थोड़ा सा बतियालूं मैं/मयंक श्रीवास्तव
थोड़ा सा बतियालूं मैंं सोच रहा हूँ बहुत दिनों से थोड़ा सा हरषालूं मैं खुलकर अगर नहीं हंस पाया मन ही मन मुस्कालूं मैं। गूंगी सुबह रोज मिलती मैं मिलता बहरी रातों से लेकिन यह इच्छा समझौता करने की हालातों से जीवन के पथरीले पथ को थोड़ा सुगम बनालूं मैं। इस जीवन की दशा दिशा […]