प्रीत सुहागिन हो गई , मिला नीर में नीर/भारत भूषण आर्य

मैं क्या, नन्ही बूँद-सा, क्या मेरा विस्तार ?

बिना बूँद लेकिन कहाँ , सागर हुआ अपार !!1

चाँद न उतरा मन- गगन , द्वार न उतरी धूप ।

रहा बदलता रात – दिन , दर्द निगोड़ा रूप ।।2

कभी बढ़ाईं रोटियाँ , कभी घटाई दाल ।

रही गणित-सी ज़िन्दगी , उलझे  रहे सवाल ।।3

दर्पण तोड़ा काग ने , हंस हुआ बदनाम ।

सिर पर लगा कपोत के , हत्या का  इल्ज़ाम ।।4

घर फूँके जो और का , चले हमारे साथ ।

इतना मैंने क्या कहा , जुड़े हज़ारों हाथ !!5

राम – नाम कितना सधा , धो तो लिया शरीर ।

लगा पूछने कान में , हँसकर मस्त कबीर ।।6

रटे – रटाए पाठ पढ़ , मुद्रा कर गम्भीर ।

तोते कहते फिर रहे , ख़ुद को दास कबीर ।।7

किसे ख़बर निर्धन मरा, पल में सौ-सौ बार।

छींक  अमीरी की हुई, छाप रहे अख़बार ।।8

कार नहीं , नौकर नहीं , पास न एक मकान ।

लगता है उसके अभी , पास बचा ईमान!!9

फूल हँसे , मौसम हँसा , हँसी साँझ तक धूप ।

कौन हँसा मन – द्वार पर , बदल – बदलकर रूप ।।10

सागर में नदिया मिली , मिला प्रेम का तीर ।

प्रीत सुहागिन हो गई , मिला नीर में नीर ।।11

क़दम – क़दम पर आँधियाँ ,दसों दिशा अंगार।

फिर भी मैं करने चला , काग़ज़ का व्यापार!!12

भारत भूषण आर्य

प्रीत सुहागिन हो गई , मिला नीर में नीर/भारत भूषण आर्य

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