बिखर रहा विश्वास आजकल/गज़ल/सत्यम भारती

बिखर रहा विश्वास आजकल
आम-जनों की आस आजकल

गांवों के सपने सलीब पर
शहरों में उल्लास आजकल

बहू रोज डिस्को जाती है
वृद्धाश्रम में सास आजकल

दिल्ली खून-पसीना पीती
नहीं बुझ रही प्यास आजकल

कविगण मिल कोरस गाते हैं
कविता बनी परिहास आजकल

देख मंच की हालत ‘सत्यम’
गदहों में उल्लास आजकल

बिखर रहा विश्वास आजकल/गज़ल/सत्यम भारती

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