किरण तुम्हारा।
पता नहीं है किस कारण से
भूल गई हो तुम
किरण तुम्हारा घर जाने का
वक्त हो गया है
देख रहा टकटकी लगाकर
तुम्हें सतत कोई
स्वर्णिम छवि की चमक देख
अपनी सुधि बुधि खोई
तुमको बिना लिए जाने को
वह तैयार नहीं
संध्या का सूरज तुम पर
आसक्त हो गया है।
हमें पता है तुम भारी
मन लेकर जाओगी
लेकिन नियति मानकर
अपना मन समझाओगी
शब्द हमारे कलम हमारी
रूप तुम्हारा है
हमने जो देखा है हमसे
व्यक्त हो गया है।
समय चक्र की मूल कथा
लिख चुका विधाता है
मर्यादा का पालन करना
तुमको आता है
जाओ मगर तोड़ना मत
सम्बन्ध धरा से तुम
धरती का हर जीव तुम्हारा
भक्त हो गया है।
किरण तुम्हारा पता नहीं है/मयंक श्रीवास्तव