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थोड़ा सा बतियालूं मैं/मयंक श्रीवास्तव

थोड़ा सा बतियालूं मैंं सोच रहा हूँ बहुत दिनों से थोड़ा सा हरषालूं मैं खुलकर अगर नहीं हंस पाया मन ही मन मुस्कालूं मैं। गूंगी सुबह रोज मिलती मैं मिलता बहरी रातों से लेकिन यह इच्छा समझौता करने की हालातों से जीवन के पथरीले पथ को थोड़ा सुगम बनालूं मैं। इस जीवन की दशा दिशा […]

नदी की धारा/मयंक श्रीवास्तव

नदी की धारा मेरे द्वार नदी की धारा जो इस बार बही इतनी बेसुर इतनी बेलय पहले नहीं रही। कोलाहल तो है कलरव वाला संगीत नहीं इतने बड़े सफर में कोई मन का मीत नहीं नर्तन करना और लहरना सब कुछ है सतही। बोल चाल बतियाने की उत्सुकता नहीं दिखी पहली बार नदी में मुझको […]

किरण तुम्हारा पता नहीं है/मयंक श्रीवास्तव

किरण तुम्हारा। पता नहीं है किस कारण से भूल गई हो तुम किरण तुम्हारा घर जाने का वक्त हो गया है देख रहा टकटकी लगाकर तुम्हें सतत कोई स्वर्णिम छवि की चमक देख अपनी सुधि बुधि खोई तुमको बिना लिए जाने को वह तैयार नहीं संध्या का सूरज तुम पर आसक्त हो गया है। हमें […]

मेरे लड़के के जीवन में/मयंक श्रीवास्तव

मेरे लड़के के जीवन में मेरे लड़के के जीवन में। आकर गाँव शहर का लड़का फिर भोपाल गया। मेरे लड़के के जीवन में आ भूचाल गया। मेरा लड़का जान गया क्या होती बिरियानी पीने से पहले शराब में मिलता है पानी वापस जाते समय मीन का स्वाद उछाल गया। ड्रग की पुड़िया से उसकी पहचान […]

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