याद बहुत आई मुझे, जब पीपल की छाँव/डॉ कृष्णकुमार नाज़

लेखक

  • डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’
    साहित्यिक गुरु : श्री कृष्णबिहारी 'नूर'
    पिता : श्री रामगोपाल वर्मा
    जन्मतिथि। : 10 जनवरी, 1961
    जन्मस्थान। : ग्राम कूरी रवाना, ज़िला मुरादाबाद (उ.प्र.)
    शिक्षा : एम.ए. (समाजशास्त्र, उर्दू व हिंदी), बी.एड., पी-एच.डी. (हिंदी)
    संप्रति : शासकीय सेवा से निवृत्त

    प्रकाशित कृतियाँ :
    1. इक्कीसवीं सदी के लिए (ग़ज़ल-संग्रह),1998
    2. गुनगुनी धूप (ग़ज़ल-संग्रह), 2002 व 2010
    3. मन की सतह पर (गीत-संग्रह), 2003
    4. जीवन के परिदृश्य (नाटक-संग्रह), 2010
    5. उगा है फिर नया सूरज (ग़ज़ल-संग्रह), 2013 व 2022
    6. हिन्दी ग़ज़ल और कृष्णबिहारी ‘नूर’, 2014
    7. व्याकरण ग़ज़ल का (2016, 2018 व 2023)
    8. नई हवाएँ (ग़ज़ल-संग्रह), 2018
    9. साथ तुम्हारे (गीत-संग्रह), 2022
    10. दिये से दिया जलाते हुए (ग़ज़ल-संग्रह), 2023
    11. प्रश्न शब्दों के नगर में (साक्षात्कार-संग्रह), 2023
    12. क़ाफ़िया (नए दृष्टिकोण के साथ तुकांत का प्रयोग) 2023

    संपादन :
    1. दोहों की चौपाल (2010), वाणी प्रकाशन
    2. रंग-रंग के फूल (2019), किताबगंज प्रकाशन
    3. नवगीत-मंथन (2019), किताबगंज प्रकाशन
    4. बालगीत-मंथन (2019), किताबगंज प्रकाशन

    संपर्क : 9/3, लक्ष्मी विहार, हिमगिरि कालोनी, काँठ रोड, मुरादाबाद-244105 (उ.प्र).
    मोबा. : 99273-76877, 98083-15744
    email : kknaaz1@gmail.com

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याद बहुत आई मुझे, जब पीपल की छाँव ।

सारे  बंधन  तोड़कर,  पहुँचा  अपने  गाँव ।।-1

इच्छाओं ने जब धरा, आशाओं  का  रूप।

साँस-साँस सूरज उगे, पग-पग फैली धूप।।-2

या तो यह अभिशाप है, या कोई  वरदान।

पलकों पर आँसू सजे, होंठों पर मुस्कान।।-3

बदल गई कुछ इस तरह नये जगत की चाल।

सच्चाई   निर्धन   हुई ,    सदाचार   कंगाल।।-4

तालाबों  को हो  गया, यह  कैसा  अभिमान।

ख़ुद को घोषित कर दिया, सागर की संतान।।-5

पतझर कुछ ऐसे हुआ, पेड़ों पर आसीन।

टहनी-टहनी  हो  गई, उनकी  पत्रविहीन।।-6

राजा ने जारी किया, यह  अद्भुत  फ़रमान।

राजमहल पर व्यंग्य है, छप्पर की मुस्कान।।-7

जीवन का सागर बड़ा, मन छोटी-सी नाव।

जितनी  इच्छाएँ बढ़ीं, उतना  तेज़  बहाव।।-8

जिस चौखट पर है टिका, माथा बारंबार।

उस पर घुटने टेकना मुझे नहीं  स्वीकार।।-9

तन के तो उजले लगे, मन के मैले लोग।

भीतर लाखों व्याधियाँ, बाहर से नीरोग।।-10

यदि हो निर्मल भावना और परस्पर प्यार।

अवरोधक बनती नहीं, आँगन की दीवार।।-11

राजनीति में आ गए, क़ातिल और दलाल।

फिर कैसे होगी भला, ये जनता ख़ुशहाल।।-12

डा. कृष्णकुमार ‘नाज़’

याद बहुत आई मुझे, जब पीपल की छाँव/डॉ कृष्णकुमार नाज़

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