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Month: सितम्बर 2023

जीने को जीते/डॉ. वेद मित्र शुक्ल

मैंने पी तुमने भी पी, पर अलग-अलग क्या पीना होता, जीने को जीते, पर अच्छा साथ-साथ जो जीना होता|  दिख ही जाता प्यार दोस्त! हम कैसे भी बोलें-बतियायें, सच में, यह जो प्यार हुआ ना! बिलकुल झीना-झीना होता|  मौसम है कश्मीर का जो फिर ठंडक तो होगी ही थोड़ी, पर, साथी का साथ रहा ज्यों तन-मन […]

वसुदेव-देवकी/डॉ. वेद मित्र शुक्ल

आसाँ कब वसुदेव-देवकी होकर तप करना मथुरा में, समझी यह संघर्ष-कथा सो अच्छा था रुकना मथुरा में|  अपनों की कारा में घुट-घुटकर जीने से अच्छा है जो – वह तो ही है कृष्ण-जन्म का एक रात घटना मथुरा में| बारिश, बाढ़, अमावस हों या कंस-राज, मुश्किलें बड़ी, पर – धर्म यही वसुदेव भाँति हो क्रांति-कथा […]

कैसे कह दूँ गिरने वाला/डॉ. वेद मित्र शुक्ल

इक-इक सीढ़ी चढ़ने वाला, कैसे कह दूँ गिरने वाला। सूरज उगता रोज सुबह पर, अंतस में कब उगने वाला? उसने नृत्य किया होगा जी, पर, अपना क्या बनने वाला। पानी मर जाता शहरों में, कहता पानी रखने वाला। मौका भर मिल जाये कवि को, यह-वह सब कुछ कहने वाला। काला अक्षर भैंस बराबर, ढूंढ़ो चिट्ठी पढ़ने […]

सुंदर में भी सुंदर/डॉ. वेद मित्र शुक्ल

सुंदर में भी सुंदर चुनना मुश्किल होता है, जल्दी में यों तुमसे मिलना मुश्किल होता है। दूरी हो जब दिल से दिल की तो क्या बतलाऊं, ऐसे में कुछ कहना-सुनना मुश्किल होता है। बढ़ते रहते साथ-साथ जो, साथ भला उनका, उनसे आगे होकर चलना मुश्किल होता है। रह पाऊंगा तुम बिन कैसे खुद से पूछ रहा, […]

बहती नदिया की धारा/डॉ. वेद मित्र शुक्ल

लड़ सका जमाने से कब था, भीतर से खूब सहा आखिर, बहती नदिया की धारा में तिनके सा दोस्त बहा आखिर। कितना कुछ हुआ देखिए तो, बोलो पर तनिक सोचिए भी, तुमने उनने भी समय-समय पर क्या क्या नहीं कहा आखिर। उनके ही हाथों में सब है कह करके पल्ला झाड़ लिया, फिर चले गए लौटे न, किंतु […]

थोड़ा ही है बोना होता/डॉ. वेद मित्र शुक्ल

थोड़ा ही है बोना होता, शेष बीज तो खोना होता। जग जाए या नहीं जगे भी, आखिर इक दिन सोना होता। है घर बहुत बड़ा, पर सोचो, दिल में इक जो कोना होता। यह भी सच जब आँखें हँसती, पर, भीतर से रोना होता। प्रेमचंद्र का ‘मंत्र’ बाचना, फिर कहना, ‘क्या टोना होता?’ बॉलकनी तक धूप न आती, फिर […]

जो भाईचारा जायेगा/डॉ. वेद मित्र शुक्ल

जो भाईचारा जायेगा, सब घर-चैबारा जायेगा। बिल्ली यदि बिल्ली से झगड़े, बन्दर को सारा जायेगा। राजा के सिर पर सींग उगी, अब नाई मारा जायेगा। क्या जो आवाज उठायेगा, वह यारो! कारा जायेगा? ज्यों ही खामोशी बोल पड़ी, पकड़ा हत्यारा जायेगा। खरगोश रहा पीछे, आगे- कछुवा ही प्यार जायेगा। दिन में बदली है छायी हुई, फिर […]

जख़्म हमारे अंदर का है/डॉ. वेद मित्र शुक्ल

दोष भला क्या खंजर का है? जख़्म हमारे अंदर का है। किसको प्यार यहाँ मिट्टी से, शहरी दिल तो पत्थर का है। संकट में हालाहल पीना, काम यहाँ यह शंकर का है। किस्मत भी खेले उससे ही, इन्सां जो बस टक्कर का है। भूला है उड़ने की फितरत, जैसे पंछी पिंजर का है। दौलत का […]

जलता सूरज ऊपर/डॉ. वेद मित्र शुक्ल

चलते-चलते आँखों में कुछ सपने पलना अच्छा लगता, पहियों से इस पटे शहर में पैदल चलना अच्छा लगता। मत पूछो वह कौन, कहाँ से, दर्द अभी बस देखो समझो, प्रश्न नहीं, जख्मों पर तो है मरहम लगना अच्छा लगता। मुस्काते बच्चे इस जग की सच्ची दौलत होते यारा! अपनी गति में मस्त रहें यों इनका बढ़ना अच्छा लगता। […]

मजदूरी में क्या मिलने को/डॉ. वेद मित्र शुक्ल

मजदूरी में क्या मिलने को, है आधी बीड़ी जलने को। बढ़ती कतार है रोज यहाँ, आशाएं गश खा गिरने को। संभलो, बाकी है वक्त अभी, हो साथ-साथ अब लड़ने को। हैं भूल चुके अपनी मिट्टी, है देश पराया लगने को। अब कौन अयोध्या छोड़ेगा, लंका ऊपर जय करने को?

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