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झड़ियां लगीं जो सावन में/मो. शकील अख़्तर

उगा रहे हैं सभी आंखों में बबूलों को कि जिस से नोच सकेंगे बदन के फूलों को चलन जो देखा ज़माने का बदचलन जैसा तो मैं ने तर्क किया जीने के उसूलों को तलाई बूंदों की झड़ियां लगीं जो सावन में कुंवारियों ने शजर पे लगाया झूलों को वो जो कि अस्मतों को पाएमाल करता […]

लाचार भी कर सकता है/मो. शकील अख़्तर

वक़्त इक संग को शाहकार भी कर सकता है बिकने वाले को ख़रीदार भी कर सकता है लाख फ़ितने करें याजूज वो माजूज़ मगर अहल ए ईमां उन्हें लाचार भी कर सकता है दावत ए इश्क़ की बेजा न करो ना क़दरी ये अमल इश्क़ को बेज़ार भी कर सकता है गोश ए लब है […]

मुश्किल सफ़र हुआ है/मो. शकील अख़्तर

तेरे बदन‌ का दहकता गुलाब देखूंगा लबों की प्यास छलकती शराब देखूंगा जबीं से होंटों का मुश्किल सफ़र हुआ है तमाम किताब ए जिस्म के अब सारे बाब देखूंगा हया के रंग में डूबा अगर तुझे देखूं गुनाह गार नज़र से सवाब देखूंगा ऐ मेरी हसरत ए दिल शोखियां न यों दिखला वगरना तुझ को […]

इश्क़ में सौदा नहीं किया/मो. शकील अख़्तर

फिर क़हक़हा उठा है उसी गुलसितान से इक बद नसीब जाएगा फिर अपनी जान से मैं तेरी ज़िन्दगी में उस दाग़ की तरह हटता नहीं जो ज़िन्दगी के दरमियान से रिश्ता है मेरा मुझ से क्या मुझ को ख़बर नहीं पूछूंगा अपनी ज़ात के हर तरजुमान से मैं ने वफ़ा का इश्क़ में सौदा नहीं […]

अंगड़ाई जो आंखें उन की/मो. शकील अख़्तर

शोख़ मंज़र रुख़े ज़ेबा का लुभाता है मुझे रोज़ ख़्वाबों में मेरे आ के सताता है मुझे दफ़अतन लेती हैं अंगड़ाई जो आंखें उन की कोई काजल के शबिस्तां में बिठाता है मुझे मैं कभी बन्द समाअत का अगर दर खोलूं नग़मए इश्क़ वो बरबत से सुनाता है मुझे हमसफ़र है वो मेरा पर हमा […]

इश्क़ की रुसवाईयों में है/मो. शकील अख़्तर

इक ज़लज़ला सुकूत का तनहाईयों में है कितना सुकून इश्क़ की रुसवाईयों में है होते रहें तवील निगाहों के फ़ासले दिल का मिलन तो हिज़्र की सच्चाइयों में है मुश्किल नहीं है दिल के शबिस्तान का सफ़र मंज़िल ख़्याल ए हुस्न की राअनाईयों में है तय हो गया जबीं से लबों का भी अब सफ़र […]

घर बनाने की/मो. शकील अख़्तर

मिली जो मुझ को ख़बर ज़ल्ज़लों के आने की तमन्ना जाग उठी मुझ में घर बनाने की अजब है लज्ज़त ए इसियां सराए गीती में कि ख़्वाहिशात नहीं अब जहां से जाने की मैं बाद ए तुन्द की आवारगी कुचल दूंगा क़सम उठाई है मैं ने दिए जलाने की मैं दिल के ज़ख़्म के अन्सर […]

मुहब्बत में बुलंदी के लिए/मो. शकील अख़्तर

ज़िन्दगी क्यों न तुझे बूंद में ढालूं वापिस चाक पे ख़ुद को रखूं ख़ाक बना लूं वापिस ले गई मुझ को तरब बामे रुउनत की तरफ़ क्यों न ग़म ख़्वार बनूं ख़ुद को संभालूं वापिस जाने ये कैसी तमन्ना है दिले नादां की ख़ुद को नाराज़ करूं ख़ुद को मना लूं वापिस अपनी परवाज़े मुहब्बत […]

मासूम तमन्ना/मो. शकील अख़्तर

पारसाओं ने बड़े ज़र्फ़ का इज़हार किया मुझ को भी हुरमत ए ज़ेबा का ख़रीदार किया वो जो था ख़ुद की नुमाइश का तरफ़दार बदन ख़ुद को ख़्वाबीदा किया और मुझे बेदार किया बांध कर शाख़ ए लबों पर वो तस्सुम के गुलाब मेरी मासूम तमन्ना को तलबगार किया तुम ने तोहफ़े में दिए थे […]

मुझे इश्क़ ए ज़लील में/मो. शकील अख़्तर

आहों के सिलसिले मेरे सीने में गाड़ कर वो ले गया है जिस्म से दिल को उखाड़ कर ख़ुशबू तेरे बदन की निकाली न जा सकी हर चंद फेंक दी तेरी यादों को फ़ाड़ कर मैं हूं बुरा तो क्या सभी अच्छों में हैं शुमार हर तंज़ को मैं रखता हूं अक्सर पछाड़ कर रहने […]

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