बजा रहे हैं झुनझुना, जुटा रहे हैं भीड़ ।
अपने महलों के लिए, हाथी तोड़े नीड़ ।।-1
मित्र किताबों ने किया, दूर बहुत अवसाद ।
रद्दी में तुल जाएँगी, लेकिन मेरे बाद ।।-2
तन पर जितने दाग हैं, उनको तमगे मान ।
ये तमगे ही आजकल, दिलवाते सम्मान ।।-3
अपना दामन मत बचा, लगने दे कुछ दाग ।
दागी ही आगे बढ़े,—– पीछे हैं बेदाग ।।-4
रोटी की मत बात कर, ना खेतों की बात ।
उजले उजले दिन बता, बता न काली रात ।।-5
जीवन भर करते रहे, सिर्फ़ एक ही काम ।
एक नाव खेते रहे, जीवन जिसका नाम ।।-6
धुआँ-धुआँ है हर तरफ, धुँधले सब आकार ।
ऊँचे – ऊँचे पेड़ भी, खड़े बिना आधार ।।-7
हाथी के दुख के लिए, जुटे हुए हैं शाह ।
चींटी के दुख की यहाँ, कौन करे परवाह ।।-8
हाथी के पाँवों तले, दब जाती चुपचाप ।
सदियों से हम जानते, चींटी के संताप ।। 9
नहीं चीखती चींटियाँ, नहीं माँगती भीख ।
जीना चींटी की तरह, हाथी तू भी सीख ।।-10
चींटी के घर में हुआ, हाथी जब मेहमान ।
चींटी को ऐसा लगा, प्रकट हुए भगवान ।।-11
कंधे पर ले चींटियाँ, हाथी जितना भार ।
आगे बढ़ती जा रहीं, बनकर एक कतार ।।-12
गोविन्द सेन