+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

नदी है वोट की गन्दी हमें उस पार जाना है/दिलजीत सिंह रील

वही बादल चले हैं क्यों गिराने बिजलियां लेकर ।
हताशा में खड़े हम राहतों की तख्तियां लेकर ।।

नदी है वोट की गन्दी हमें उस पार जाना है ।
अभी ठहरो न जाओ छेद वाली कश्तियां लेकर।।

यहां आई गरीबी, आफतों की आंधियां बनकर ।
वहां वो पी रहे हैं चाय काफी चुस्कियां लेकर ।।

अगर सपने सलौनों का खिलौना टूट जाएगा ।
कहां जिन्दा बचेगा यह,बचपना मस्तियां लेकर ।।

जुआ सट्टा शराबी छेड़ने वाले वहीं तो हैं ।
करेंगे क्या भला अनुदान वाली बस्तियां लेकर।।

कहां नालायकों को है समझ नादान हैं भोले ।
सभी तो पास हैं सारे मवाली गल्तियां लेकर ।।

कहीं कोई नहीं होगा हमारी भारती जैसा ।
यहां हर गांव झूमे है निराली हस्तियां लेकर।।

दिलजीत सिंह रील

लेखक

नदी है वोट की गन्दी हमें उस पार जाना है/दिलजीत सिंह रील

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×