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जीवन भर करते रहे, सिर्फ़ एक ही काम/ गोविन्द सेन

बजा रहे हैं झुनझुना, जुटा रहे हैं भीड़ ।

अपने महलों के लिए, हाथी तोड़े नीड़ ।।-1

मित्र किताबों ने किया, दूर बहुत अवसाद ।

रद्दी  में  तुल  जाएँगी,   लेकिन  मेरे  बाद ।।-2

तन पर जितने दाग हैं, उनको तमगे मान ।

ये तमगे ही आजकल, दिलवाते सम्मान ।।-3

अपना दामन मत बचा, लगने दे कुछ दाग ।

दागी  ही  आगे  बढ़े,—– पीछे  हैं  बेदाग ।।-4

रोटी की मत बात कर, ना खेतों  की  बात ।

उजले उजले दिन बता, बता न काली रात ।।-5

जीवन भर करते रहे, सिर्फ़ एक ही काम ।

एक नाव खेते रहे, जीवन जिसका नाम ।।-6

धुआँ-धुआँ है हर तरफ, धुँधले सब आकार ।

ऊँचे – ऊँचे  पेड़  भी,   खड़े  बिना  आधार ।।-7

हाथी के दुख के लिए, जुटे  हुए  हैं  शाह ।

चींटी के दुख की यहाँ, कौन करे परवाह ।।-8

हाथी के पाँवों तले, दब जाती चुपचाप ।

सदियों से हम जानते, चींटी के संताप ।। 9

नहीं चीखती चींटियाँ, नहीं माँगती भीख ।

जीना चींटी की तरह, हाथी तू भी सीख ।।-10

चींटी के घर में हुआ, हाथी जब मेहमान ।

चींटी को ऐसा लगा, प्रकट हुए भगवान ।।-11

कंधे पर ले चींटियाँ,  हाथी जितना भार ।

आगे बढ़ती जा रहीं, बनकर एक कतार ।।-12

 गोविन्द सेन

लेखक

  • गोविन्द सेन जन्म-15/08/1959 साहित्य की विभिन्न विधाओं में एक लम्बे अरसे से लेखन l कृतियाँ : 1- चुप्पियाँ चुभती हैं, 2- देखा सा मंजर (ग़ज़ल संग्रह) 3- अकड़ूभुट्टा, 4- नकटी नाक (निमाड़ी हाइकु संग्रह), 5- नवसाक्षरों के लिए पाँच पुस्तिकाएँ, 6- बिना पते का प्रशंसा पत्र (व्यंग्य संग्रह), 7- खोलो मन के द्वार (दोहा संग्रह) 8- महक रहा है मोगरा (बाल कविता संग्रह) 9- सफ़ेद कीड़े, 10- दसवी के भोंगाबाबा, 11- अधूरा घर (कहानी संग्रह) संपर्क : 193 राधारमण कॉलोनी, मनावर-454446, जिला-धार, (म.प्र.), मोबा. 9893010439

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