वही बादल चले हैं क्यों गिराने बिजलियां लेकर ।
हताशा में खड़े हम राहतों की तख्तियां लेकर ।।
नदी है वोट की गन्दी हमें उस पार जाना है ।
अभी ठहरो न जाओ छेद वाली कश्तियां लेकर।।
यहां आई गरीबी, आफतों की आंधियां बनकर ।
वहां वो पी रहे हैं चाय काफी चुस्कियां लेकर ।।
अगर सपने सलौनों का खिलौना टूट जाएगा ।
कहां जिन्दा बचेगा यह,बचपना मस्तियां लेकर ।।
जुआ सट्टा शराबी छेड़ने वाले वहीं तो हैं ।
करेंगे क्या भला अनुदान वाली बस्तियां लेकर।।
कहां नालायकों को है समझ नादान हैं भोले ।
सभी तो पास हैं सारे मवाली गल्तियां लेकर ।।
कहीं कोई नहीं होगा हमारी भारती जैसा ।
यहां हर गांव झूमे है निराली हस्तियां लेकर।।
दिलजीत सिंह रील
नदी है वोट की गन्दी हमें उस पार जाना है/दिलजीत सिंह रील