तन का पर्वत मन का सागर रक्खा है ।
गिरवी रक्षित हाथों में घर रक्खा है ।।
कच्चे मटके फूट रहे हैं विश्वासों के ।
सोणी का विश्वास जहां पर रक्खा है ।।
अच्छे दिन का सपना फैंका था, हमने ।
वो ही सपना आंखों में भर रक्खा है ।।
हम जुटे हुए हैं अपना भाग जगाने को।
पैर जख्मी कंधे पर कांवर रक्खा है ।।
यूं हमने दर्दो गम से पूरे तन को ।
पहना कर जख्मों का जेवर रक्खा है ।।
चाह नहीं परवाह नहीं है दुनिया की ।
हमने घर में श्रीधर नागर रक्खा है ।।
गाड़ी हांकों भैयाजी हमने इसमें ।
कर्मों का फल श्रम का गागर रक्खा है।।
दिलजीत सिंह रील
गाड़ी हांकों भैयाजी हमने इसमें/दिलजीत सिंह रील