जिनका सरल स्वभाव है, मिलता उन्हें दुलार/त्रिलोक सिंह ठकुरेला

लेखक

  • त्रिलोक सिंह ठकुरेला
    जन्म-तिथि ---- 01 - 10 - 1966
    जन्म-स्थान ----- नगला मिश्रिया ( हाथरस )
    पिता ----- श्री खमानी सिंह
    माता ---- श्रीमती देवी
    प्रकाशित कृतियाँ ---
    1 . नया सवेरा ( बाल साहित्य )
    2. काव्यगंधा ( कुण्डलिया संग्रह )
    3 . समय की पगडंडियों पर ( गीत संग्रह )
    4. आनन्द मंजरी ( मुकरी संग्रह)
    5. सात रंग के घोड़े ( बाल कविता संग्रह )
    सम्पादन ---
    1. आधुनिक हिंदी लघुकथाएँ
    2. कुण्डलिया छंद के सात हस्ताक्षर एवं अन्य पुस्तकें
    सम्मान / पुरस्कार ---
    राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा 'शम्भूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार ' तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी ( राजस्थान) द्वारा 'बाल साहित्य सर्जक सम्मान सहित अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित ।
    प्रसारण - आकाशवाणी और रेडियो मधुवन से रचनाओं का प्रसारण
    पाठ्यक्रम में --- महाराष्ट्र राज्य की दसवीं कक्षा की पाठ्यपुस्तक 'हिंदी कुमारभारती ' सहित लगभग दो दर्जन पाठ्यपुस्तकों में रचनाएँ सम्मिलित ।
    अनुवाद-- अनेक रचनाओं का पंजाबी में अनुवाद ।
    विशिष्टता --- कुण्डलिया छंद के उन्नयन , विकास और पुनर्स्थापना हेतु कृतसंकल्प एवं समर्पित ।
    सम्प्रति --- उत्तर पश्चिम रेलवे में इंजीनियर
    चल-वार्ता -- 9460714267

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भावों की चिर सम्पदा, होती सदा अमोल ।

निष्ठुर मन के सामने, ये गठरी  मत खोल ।।-1

जाने क्या हो किस घड़ी, किसको यह आभास ।

कहाँ  राम को राजसुख , कहाँ विषम वनवास ।।-2

जिनका सरल स्वभाव है, मिलता उन्हें  दुलार ।

सागर  सूखें  प्रेम  के,  देख  कुटिल  व्यवहार ।।-3

बहती  है  जीवन  नदी, अपने  ही  अनुसार ।

युक्ति,कुशलता, संतुलन, सहज कराते पार ।।-4

तुच्छ हुए सम्बन्ध अब, सब धन के आधीन ।

भावों को तीली दिखा, मानव हुआ मशीन ।।-5

अनुभव देकर उम्र ने, ऐसा किया निहाल ।

एक  मौन  के  सामने, हारे  सौ  वाचाल ।।-6

करें भलाई  लोक की, बना  प्रेम  को  सत्व ।

जो परहित में विष पिये, पाता वही शिवत्व ।।-7

सुघड़,सुभग,मनमोहिनी, मतवारे से  नैन ।

मनुज,देव,योगी,असुर, कौन नहीं बेचैन  ।।-8

लोगों का धन सम्पदा, मेरा धन है प्यार ।

मैं जीवनधन  खोजता, वे  ढ़ूढ़ें  संसार  ।।-9

कर्म बिना  जीवन वृथा, शुभ  कर्मों  से  सार्थ ।

लिखता आया भाग्य को, मानव का पुरुषार्थ ।।-10

टाँग दिये दीवार पर,खग-मृग,राँझा-हीर ।

घर से गायब हो गयीं, पुरखों की तस्वीर ।।-11

मन-कागज पर नेह के, लिखे गये अनुबंध ।

यत्र  तत्र  सर्वत्र  ही,   फैली  प्रेम – सुगंध ।।-12

त्रिलोक  सिंह ठकुरेला

जिनका सरल स्वभाव है, मिलता उन्हें दुलार/त्रिलोक सिंह ठकुरेला

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