अन्य पुस्तकें सम्मान / पुरस्कार --- राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा 'शम्भूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार ' तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी ( राजस्थान) द्वारा 'बाल साहित्य सर्जक सम्मान सहित अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित । प्रसारण - आकाशवाणी और रेडियो मधुवन से रचनाओं का प्रसारण पाठ्यक्रम में --- महाराष्ट्र राज्य की दसवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक 'हिंदी कुमारभारती ' सहित लगभग दो दर्जन पाठ्यपुस्तकों में रचनाएँ सम्मिलित । अनुवाद-- अनेक रचनाओं का पंजाबी में अनुवाद । विशिष्टता --- कुण्डलिया छंद के उन्नयन , विकास और पुनर्स्थापना हेतु कृतसंकल्प एवं समर्पित । सम्प्रति --- उत्तर पश्चिम रेलवे में इंजीनियर चल-वार्ता -- 9460714267

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