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उनका ही टी.वी. हुआ/राजेन्द्र वर्मा

कठिन  तपस्या  से  मिला,  हमको  ऐसा  राज।

कुछ को छप्पन भोग तो, कुछ को सड़ा अनाज।।-1

आरक्षण से हो रहा, जिनका हृदय अशांत।

वे  कैसे  लागू  करें, समता  का  सिद्धांत ॥-2

इधर तनी बंदूक है , उधर भौंकते श्वान।

हिटलर बैठा बाँटता, लोकतंत्र का ज्ञान॥-3

उनका ही टी.वी. हुआ, उनका ही अख़बार।

अब ख़बरें  वे  ही  चलें, जो  चाहें  सरकार॥-4

कहने को जनतंत्र है, तंत्र मगर  स्वच्छंद।

जनगणमन की भावना, संविधान में बंद॥-5

कहने को कहला रही, जनता की सरकार।

रीति-नीति में है मगर, जनता ही पर भार॥-6

किसी भाँति बुझती नहीं, सामंतों की प्यास।

बस्ती-बस्ती लिख रही, प्यासों का इतिहास॥-7

कहने-भर को ही रहा, कर्माधारित वर्ण।

क्षात्र कर्म के बाद भी, शूद्र ही रहा कर्ण॥-8

ऐसा आया है समय, अचरच में हैं सार्थ।

तत्त्वज्ञान के बाद भी, मोहग्रस्त हैं पार्थ॥-9

क़लमकार भी रख रहे, हत्यारे का पक्ष।

दो कौड़ी का गोडसे, गाँधी के समकक्ष॥-10

औरों का हक़ छीनकर, जो भी बनें  महान।

उनके ही  घर  में पलें, भाग्य और भगवान॥-11

काशी – काबे  में  रहे , और   रहे   हरिद्वार।

किंतु वासना का रहा, सभी जगह अधिकार॥-12

राजेन्द्र वर्मा

लेखक

  • राजेन्द्र वर्मा जन्म-8 नवम्बर 1957, बाराबंकी (उ.प्र.) के एक गाँव में। प्रकाशन पाँच ग़ज़ल संग्रह, तीन गीत/नवगीत-संग्रह, दो दोहा-संग्रह, दो हाइकु-संग्रह, ताँका, पद, और छह व्यंग्य-संग्रह, निबंध, उपन्यास, कहानी, आलोचना, काव्य-शास्त्र विधाओं में दो दर्ज़न से अधिक पुस्तकें प्रकाशित। महत्वपूर्ण संकलनों में सम्मिलित। संपादन हिंदी ग़ज़ल के हज़ार शेर, गीत-शती, गीत-गुंजन तथा साहित्यिक पत्रिका अविरल मंथन (1996-2003) पुरस्कार-सम्मान उ.प्र.हिन्दी संस्थान के श्रीनारायण चतुर्वेदी और महावीरप्रसाद द्विवेदी नामित पुरस्कारों सहित देश की अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित। अन्य लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा रचनाकार पर एम्-फिल.। अनेक शोधग्रन्थों में संदर्भित। चुनी हुई कविताओं का अँगरेज़ी में अनुवाद। एक निबंध पाठ्यक्रम में सम्मिलित। सम्पर्क 3/29 विकास नगर, लखनऊ 226 022 (मो. 80096 60096)

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