जो कुछ कहना है मुझे, कह दूँगा दो टूक।
छाती पर मेरी भले , रख दे तू बंदूक ॥-1
चाहे तो कर दो भले, मुझको पंख विहीन।
पर उड़ान का हौंसला, नहीं सकोगे छीन॥-2
मारे जाओगे भला, कब तक यहाँ अकाल।
इस हत्यारे दौर से, कुछ तो करो सवाल॥-3
तोड़ो अपनी चुप्पियाँ, तोड़ो अपने जाल।
करो ज़िंदगी का कहीं, कुछ तो इस्तेमाल॥-4
अपने होने का करो, कदम-कदम उपयोग।
इंतज़ार करते नहीं, हरगिज़ ज़िंदा लोग॥-5
नुचे पंख लेकर कहाँ, चिड़िया करे अपील।
साथ शिकारी के खड़े, सत्ता और वकील॥-6
झूठा यश, झूठे वचन , झूठी जय जयकार।
चढ़ा झूठ के शीर्ष पर , झूठों का सरदार॥-7
सर्वनाश का दौर यह, लगता जिन्हें विकास।
उनके भी अंधत्व को, लिक्खेगा इतिहास॥-8
अँधियारे से आँजकर, जन गण की तक़दीर।
छुपा – छुपाई खेलते, राजा और वज़ीर॥-9
खा-पीकर करते रहे, धर्म सभाएँ लोग।
मेहनतकश बुनता रहा, रोटी का संयोग॥-10
कदम-कदम देता रहा, राजा सच को दण्ड।
ताकि अँधेरों की रहे, सत्ता सदा अखण्ड॥-11
छाती पर इस मुल्क की, बैठे मुल्कफ़रोश।
जिन्हें मुल्क से प्यार वे, हों कैसे खामोश॥-12
