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जब सपने गीले होते हैं/दिलजीत सिंह रील

दुखदर्द कटीले होते हैं।
ये बहुत हठीले होते हैं।।

इनसे बचना मुश्किल इनके।
खूंखार कबीले होते हैं।।

पलकों में ही घुट जाते हैं‌।
जब सपने गीले होते हैं।।

पैनेपन से कलम अंजी हो।
तब व्यंग्य चुटीले होते हैं।।

सांपों से तो बच जाओगे ।
आदम जहरीले होते है़।।

उसके अधरों से जो झरते।
संवाद नशीले होते हैं।।

पेड़ों पर ही पक जाते हैं।
वो आम रसीले होते हैं।।

मातृ-भूमि पर मिटने वाले।
जां-बाज छबीले होते है़।।

दिलजीत सिंह रील

लेखक

जब सपने गीले होते हैं/दिलजीत सिंह रील

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