साथ शिकारी के खड़े, सत्ता और वकील/जय चक्रवर्ती

जो कुछ कहना है मुझे, कह दूँगा दो टूक।

छाती  पर  मेरी  भले , रख  दे  तू बंदूक ॥-1

चाहे तो कर दो भले, मुझको पंख विहीन।

पर उड़ान का हौंसला, नहीं सकोगे छीन॥-2

मारे जाओगे भला, कब तक यहाँ अकाल।

इस हत्यारे दौर से, कुछ  तो  करो  सवाल॥-3

तोड़ो अपनी चुप्पियाँ, तोड़ो अपने जाल।

करो ज़िंदगी का कहीं, कुछ तो इस्तेमाल॥-4

अपने होने का करो, कदम-कदम उपयोग।

इंतज़ार करते  नहीं, हरगिज़  ज़िंदा  लोग॥-5

नुचे पंख लेकर कहाँ, चिड़िया करे अपील।

साथ शिकारी के खड़े, सत्ता और वकील॥-6

झूठा यश, झूठे वचन , झूठी जय जयकार।

चढ़ा झूठ  के शीर्ष पर , झूठों  का  सरदार॥-7

सर्वनाश का दौर यह, लगता जिन्हें विकास।

उनके भी  अंधत्व  को, लिक्खेगा  इतिहास॥-8

अँधियारे से आँजकर, जन गण की तक़दीर।

छुपा – छुपाई  खेलते,    राजा  और  वज़ीर॥-9

खा-पीकर करते रहे, धर्म  सभाएँ  लोग।

मेहनतकश बुनता रहा, रोटी का संयोग॥-10

कदम-कदम देता रहा, राजा सच को दण्ड।

ताकि अँधेरों की रहे, सत्ता  सदा  अखण्ड॥-11

छाती पर इस मुल्क की, बैठे मुल्कफ़रोश।

जिन्हें मुल्क से प्यार वे, हों कैसे  खामोश॥-12

साथ शिकारी के खड़े, सत्ता और वकील/जय चक्रवर्ती

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