जरूरत हाथ जोड़े
सैकड़ों दुत्कार सहकर फिर खड़ी है,
द्वार पर ऋण के, जरूरत हाथ जोड़े।
लत लगी जब से परिश्रम को नशे की,
भूख खाली पेट लेटी, तिलमिलाती।
बोझ पलकों पर उठाए, भोर जागे,
लौटती है सांझ हर दिन, लड़खड़ाती।
दाल आटा तेल सब्जी सब नदारद,
नाक भौं छूँछी रसोंई भी सिकोड़े।
काँपता असमर्थता ओढ़े बुढापा,
ताक में घुसपैठ की कुत्सित हवाएं।
चीथड़ों से देह ढाँके। लाज गुमसुम,
छटपटाती खीझती अभ्यर्थनाएँ।
मात्र चुल्लू भर दिहाड़ी जब मिली तो,
क्या नहाए जिंदगी फिर क्या निचोड़े।
डेढ़ टाँगों की अपाहिज ये गृहस्थी,
पोंछती है फर्श, करती साफ जूठन।
कनखियों से ताड़ता, धनवान पौरुष,
ब्याज या फिर मूल किसका दे प्रलोभन।
बेबसी सम्मुख झुकी सम्पन्नता के,
आंख नीची रीढ़ घुटने पाँव मोड़े।
लेखक
-
पूरा नाम - सुनील कुमार त्रिपाठी पिता का नाम - स्व. पंडित चन्द्र दत्त त्रिपाठी "शास्त्री" माता जी का नाम- स्व.रामपति त्रिपाठी जन्म तिथि - ९ अगस्त १९६८ स्थायी निवासी - ग्राम-पीरनगर पोस्ट -कमलापुर ,जिला-सीतापुर निवास जन्म से लखनऊ में- स्थानीय पता:- 288/204 आर्यनगर लखनऊ -226004
View all posts