हम किये थे जिनके हवाले बाग को साहिब ।
दीमकें चाट गईं उन्हीं दिमाग को साहिब।।
कदम हमने,अब हैं बढ़ाए,चांद की जानिब ।
मुफलिसी ये,कब तक सुनेगी राग को साहिब।।
जब अंधेरे हम कर सके ना प्यार से रौशन।
क्या करेंगे, ऐसी सुलगती आग को साहिब।।
गिद्ध की ही तरहा, गड़ी है आंख दुश्मन की।
छेड़ ना पाये भारती भू भाग को साहिब।।
देश को कोई हादसा कमजोर ना कर पाये ।
कुचल दो मंदी नागिनों के नाग को साहिब।।
दिलजीत सिंह रील
जब अंधेरे हम कर सके ना प्यार से रौशन/दिलजीत सिंह रील