बिगड़ गया पर्यावरण , उठने लगे सवाल।
मानव के निज स्वार्थ से, प्रकृति हुई बेहाल।।-1
जब से जंगल कट रहे , ऋतुएँ हैं बेजान।
बीमारी, सूखा सदा , बुला रहा इंसान।।-2
दूषित पर्यावरण का , नर खुद जिम्मेदार।
बुला रहा बीमारियाँ , मानवता बेजार।।-3
छेद हुआ ओजोन में, बढ़ा सूर्य का ताप।
जीव जंतु भी मरने लगे, लू बनी अभिशाप।।-4
कर जंगल बरबाद सब, बनते आज मकान।
मार पड़ेगी प्रकृति पर, आएंगे तूफ़ान ।।-5
फोड़ पटाखे चकरियाँ , मचा रहें हैं शोर ।
करते ये ध्वनि प्रदूषण, कान करें कमजोर।।-6
सुधरे “मंजू ” हम नहीं , बुरी बने तस्वीर ।
नहीं रहेगा आशियाँ , रोए खुद तकदीर ।।-7
जल वन है भू – संपदा , नहीं करो बम – वार ।
तापक्रम भू का बढ़े , प्राणों का संहार ।।-8
सूख नदी, पोखर रहे , जल – संकट घनघोर।
लगीं टूटने सांस अब , शोर मचा सब ओर।।-9
चिड़ियाँ गायब हो रहीं , फैले टावर – जाल।
बीमारी भी बढ़ रही , बुला रहा नर, काल।।-10
करना पर्यावरण की , रक्षा में उपकार।
खिड़की आँगन छत धरा, पौध उगा परिवार।।-11
काट-काट के वृक्ष सब, करी धरा वीरान।
होगी ग्लोबल वार्मिंग, होते क्यों हैरान।।-12
डॉ मंजु गुप्ता