जीने को जीते/डॉ. वेद मित्र शुक्ल
मैंने पी तुमने भी पी, पर अलग-अलग क्या पीना होता, जीने को जीते, पर अच्छा साथ-साथ जो जीना होता| दिख ही जाता प्यार दोस्त! हम कैसे भी बोलें-बतियायें, सच में, यह जो प्यार हुआ ना! बिलकुल झीना-झीना होता| मौसम है कश्मीर का जो फिर ठंडक तो होगी ही थोड़ी, पर, साथी का साथ रहा ज्यों तन-मन […]