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सोच रही है द्रौपदी/रघुविन्द्र यादव

दिनभर खायी मछलियाँ, किया रात को जाप।

बगुले  ने  यूँ  धो  लिये,      अपने  सारे  पाप।।-1

खेती-बाड़ी का नहीं, जिन्हें तनिक भी ज्ञान|

बना  रहे  वे  नीतियाँ,   कैसे  बचें  किसान?-2

दीपक का  होता रहा, हर  युग  में  गुणगान|

किसने रेखांकित किया, बाती का बलिदान||-3

जला  उम्रभर  दीप- सा,    करता  रहा  उजास|

उसकी खातिर अब कहाँ, वक़्त किसी के पास||-4

कैसे समझेगा भला, वो हिरणों की पीर|

बैठा हुआ मचान पर, हाथों  में  ले  तीर||-5

कोई डूबा बाढ़ में, बुझी किसी की प्यास|

बरसा है मातम कहीं, और कहीं उल्लास||-6

कज़रा, गज़रा आलता, पायल, कंगन, हार|

विधवा  होते  ही  हुए,    क्यों  सारे  बेकार?-7

खून चूसती  कुर्सियाँ, नफ़रत  बोते  मंच|

यही आज का सत्य है, बाकी झूठ प्रपंच||-8

खाली तरकस भाव का, नहीं छंद का ज्ञान|

ऐसे  भी  तो  लोग  अब, कहलाते  विद्वान||-9

लोकतंत्र  घायल  पड़ा, राज करें सामंत|

नियम और कानून हैं, अब जैसे गजदंत||-10

जिन्हें पराये दर्द का, नहीं ज़रा अहसास|

उनसे कैसे न्याय की, रख ले कोई आस||-11

सोच रही  है  द्रौपदी, खड़ी  सभा  के  बीच|

मौन और अट्टहास में, कौन अधिक है नीच||-12

रघुविन्द्र यादव

लेखक

  • रघुविन्द्र यादव जन्म : 27 सितंबर, 1966 को नीरपुर, नारनौल में श्रीमती दमयंति यादव और नम्बरदार जोखीराम के घर। शिक्षा- मास्टर ऑफ मास कम्यूनिकेशन, एम.ए.(इतिहास), शिक्षा स्नातक। प्रकाशित पुस्तकें : कुल- 22 मौलिक- 1. नागफनी के फूल 2. वक्त करेगा फैसला 3. आये याद कबीर (दोहा संग्रह), 4. मुझमें संत कबीर 5. कुंडलिया कुमुद (कुण्डलिया छंद संग्रह) 6. बोलता आईना 7. अपनी-अपनी पीड़ा (लघुकथा संग्रह) 8. कविता के विविध रंग (काव्य संग्रह) 9. कामयाबी की यात्रा (निबंध संग्रह) 10. आस का सूरज (ग़ज़ल संग्रह)। संपादित- 1. आधी आबादी के दोहे 2. आधुनिक दोहा 3. मानक कुण्डलिया 4. दोहे मेरी पसंद के 5. दोहों में नारी 6. हलधर के हालात 7. नयी सदी के दोहे 8. शंखनाद 9. जीने की राह 10. पर्यावरण परिचय 11. अभिनन्दन के स्वर 12. समकालीन दोहा।

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