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बिगड़ गया   पर्यावरण/डॉ मंजु गुप्ता

बिगड़ गया   पर्यावरण , उठने लगे सवाल।

मानव के निज स्वार्थ से, प्रकृति हुई बेहाल।।-1

जब से जंगल कट रहे , ऋतुएँ  हैं बेजान।

बीमारी, सूखा  सदा , बुला रहा  इंसान।।-2

दूषित पर्यावरण का , नर खुद  जिम्मेदार।

बुला रहा बीमारियाँ  , मानवता  बेजार।।-3

छेद हुआ ओजोन में, बढ़ा सूर्य का ताप।

जीव जंतु भी मरने लगे, लू बनी अभिशाप।।-4

कर जंगल बरबाद सब, बनते आज मकान।

मार पड़ेगी प्रकृति पर, आएंगे  तूफ़ान ।।-5

फोड़  पटाखे  चकरियाँ ,  मचा रहें हैं शोर ।

करते ये ध्वनि प्रदूषण, कान करें कमजोर।।-6

सुधरे “मंजू ” हम नहीं ,  बुरी बने तस्वीर ।

नहीं रहेगा आशियाँ ,  रोए खुद तकदीर ।।-7

जल  वन है  भू – संपदा ,  नहीं करो बम – वार ।

तापक्रम भू का बढ़े ,  प्राणों का संहार ।।-8

सूख नदी, पोखर रहे , जल – संकट घनघोर।

लगीं टूटने सांस अब , शोर मचा सब ओर।।-9

चिड़ियाँ  गायब  हो रहीं , फैले टावर – जाल।

बीमारी भी बढ़ रही , बुला रहा नर, काल।।-10

करना पर्यावरण की , रक्षा में उपकार।

खिड़की आँगन छत धरा,   पौध उगा परिवार।।-11

काट-काट के वृक्ष सब, करी धरा वीरान।

होगी ग्लोबल वार्मिंग, होते क्यों हैरान।।-12

डॉ मंजु गुप्ता

लेखक

  • डॉ. मंजु गुप्ता जन्मतिथि: 21 /12 /1953 जन्मस्थान: ऋषिकेश , उत्तराखंड शिक्षा : एम.ए (राजनीति शास्त्र) , बी.एड. संप्रति : सेवा निवृत्त हिंदी शिक्षिका । कृतियाँ : प्रांतपर्वपयोधि (काव्य) , दीपक (नैतिक कहानियाँ), सृष्टि(खंडकाव्य), संगम (काव्य), भारत महान (बालगीत), सार (निबंध), परिवर्तन (सामाजिक कहानियाँ ), 923 दोहों में मनुआ हुआ कबीर , पारसमणि ( आलेख -संग्रह )

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