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गीत व्यंग्य लय गज़ल गयी/दिलजीत सिंह रील

कितने सारे यार गये ।
हमको जिन्दा मार गये ।।

यार गये जां वार गये ।
सुख के सब आधार गये।।

बसे हुए थे आंखों में ।
सपनों के संसार गये ।।

डोरी थामें रिश्तों की ।
सारे रिश्ते हार गये ।।

प्राणों के कोषालय से ।
जीवन के उपहार गये ।।

वे सब महा तपस्वी थे ।
अपने कुल को तार गये ।।

गीत व्यंग्य लय गज़ल गयी।
कविता के घरबार गये।।

कागज़ पूजे जायेंगे ।
स्याही जहां उतार गये ।।

हमें दिखाकर राह नयी ।
हम पर कर उपकार गये।।

दिलजीत सिंह रील

लेखक

गीत व्यंग्य लय गज़ल गयी/दिलजीत सिंह रील

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