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Month: जुलाई 2023

प्रारब्ध/कीर्ति श्रीवास्तव

आज फिर उड़ चली हूँ मैं सपनों के पँख लगाए पहले सपने तो थे पर पँख न थे आँखों में आशाएँ लिए ताकती थी खिडक़ी के बाहर और जोहती थी इक तिनके की बाट जो आये और बता जाए अपना अस्तित्व और कर जाए मेरी सहनशीलता को सलाम सुन मेरी पुकार आया वो तिनका और […]

बिटिया/कीर्ति श्रीवास्तव

बिटिया तेरे आ जाने से महका मेरा घर-आँगन देखा तुझको तब ही जाना क्या होता है यह दर्पण तू मेरे सपनों की गुडिय़ा तू मेरे आँगन की चिडिय़ा ठुमक-ठुमक कर जब तू चलती भर आता नैनों मे पनिया एक दिवस तू उड़ जाएगी पहन के पाँव में पेजनिया जब तू होले से मुस्काई मानो चले […]

वो माँ ही थी/कीर्ति श्रीवास्तव

वो माँ ही थी जो मुझे खिलाकर खाती थी कभी न सोचा क्यों ऐसा था शायद बर्तन खाली होता था जब भी जिद की संग खाने की प्यार से मुझे सुनाती कहानी थी अपने हाथों खिलाती निवाला थी वो माँ ही थी जो देकर मुझे बिछौना खुद धरती पर सोती थी अपना आँचल डाल मुझ […]

तेरी छाया हूँ/कीर्ति श्रीवास्तव

तू धूप तो मैं तेरी छाया हूँ तू दिया तो मैं उसकी बाती हूँ तू मेरे सुरों का साज है मैं कश्ती तो तू पतवार है प्रेम क्या है बतलाया तूने प्रेम का सही रंग दिखलाया तूने सुख-दु:ख जीवन के दो रास्ते हैं सुख का तू साथी है तो तेरे दु:ख की मैं संगिनी हूँ […]

प्यार की परिभाषा/कीर्ति श्रीवास्तव

उस दिन जब तुमने थामा था हाथ मेरा खुशी की सीमा न थी मेरी मैंने ही सिखाई तुम्हें प्यार की यह परिभाषा कि प्यार जीवन भर साथ निभाने का नाम है जानते ही उस अहसास को तुम छोड़ मेरा हाथ आगे निकल गये जान नहीं पायी और पहचान भी नहीं पायी तेरी बदली हुई उस […]

महकती जिन्दगी/कीर्ति श्रीवास्तव

वो हंसी ख्वाब वो महकती जि़न्दगी तेरे आने से लगे चहुँ ओर रोशनी कितनी बिना जि़क्र के ही रहता तू ख्य़ालों में मेरे नहीं जानते थे होंगे कभी बेबस इतने तेरे लिए फिर भी सोच ले एक बार यदि साथ चलना है मेरे तो दोस्तों की भीड़ में मिलेंगे दुश्मन भी कई कीर्ति श्रीवास्तव

यादें/कीर्ति श्रीवास्तव

कितनी अजीब होती हैं ये यादें जो कभी दर्द तो कभी खुशी दे जाती हैं पर तेरी यादें मुझे तुझसे मिलवाती हैं तेरे बालों की वो खुशबू और उनसे टपकती पानी की बूँदें मुझे आज भी सराबोर कर जाती हैं तेरे पैरों के नाजुक तलवों को अपने हाथों में थामना और तेरा मना करना मुझे […]

सरगम/कीर्ति श्रीवास्तव

झरोखे से देखती रिमझिम बारिश की बूंदों को सावन की वो पहली बारिश भीगो गई मेरे मन को और याद दिला गई उस सावन को जब साजन के आने की राह ताकती थी मैं पीहर के द्वार पर छोड़ गए थे जो उदर में पल रहे एक बीज के साथ चंद नोटों की खातिर कुछ […]

मन हुआ बावरा/कीर्ति श्रीवास्तव

बारिश की बूंदों से भींगती है धरा माटी की खुशबू से मन हुआ बावरा। प्रेम की भाषा को पंख नए लग गए यादों के बादल में प्रीतम मन बस गए मन में बस उठी ललक होता संग सजन जरा। माटी की खुशबू से मन हुआ बावरा। जीवन की क्यारी में फूल नए खिल गए बारिश […]

सावन के झूल/कीर्ति श्रीवास्तव

अमुआ पे लग गए सावन के झूले सखियों का तन-मन मारे हिलोरे। हरी हरी चूडिय़ाँ संग मेहंदी रचे हाथ हैं फूलों का झूला और सखियों का साथ है लाल-लाल चुनर खाती है हिचकोले। सखियों का तन-मन मारे हिलोरे। सोलह श्रंगार कर सजनी है आई पिया जी के मन में बाजे शहनाई पायल की छम-छम सबको […]

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