+91-9997111311,    support@sahityaratan.com

किरण तुम्हारा पता नहीं है/मयंक श्रीवास्तव

किरण तुम्हारा।

पता नहीं है किस कारण से

भूल गई हो तुम

किरण तुम्हारा घर जाने का

वक्त हो गया है

देख रहा टकटकी लगाकर

तुम्हें सतत कोई

स्वर्णिम छवि की चमक देख

अपनी सुधि बुधि खोई

तुमको बिना लिए जाने को

वह तैयार नहीं

संध्या का सूरज तुम पर

आसक्त हो गया है।

हमें पता है तुम भारी

मन लेकर जाओगी

लेकिन नियति मानकर

अपना मन समझाओगी

शब्द हमारे कलम हमारी

रूप तुम्हारा है

हमने जो देखा है हमसे

व्यक्त हो गया है।

समय चक्र की मूल कथा

लिख चुका विधाता है

मर्यादा का पालन करना

तुमको आता है

जाओ मगर तोड़ना मत

सम्बन्ध धरा से तुम

धरती का हर जीव तुम्हारा

भक्त हो गया है।

लेखक

  • मयंक श्रीवास्तव प्रकाशित कृतियाँ- ‘उंगलियां उठती रहें’, ‘ठहरा हुआ समय’, ‘रामवती’ काव्य संग्रह। सम्मान- हरिओम शरण चौबे सम्म्मान (मध्य प्रदेश लेखक संघ), अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान (मधुवन), विद्रोही अलंकरण सम्मान (विद्रोही सृजन पीठ), साहित्य प्रदीप सम्मान (कला मंदिर) वर्ष 1960 से माध्यमिक शिक्षा मण्डल मध्य प्रदेश में विभिन्न पदों पर रहते हुए वर्ष 1999 में सहायक सचिव के पद से सेवा निवृत।

    View all posts
किरण तुम्हारा पता नहीं है/मयंक श्रीवास्तव

प्रातिक्रिया दे

आपका ईमेल पता प्रकाशित नहीं किया जाएगा. आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *

×