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सँवरकी/धीरज श्रीवास्तव

आज अचानक हमें अचम्भित,
सुबह-सुबह कर गयी सँवरकी।
कफ़ ने जकड़ी ऐसे छाती,
खाँस-खाँस मर गयी सँवरकी।

जूठन धो-धोकर,खुद्दारी,
बच्चे दो-दो पाल रही थी।
विवश जरूरत जान बूझकर,
बीमारी को टाल रही थी।
कल ही की तो बात शाम को
ठीक-ठाक घर गयी सँवरकी।

लाचारी पी-पीकर काढ़ा
ढाँढस रही बँधाती मन को।
आशंकित थी, दीमक बनकर,
टीबी चाट रही है तन को।
संघर्षों से पिण्ड छुड़ाकर
भव सागर तर गयी सँवरकी।

करवानी थी जाँच खून की,
मदद पाँच सौ माँग रही थी।
हमको लगा गरीबी शायद,
रच फिर कोई स्वाँग रही थी,
फूट-फूट कर रोई पीछे,
सम्मुख हँसकर गयी सँवरकी।

देती रही दुहाई सेवा,
कुटिल स्वार्थ ने व्यथा न जानी।
करती रही याचना झोली
अडिग रहा बटुआ अभिमानी।
वैभव के पनघट से लेकर,
खाली गागर गयी सँवरकी।

खड़ी हुई लज्जित निष्ठुरता,
शव के आगे शीश झुकाये।
पूछ रहा सामर्थ्य स्वयं से,
अब वह किससे खेद जताये।
जाते-जाते, पढ़ा प्रेम के,
ढाई आखर गयी सँवरकी।

—-धीरज श्रीवास्तव

लेखक

  • धीरज श्रीवास्तव

    नाम- धीरज श्रीवास्तव शिक्षा- स्नातक संपादन- मीठी सी तल्खियाँ (काव्य संग्रह), नेह के महावर (गीत संग्रह) साहित्य सरोज (उप संपादक) प्रकाशन- मेरे गांव की चिनमुनकी (गीत संग्रह) 'धीरज श्रीवास्तव के गीत( डॉ.सुभाष चंद्र द्वारा संपादित) साझा संग्रह--- अनेक साझा संकलनों में रचनाएँ प्रकाशित सम्मान--अनेक सम्मान एवं पुरस्कार। संप्रति --- संस्थापक सचिव, साहित्य प्रोत्साहन संस्थान, एवं "साहित्य रागिनी" वेब पत्रिका।

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