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दिल में इक शहर बसाया है आपकी खातिर/दिलजीत सिंह रील

दिल में इक शहर बसाया है आपकी खातिर ।
उसमें फिर प्यार जगाया है आपकी खातिर।।

इस झिलमिलाती चांदनी मे डूब कर कोई ।
आपके नूर से नहाया है आपकी खातिर।।

मेरा दीन मेरा ईमान मेरा इश्क है ।
दिलो जां सबकुछ लुटाया है आपकी खातिर।।

फिर मिलेंगे आपने कहा थाजिस जगह वहीं।
ये सिर सिज़दे में झुकाया है आपकी खातिर।।

सूरज के आने से पहले हमने फलक से।
हार तारों का चुराया है आपकी खातिर।।

प्यार के दरिया में दिल का टापू बसा है।
दरगा की तरह सजाया है आपकी खातिर।।

दिलजीत सिंह रील

लेखक

दिल में इक शहर बसाया है आपकी खातिर/दिलजीत सिंह रील

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