कठिन तपस्या से मिला, हमको ऐसा राज।
कुछ को छप्पन भोग तो, कुछ को सड़ा अनाज।।-1
आरक्षण से हो रहा, जिनका हृदय अशांत।
वे कैसे लागू करें, समता का सिद्धांत ॥-2
इधर तनी बंदूक है , उधर भौंकते श्वान।
हिटलर बैठा बाँटता, लोकतंत्र का ज्ञान॥-3
उनका ही टी.वी. हुआ, उनका ही अख़बार।
अब ख़बरें वे ही चलें, जो चाहें सरकार॥-4
कहने को जनतंत्र है, तंत्र मगर स्वच्छंद।
जनगणमन की भावना, संविधान में बंद॥-5
कहने को कहला रही, जनता की सरकार।
रीति-नीति में है मगर, जनता ही पर भार॥-6
किसी भाँति बुझती नहीं, सामंतों की प्यास।
बस्ती-बस्ती लिख रही, प्यासों का इतिहास॥-7
कहने-भर को ही रहा, कर्माधारित वर्ण।
क्षात्र कर्म के बाद भी, शूद्र ही रहा कर्ण॥-8
ऐसा आया है समय, अचरच में हैं सार्थ।
तत्त्वज्ञान के बाद भी, मोहग्रस्त हैं पार्थ॥-9
क़लमकार भी रख रहे, हत्यारे का पक्ष।
दो कौड़ी का गोडसे, गाँधी के समकक्ष॥-10
औरों का हक़ छीनकर, जो भी बनें महान।
उनके ही घर में पलें, भाग्य और भगवान॥-11
काशी – काबे में रहे , और रहे हरिद्वार।
किंतु वासना का रहा, सभी जगह अधिकार॥-12
राजेन्द्र वर्मा