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वैशाखी का दिनः जगदीश कौर

वैशाखी का दिनः जगदीश कौर डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) गुरु गोबिंद ने वैशाखी वाले दिन को चुना। लेने को इम्तिहान ताना-बाना था बुना।। यह दिन खुशी का सबके लिए भारी था। किसान भी फसल काटने की तैयारी को था।। सिकखी में धर्म, जाँत का भेदभाव न था। किसी के लिए नफरत, अलगाव भी न था।। हिंदू […]

एक चंदा हैः बबिता प्रजापति

एक चंदा हैः बबिता प्रजापति डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) एक चंदा है उसको घेरे तारे हैं कुछ चंदा संग चमक रहे कुछ दूर बेचारे हैं। वे छोटे प्यारे शिशु छत पे लेटे सोच रहे इस चंदा पे ये बूढ़ी दादी जाने किसके सहारे है। छोटे छोटे भाई बहन तारों की हलचल देख रहे एक सरकता दूजा […]

हार कैसे मान लें हमः डा.रमेश कटारिया

हार कैसे मान लें हमः डा.रमेश कटारिया डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) नफरती तेवर तुम्हारे हार कैसे मान लें हम। ठीक से पहले तुम्हे हम जान लें पहचान लें हम। नफरतें करते रहे और प्यार जतलाते रहे। उसी थाली में छेद किया जिसमें तुम खाते रहे। इन तुम्हारी हरकतों को मनुहार कैसे मान लें हम। कितना समझाया […]

बगावत लिखी हैः पूनम सिंह

बगावत लिखी हैः पूनम सिंह डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) कलम ने मेरी फिर हिमाकत लिखी है, छाई हर तरफ वो बगावत लिखी है ।।  नफरत के शजर हैं लगे हर तरफ, उठ रही आंधी की कयामत लिखी है ।। खिले थे बाग हर तरफ लहलहाते, जाने किसने गुलशन की आफत लिखी है।। अहम की हर तरफ […]

इक कली की तरहः मनमोहन सिंह तन्हा

इक कली की तरहः मनमोहन सिंह तन्हा डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) देखने में तो है आदमी की तरह  पर महकता है वो इक कली की तरह  ये अंधेरे उसे अब डराते नहीं  जगमगाता है वो रोशनी की तरह  आईने की तरह उसका है साफ दिल  उसका हर लफ्ज़ है बंदगी की तरह  मुझसे जब वह मिला […]

कागज़ी पहने हुएः विजय वाजिद

कागज़ी पहने हुएः विजय वाजिद डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) दूर तक मंज़र हैं सारे तीरगी पहने हुए सिर्फ़ हम ही जल रहे हैं रौशनी पहने हुए बारिशों में भीग जाने का ख़सारा उनसे पूछ जिस्म पर जो पैराहन हैं कागज़ी पहने हुए क्या कहूं यूं दर ब दर फिरना मुकद्दर है मेरा पांव जब से हैं  […]

फिरे हम लोग दुनिया कोः किशन तिवारी भोपाल

फिरे हम लोग दुनिया कोः किशन तिवारी भोपाल डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) फिरे हम लोग दुनिया को ही अपना दर्द दिखलाते हम अपने आप से बाहर निकल कर क्यूँ नहीं आते जिसे इक रोज़ सबके सामने आना ये निश्चय है न जाने किस लिए सच बोलने से लोग घबराते हमारी और उनकी प्यास में है फ़र्क़ बस इतना हमें  पानी नहीं मिलता लहू वो रोज़ पी जाते समय के साथ चलना है तो आँखें खोल कर रखिए हमारे बीच हैं कातिल नज़र हमको नहीं आते कई सदियों का हमको है तजुर्बा जाग भी जाओ कभी गुज़रे हुए लम्हे नहीं फिर लौट कर आते सभी के हाथ को थामे जब अपनी राह चल देंगे जमीं से चाँद  तारों तक हम तिरंगा अपना फहराते किशन तिवारी

पहली कमाई दे जाएः अनिल ‘मानव’

पहली कमाई दे जाएः अनिल ‘मानव’ डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) असर ये प्यार का मेरे दिखाई दे जाए बिना कहे ही उसे सब सुनाई दे जाए लिखो तो सच ही लिखो जो दिखाई दे जाए कलम को तोड़ दो जिस दिन दुहाई दे जाए कोई भी नाप नहीं सकता वो खुशी माँ की जो माँ को […]

कुछ समझ आता नहीं हैः डॉ.रामावतार सागर

कुछ समझ आता नहीं हैः डॉ.रामावतार सागर डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) कुछ समझ आता नहीं है जिंदगी तेरा लिखा। एक पल में सुख लिखा था दूसरे में क्या लिखा। साँस आती और जाती जानते हैं हम मगर, बस अचानक छूट जाता साँस का आना लिखा। सूखते से इक शज़र ने ये कहा है आह भर, तय […]

जानती हैं लड़कियाँः डॉ अंजु दुआ जैमिनी

जानती हैं लड़कियाँः डॉ अंजु दुआ जैमिनी डाउनलोड ई-पत्रिका (पीडीऍफ़) जिस रोज ठानती हैं लड़कियाँ बहुत कुछ जानती हैं लड़कियाँ । जलाने से पहले दीपक, बाती को तेल में डुबोना जानती हैं लड़कियाँ । रोशन चरागों को करने का हुनर खूब जानती हैं लड़कियाँ। फकत एक मौके की दरकार कमाना जानती हैं लड़कियाँ। खण्डहरों को […]

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