टीवी ही माता-पिता, मोबाइल गुरु ज्ञान ।
नए कपोतों को मिली,भटकन भरी उड़ान ॥-1
निष्ठाएँ गिरवीं हुईं, कुंठित है विश्वास ।
प्रतिभा को करना पड़ा,आजीवन उपवास ॥-2
शोर,धुआँ,उलझन,घुटन, भीड़,जाम, हड़ताल ।
महानगर ढोते रहे , हम यूँ सालों साल ॥-3
सजल नयन को देखकर,बोला खारा सिंधु ।
मुझसे अधिक विराट हैं, तेरे ये जलविंदु ॥-4
टेसू टेसू होंठ हैं, सेमल सेमल गाल ।
नटवर नागर मन हुआ, राधा हुई निहाल॥-5
देख शहर की शाम का,कौतुक अंधाधुंध ।
गांवों की मुंडेर पर, जा बैठी है धुंध ॥-6
सूरज जकड़ा शीत में, लज्जा वाला रूप ।
जाड़ों में मलमल लगे, सुबह सुबह की धूप॥-7
धुआँ उगलते मुख सभी, समझ गए हैं चाल ।
कुहरे के प्रस्ताव पर, सूरज की हड़ताल ॥-8
दिन बबूल के शूल से,नागफनी हर रात ।
आख़िर क्यों पैदा किए तुमने ये हालात ॥-9
दर्पण सुविधा का पकड़, देखें निज तस्वीर ।
वे क्या बाँचेंगे भला, जनता की तक़दीर ॥-10
कुहरे के इस पार हम, सूरज है उस पार ।
पर गुपचुप चलता रहा, किरणों का व्यापार ॥-11
ब्रह्मचर्य के नियम के, जड़ें जहाँ थे फ़्रेम ।
वहीं चिरौटे कर रहे, काम कला से प्रेम ॥-12
दिनेश रस्तोगी